पुष्कर

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Pushkar
नगर
पुष्कर झील का विहंगम दृष्य
पुष्कर झील का विहंगम दृष्य
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देशसाँचा:flag
राज्यराजस्थान
जिलाअजमेर
ऊँचाईसाँचा:infobox settlement/lengthdisp
जनसंख्या (2001)
 • कुल१४,७८९
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
भाषा
 • आधिकारिकहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

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पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है जहाँ प्रतिवर्ष प्रसिद्ध 'पुष्कर मेला' लगता है। यह राजस्थान के अजमेर जिले में है। यहाँ ब्रह्मा का एक मन्दिर है। पुष्कर अजमेर शहर से १४ की.मी दूरी पर स्थित है।[१][२]

परिचय

भारत के राजस्थान राज्य में अरावली श्रेणी की घाटी में अजमेर नगर से पाँच मील पश्चिम अजमेर जिले का एक नगर तथा स्थानीय मंडी है। इसके निकटवर्ती क्षेत्र में ज्वार, बाजरा, मक्का, गेहूँ तथा गन्ने की उपज होती है। कलापूर्ण कुटीर-वस्त्र-उद्योग, काष्ठ चित्रकला, तथा पशुओं के व्यापार के लिए यह विख्यात है। यहाँ पवित्र पुष्कर झील है तथा समीप में ब्रह्मा जी का पवित्र मंदिर है, जिससे प्रति वर्ष अनेक तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। अक्टूबर, नवंबर के महीनों में यहाँ एक विशेष धार्मिक एवं व्यापारिक महत्व का मेला लगता है। इसका धार्मिक महत्व अधिक है। यह सागरतल से २,३८९ फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो औरंगजेब द्वारा ध्वस्त करने के बाद पुन: निर्मित किए गए हैं। पुष्कर में पाण्डवों के अज्ञात वास के समय पाण्डवों द्वारा निर्मित पाँच कुण्ड भी है जो कि नगर से पुर्व की ओर नाग पहाड पर स्थित है यह पहाड करीब 11 किमी. लम्बाई में है यह पहाड अनेक ऋषी मुनियों की तपोस्थली रहा है मह्रिषी अगस्त एवं वाम देव की गुफा भी है इसी नाग पहाड पर राजा भर्तहरि की तपो स्थलि भी है , यह पर्वत नगर के पुर्व से दक्षिण में स्थित है जो कि अनेक जड़ी बूटीयों से युक्त है इस पहाड के उपर से एक तरफ अजमेर तो दूसरी तरफ पुष्कर का मनरम द्रश्य देखा जा सकता है वर्ष में एक बार इसी पहाड पर लक्ष्मी पोळ नामक स्थान पर हरियाली अमावस के दिन भारी मेला लगता है !

इतिहास

पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है, ब्रह्मा ने यहाँ आकर यज्ञ किया था। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं। यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धनीमानी व्यक्तियों द्वारा बनाए गए हैं।

पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। सर्ग ६२ श्लोक २८ में विश्वामित्रोsपि धर्मात्मा भूयस्तेपे महातपाः। पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दशवर्षशतानि च।। वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 62 श्लोक 28विश्वामित्र के यहाँ तप करने की बात कही गई है। सर्ग ६३ श्लोक १५ के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं।

साँची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् १२५ का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर ३००० गायों एवं एक गाँव का दान किया था।

इन लेखों से पता चलता है कि ई. सन् के आरंभ से या उसके पहले से पुष्कर तीर्थस्थान के लिए विख्यात था। स्वयं पुष्कर में भी कई प्राचीन लेख मिले है जिनमें सबसे प्राचीन लगभग ९२५ ई. सन् का माना जाता है। यह लेख भी पुष्कर से प्राप्त हुआ था और इसका समय १०१० ई. सन् के आसपास माना जाता है।

पुष्कर मेला

सरस्वती मंदिर से देखने पर पुष्कर का दृष्य

अजमेर से ११ कि॰मी॰ दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं। व अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।

राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्व देता है। स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं।

इस समय यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम भी किए जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत किया जाता है। इस पशु मेले का मुख्य आकर्षण होता है।

भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी पडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है।

पुष्कर को मंदिरों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इस शहर में लगभग 500 मंदिर हैं। ब्रह्मा के मंदिर के बीच देश भर में प्रसिद्ध है। यह हर साल बहुत सारे भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है। यहां एक प्रसिद्ध पुष्कर झील है जो हर साल हजारों भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है ताकि इसमें पवित्र डुबकी लगा सकें।

ऊंट मेला

राजस्थान के अजमेर जिले में आयोजित पुष्कर मेला कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में। कई अन्य लोग इस राज्य में कुछ सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रकार के मेले आयोजित करते हैं। राजस्थान में पुष्कर के प्रसिद्ध मेले का ऊँट मेला। यह हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित किया जाता है। अन्य पशुधन जैसे बैलों, घोड़ों, गायों और भैंसों के साथ 25,000 से अधिक ऊंटों का व्यापार किया जाता है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेला बनता है।

बहुत सारे गुलाब के बगीचे हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के गुलाब उगाए और बेचे जाते हैं। इस ऊंट मेले में सांस्कृतिक शो और प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाता है ताकि इसे जीवंत और आनंदमय बनाया जा सके। इस ऊंट मेले के कुछ मुख्य आकर्षण मटकीफोड़, मूंछें और दुल्हन की प्रतियोगिताएं हैं।

इनके अलावा, इस मेले में ऊंट सौंदर्य प्रतियोगिता दिलचस्प है। अच्छी तरह से सजाया ऊंट नृत्य। परेड और रन। हजारों देशी और विदेशी आगंतुक उन्हें देखते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, हर कोई भव्य ऊंट मेले को देखना चाहता है। मेला स्थल पर पहुँचकर ऊँट, भैंस इत्यादि भी देखे जा सकते हैं, उनकी दुकानों की बड़ी संख्या में मिठाइयाँ, फल, खाने-पीने के सामान, खिलौने, क्रॉकरी, जूते, बर्तन और गहने, इत्यादि भी बिकते हैं। वास्तव में एक मेले का आयोजन, हमारी संस्कृति के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाने और विभिन्न लोगों से मिलने के लिए एक महल है, जो जब भी आपके पड़ोस में होते हैं, तो पुष्कर के इस ऊँट मेले में जाना चाहिए।

देश का इकलौता ब्रह्मा मन्दिर

पुष्कर का ब्रह्मा मन्दिर

पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को "तीर्थराज" कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को "पुष्करराज" कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं -

  • ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर
  • मध्य (बूढ़ा) पुष्कर
  • कनिष्क पुष्कर।

ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि—"तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।" तब नारद ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया—"तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे - विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।" तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।

वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है। अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।

गायत्री मंदिर

यहां गायत्री देवी का मंदिर है।

शक्तिपीठ

यहां देवी सती की दो पहुंचियां गिरी थीं। इस कारण यहां शक्तिपीठ है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990