गम्मक

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गम्मक

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गम्मक का मतलब है 'आलंकरण'। गम्मक का उप्योग भरतीय शास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन मे पाया जाता है। गम्मक को 'गम्मका' और 'गम्मकम' के नाम से भी जाना जाता है। गम्मक हर उस संगीत स्वर को कहा जाता है जिस मे कोइ एक स्वर या स्वर समूह को गाते हुए या बजाते हुए एक सुन्दर पल्टा या वक्रता दिया जाता है, जो किसी राग के व्यक्तित्व को बढावा देता है। हर राग के अद्वितीय चरित्र के पीछे, उस मे प्रयोग किये गये गम्मकों का हाथ होता है। इसिलिये गम्मक केवल संगीत मे सजावट के लिये हि नहि है, वे भारतिय शास्त्र स्ंगीत मे अधिक आवश्यक भी है। लगभग हर एक संगीत निबन्ध मे गम्मकों के वर्णन के लिये एक अलग अनुभाग लिखा जाता है।

शब्द-साधन

संस्कृत मे गम्मक का मतलब है 'आलंकृत स्वर'। गम्मक मे स्वर की अवृत्ती को भारि और सशक्त कंपनों के द्वारा सटे हुए और दूर के स्वरों के बीछ में किसि निर्धारित स्वर को परिवर्तित किया जाता है। हर एक राग में गम्मक के प्रकार और उन्के आवेदन के बारे में अलग-अलग नियम है जो किसि विशिष्ट प्रकार के स्ंगीत स्वर पर लागु होते है।

महत्व

गम्मक शास्त्र संगीत के 'मनोधर्म संगीत' विभाग के मुख्य पहलु में से एक है, जिस में २२ सूक्ष्म सुर और श्रुतियाँ लगती है। किसि भी राग के स्वरों को अनिवार्य रूप से उनके उप्युक्त गम्मकों के साथ हि प्रस्तुत किया जाना चाहिये क्योंकि स्वर अपने आप में विचारशील सुर नहि है बल्कि वे सुर मात्रा है जो किसि संगीत के मधुर चाल को दर्शाते है। गम्मक केवल आलंकरण हि नहि है। वह राग क एक मौलिक अंश भी है। किसी भी संगीत स्वर को एक गम्मक सजीवन करते हुए उसे गति प्रदान करति है।

गम्म्क के प्रकार

हिन्दुस्तानि शास्त्रीय संगीत में गम्मक हिन्दुस्तानी संगीत में ५ प्रकार के गम्मक होते है:

१ आंदोलन
२ कंपित
३ खटका और ज़मज़मा
४ मुर्की
५ स्फूरिता

हिन्दुस्तानि संगीत में गम्मक, मीन्ड या आंदोलन के समान है।

कर्नाटक संगीत में गम्मक कर्नाटक संगीत में गम्मकों को तीन प्रमुख समूहों में भाग किया गया है:

१ जारू/उल्लासिता - स्वर का फिसलना
२ गम्मक- स्वर का झुकाव
३ जन्टा- स्वर पे दबाव

इन तीन प्रकारों में भी कैई उपप्रकार मौजूद है:

उपप्रकार

जारू: • इरक्क जारू- उतार • एत्र जारू- चढाव


गम्मका: • नोक्कु- उपर से दबाव • ओडुक्कल- नीचे से दबाव • कंपित- दोलन • ओरिकै- झटकना


जन्टा: • रवै- उपर से पलटा • स्फूरित- नीचे से दबाव • प्रत्याहता-ऊपर से दबाव • खण्डिप्पु- तीव्र स्वर बलाघात

गम्मकों क वर्गीकरण

गम्मकों क वर्गीकरण संगीथ विध्वानों में बहुत बरसों चलि आयि वाद-विवाद का एक मुख्य विषय है। गम्मक वर्गीकरण के अनेक प्रणालियों में से आज, 'दशविधा' या गम्मक के दस रूपों की प्रणालि सब्से सुलभ और स्वीकृत है। इस्के अलावा, वेन्कट मखै ने १५ गम्मकों कि प्रणालि क वर्नन किया कैया है: ||तिरुपह स्पूर्तिशैव कंपितो लीनामीयतापि आंदोलितो वलिश्चाटा त्रिभिन्नह कुरुलाहतौ उल्लासितह प्लावितस्चह ह्म्पितो मुद्रितास्थ नामितो मिस्रितस्चेटी भीदाह प्ंचदास स्मृताह||

इस श्लोक को 'पंचदासा गम्मक' के नाम से जाना जाता है। इस श्लोक में १५ गम्मकों क वर्नन किय गया है जो है, तिरुपम- किसी एक सुर को दबाव से गाना य बजाना, स्फूरित-जब कोइ सुर दोह्राता है तो दूस्रे सुर पर दबाव डालना, कंपित-सुर का हिलना, लीन-जब एक स्वर दूसरे सुर में धीरे से घुल जाये, आंदोलित-स्वर क एक स्थान से दूसरे स्थान पर झूलना, वालि, त्रिभिन्न- जब तीन अलग सुर एक साथ बजाये जाये, कुरुल, आहत, उल्लसित, प्लवित, गम्पित, मुद्रित, नमित और मिस्रित।

दशविधा गम्मक

मतंग मुनि ने केवल १० गम्मकों का ही वर्णन किय१ है:

आरोहमवरोहम च दालु स्फूरित कंपिताहत प्र्त्यहस्तच त्रिपुच्छन्द मूर्चनाह।

१० प्रकार के गम्मक ये हैं :

  1. आरोहनम
  2. अवरोहनम
  3. डालु
  4. स्फूरितम
  5. कंपितम
  6. आहतम
  7. प्रत्याहतम
  8. त्रिपुच्छम
  9. आंदोलम
  10. मूर्छना

सन्दर्भ

[१] [२] [३]

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