गणितीय मॉडल

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किसी भौतिक तंत्र (physical system) या प्रक्रम (process) या अमूर्त तंत्र (abstract system) के विभिन्न अवयवों के अन्तर्सम्बन्धों का गणित की भाषा में वर्णन उस तन्त्र का गणितीय प्रतिरूप या गणितीय मॉडल (mathematical model) कहलाता है।

गणितीय मॉडल प्रायः संगत तंत्र के सरलीकृत रूप होते हैं। इससे उस तन्त्र की कार्यप्रणाली को आसानी से समझने में सुविधा होती है। इसकी सहायता से यह गणना की जा सकती है कि किस स्थिति में क्या होगा। गणितीय मॉडल की सहायता से ही उस भौतिक तन्त्र का नियन्त्रण भी किया जा सकता है। किसी तन्त्र को कम्प्यूटर द्वारा सिमुलेट (simulate) करने के लिये उस तन्त्र का गणितीय मॉडल बनाना पहली जरूरत है।

गणितीय मॉडल का प्राकृतिक विज्ञानों एवं प्रौद्योगिकी में बहुतायत से उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इसका सामाजिक विज्ञानों, जैसे अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र एवं राजनीति शास्त्र में भी उपयोग होता है।

किसी तन्त्र या युक्ति के गणितीय मॉडल को जब किसी विद्युत परिपथ के रूप में निरुपित किया जाता है तो इस विद्युत परिपथ को तुल्य परिपथ (equivalent circuit) कहते हैं। उदाहरण के लिये किसी बैटरी को एक आदर्श वोल्टेज सोर्स एवं एक प्रतिरोध के श्रेणीक्रम (सिरीज) संयोजन के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।

गणितीय मॉडल और मानसिक मॉडल

जाने अनजाने हर कोई अनेकों मॉडलों का उपयोग करता है। ये किसी वस्तु या तन्त्र की मानसिक मॉडल होते हैं। हम अपने अनुभव एवं समझ से बनाये हुए विभिन्न मानसिक मॉडलों के आधार पर ही निर्णय लेते हैं या काम करते हैं। जरूरी नहीं है कि हमारे मस्तिष्क में रची-बसी किसी तन्त्र की मानसिक छवि (मेन्टल इमेज) उस तंत्र के वास्तविक मॉडल से मेल खाती हो।

गणितीय मॉडल के कुछ उदाहरण

माल्थस का जनसंख्या मॉडल

माल्थस ने विचारा कि जनसंख्या समय के साथ इक्स्पोनेन्सियल रूप से (चरघातांकी रूप से) बढेगी जबकि जीविका के साधन (अनाज आदि का उत्पादन) रेखिइय गति से ही बढेगा। इन मान्यताओं (एसम्प्सन्स) के आधार पर माल्थस ने भविष्य की सम्भावित तस्वीर पेश की।

भौतिकी में गणितीय मॉडलों का उपयोग

गणितीय मॉडल भौतिकी में बहुत महत्व रखते हैं। भौतिक सिद्धान्त प्रायः गणितीय मॉडल के रूप में ही प्रस्तुत किये जाते हैं। उदाहरण के लिये गैसों का व्यवहार आदर्श गैस समीकरण के रूप में (PV=nRT) व्यक्त किया जाता है। यह एक गणितीय मॉडल ही है। इसी प्रकार किसी पोटेन्शियल फिल्ड में किसी कण का व्यवहार के लिये डिफरेंशियल समीकरण के रूप में एक गणितीय मॉडल प्रस्तुत किया जा सकता है।

गणितीय मॉडल बनाने की विधियाँ

मुख्यतः दो विधियाँ है:

  • सिद्धान्तों एवं नियमों का उपयोग करते हुए तन्त्र का गणितीय वर्णन (जैसे डिफरेन्शियल समीकरण या डिफरेंस समीकरण के रूप में)

इसके लिये तन्त्र की बनावट एवं कार्यपद्धति का सम्पूर्ण ज्ञान आवश्यक है।

  • तन्त्र की पहचान (सिस्टम आइडेन्टिफिकेशन) : इसमें तन्त्र को सम्यक प्रकार का इन्पुट देकर ऑउटपुट रिकार्ड कर लिया जाता है। और इन आकड़ों से ज्ञात किया जा सकता है कि तन्त्र किस ऑर्डर का है व उसके विभिन्न पैरामीटर का मान क्या होगा। इसका मुख्य लाभ यह हैकि इसके लिये सिस्टम की पूर्ण जानकारी जरूरी नहीं है; किन्तु इसके लिये वास्तविक तन्त्र का विद्यमान होना जरूरी है जिस पर प्रयोग करके आंकड़े लिये जा सकें।

सिस्टम आइडेन्टिफिकेशन की मुख्यतः दो विधिया हैं:

    • समय-डोमेन में, प्रायः स्टेप-इनपुट के संगत ऑउटपुट रेकार्ड करके
    • आवृत्ति-डोमेन में, अलग-अलग आवृत्ति के साइनस्वायडल (साइन आकार वाले) संकेत देकर उनके संगत ऑउटपुट का आयाम व कला (फेज) नापकर

गणितीय मॉडल के लाभ

  • एक बार गणितीय मॉडल बन जाने के बाद भौतिक मॉडल जरूरी नहीं रह जाता। इसके नये डिजाइन या टेक्नालोजी को गणितीय मॉडल की सहायता से ही विकसित किया जा सकता है। अतः वर्तमान तन्त्र का कामधाम रोके बिना ही काम बन जाता है।
  • गणितीय मॉडल, भौतिक मॉडल की तुलना में बहुत अधिक लचीला और उपयोगी होता है:
    • समय का कोई बन्धन नहीं, अधिक समय लेने वाला प्रक्रम भी कम समय में सिमुलेट करके देखा जा सकता है।


    • विभिन्न पैरामीटरों के मान जाँचे जा सकते हैं। उन्हें अदल-बदल कर उनके प्रभाव का अध्ययन किया जा सकता है।
    • वे भी राशियाँ मापी/गणना की जा सकती हैं जिन्हें भौतिक तन्त्र में देख पाना कठिन/असम्भव होता है।
  • गणितीय मॉडल पर कोई भी प्रयोग १००% सुरक्षित होते हैं।
    • भौतिक तन्त्रों पर प्रयोग प्रायः खतरनाक होते हैं।
    • भौतिक तन्त्रों पर लोगों को पैसे खर्च करके प्रशिक्षित करना पड़ता है।
  • गणितीय मॉडल अन्तर्दृष्टि प्रदान करने में मदद करते हैं। इससे उनके बारे में अच्छी समझ पैदा होती है।

मॉडल का वर्णन

  • ट्रान्सफर फंक्शन के रूप में
  • स्टेट-स्पेस रूप में
  • ब्लॉक के रूप में (जैसे सिमूलिंक या साईकॉस की सहायता से)

मॉडल के प्रकार

  • रेखीय (लिनियर) तन्त्र
  • अरेखीय तन्त्र (नॉन-लिनियर)

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ