गणपाठ

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गणपाठ पाणिनि के व्याकरण के पाँच भागों में से एक है। पाणिनीय व्याकरण के चार अन्य भाग हैं- अष्टाध्यायी, फिट्सूत्र, धातुपाठ तथा उणादिसूत्र। गणपाठ का अर्थ यह है कि किसी भी बात में एक-दूसरे से मेल खाने वाले सभी शब्द एक गण या वर्ग में पिरो लिए जाँय। इससे बिखरी हुई शब्दसामग्री एक सरल व्यवस्था में बंध जाती है। पाणिनीय गणपाठ में २६१ गण हैं।

'गण' का अर्थ है - समूह। जब बहुत से शब्दों को एक ही कार्य करना हो तो उनमें से प्रथम या प्रमुख शब्द को लेकर उसमें 'आदि' जोड़कर काम चला लिया जाता है। जैसे भ्वादि गण (= भू आदि गण)। ऐसा करने से लाघव होता है अन्यथा वर्णन बहुत बड़ा हो जायेगा। कौन से शब्द 'गण' हैं, इसके लिये गणपाठ दिया गया है। गणपाठ तथा उणादिसूत्र एक नहीं, परन्तु विभिन्न व्याकरणकारों के अलग-अलग है, जैसे शाकटायन का गणपाठ, आपिशलि का गणपाठ आदि।

पाणिनि के गणपाठ का एक छोटा सा अंश नीचे दिया गया है-

अंश्वादयः
अंशु जन राजन् उष्ट्र खेटक अजिर आर्द्रा श्रवण कृत्तिका अर्ध पुर  १
अक्षद्यूतादयः
अक्षद्यूत जानुप्रहृत जङ्घाप्रहृत जङ्घाप्रहत पादस्वेदन कण्टकमर्दन गतानुगत गतागत यातोपयात अनुगत  २
अङ्गुल्यादयः
अङ्गुलि भरुज बभ्रु वल्गु मण्डर मण्डल शष्कुली हरि कपि मुनि रुह खल उदश्वित् गोणी उरस् कुलिश शिखा  ३
अजादयः
अजा एडका कोकिला चटका अश्वा मुषिका बाला होडा पाका वत्सा मण्डा विलाता पूर्वापहाणा अपरापहाणा सम्भस्त्राजिन शणपिण्डेभ्यः फलात् सम्फला भस्त्रफला अजिनफला शणफला पिण्डफला त्रिफला सत्प्राक्काण्ड प्रान्त शतैकेभ्यः पुष्पात् सत्पुष्पा प्राक्पुष्पा काण्डपुष्पा प्रान्त पुष्पा शतपुष्पा एकपुष्पा शूद्रा च अमहत्पूर्वा जातः क्रुञ्चा उष्णिहा देवविशा ज्येष्ठा कनिष्ठा मध्यमा पुंयोगे अपि मूलात् नञः अमूला दंष्ट्रा  ४
अजिरादयः
अजिर खदिर पुलिन हंस कारण्डव चक्रवाक  ५

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ