गणकारिका
गणकारिका | |
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लेखक | हरदत्ताचार्य |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
विषय | पाशुपत दर्शन |
प्रकाशन तिथि | अनुमानित ८७९ ईस्वी |
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गणकारिका पाशुपत दर्शन का एक महत्वपूर्ण मौजूदा ग्रन्थ है। यह एक पुस्तिका है जो पाशुपत दर्शन के गणों के लिये दर्शन के सिद्धांतों और मुख्य विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन करता है।[१]
रचेता
गणकारिका के रचेता हरदत्ताचार्य थे जो ८७९ ईस्वी के आसपास रहते थे। लेकिन ये रचनाकारिता भी विवादित है। इस ग्रन्थ के रचना का श्रेय भासर्वग्न्य को भी दिया जाता है जो दसवीं शताब्दी के विद्वान थे। पर कई विशेषज्ञों का मानना है कि भासर्वग्न्य ने सिर्फ रत्नटीका को लिखा है जो गणकारिका की टीका है। गणकारिका का एकमात्र अनुवाद भारतविद और संस्कृत एवं बौद्ध साहित्य के विद्वान मिनोरु हारा के निबंध में पाया जाता है।[२]
ग्रन्थ की सामग्री
लकुलीश पाशुपत दर्शन के प्रमुख माने जाते है। गणकारिका को प्रारूप में लकुलीश के रचीत पाशुपत सुत्र से अधिक व्यवस्थित बताया गया है हालांकि यह बहुत छोटा है।[२] गणकारिका नए विद्यार्थियों की शुरुआत के बारे में बताते वक्त सामग्री घटक, पुजा का समय, उचित अनुष्ठान, भगवान की छवि, और गुरू के बारे में जानकारी देता है। सामग्री घटकों मे दर्भ, राख, चंदन, फूल, धूप और मंत्रों का उल्लेख है। इसमें पुजा का समय सुबह का बताया है और उचित अनुष्ठान के लिये यह दूसरे ग्रन्थ संस्कारकारिका को संदर्भित करता है; जो खोया हुआ हैं।[२]