खानदेश
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ऐतिहासिक क्षेत्र | |
धुले जिले में ताप्ती नदी का दृश्य। | |
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देश | भारत |
राज्य | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश |
ऊँचाई | साँचा:infobox settlement/lengthdisp |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
वासीनाम | खानदेशी |
खानदेश महाराष्ट्र के दक्षिणी पठार के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र, जो मुंबई से लगभग ३००किमी उत्तरपश्चिम है। खानदेश के भीलों ने प्रमुख विद्रोह किए । १८ वीं शताब्दी में यह भाग मराठा शासन में था तथा यहाँ अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ हुई थीं। उसके पूर्व यह अहमद नगर के सुल्तानों के अधिकार में था। १६०१ ई. में अकबर ने इसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया।
इतिहास
दिल्ली सल्तनत
1295 में, खानदेश असीरगढ़ के चौहान शासक के अधीन था, जब दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी ने अपने नियंत्रण में ले लिया।[१]साँचा:r/superscript अगली शताब्दी में विभिन्न दिल्ली राजवंशों ने खानदेश पर नियंत्रण रखा।[१]साँचा:r/superscript 1370 से 1600 तक, फ़ारूकी वंश ने बुरहानपुर में राजधानी के साथ खानदेश पर शासन किया।[१]साँचा:r/superscript एक स्वतंत्र राज्य के रूप में खानदेश की नींव खानकाह फौरकी के पुत्र मलिक राजा द्वारा रखी गई थी। फिरोज शाह तुगलक (1309 - 20 सितंबर 1388) ने शुरू में मलिक राजा को खानदेश क्षेत्र का सेनापति नियुक्त किया था, लेकिन फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद उसने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और 1399 तक शासन किया।[२]
मुगल शासन
1599 में यहां मुगलों का आगमन हुआ, जब अकबर की सेना ने खानदेश और असीरगढ़ पर कब्जा कर लिया।[१]साँचा:r/superscript कुछ समय के लिए, अकबर के पुत्र दनियाल की नाम पर खानदेश का नाम बदलकर दानदेश कर दिया गया।[३] साँचा:circa, टोडर मल के राजस्व निपटान प्रणाली को शाहजहाँ द्वारा खानदेश में पेश किया गया था (1818 में ब्रिटिश शासन तक इस प्रणाली का उपयोग किया गया था)।[३]साँचा:r/superscript 17वीं शताब्दी के मध्य को खानदेश की "सर्वोच्च समृद्धि" के रूप में वर्णित किया गया है, जो कपास, चावल, इंडिगो, गन्ना और कपड़े के व्यापार के कारण था।[३]साँचा:r/superscript मुगल शासन तब तक चला जब तक मराठों ने 1760 में असीरगढ़ पर कब्जा नहीं कर लिया।[१]साँचा:r/superscript
मराठा शासन
खानदेश में मराठा छापे 1670 में शुरू हुए और अगली सदी अशांति की अवधि थी क्योंकि मुगलों और मराठों में नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा चालू रही।[१]साँचा:r/superscript 1760 में, पेशवा ने मुगल शासक को बाहर कर दिया और खानदेश पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया, जिसके बाद होलकर और सिंधिया शासकों को भाग दिए गए।[१]साँचा:r/superscript बाजी राव द्वितीय ने जून 1818 में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन खानदेश में छिटपुट युद्ध जारी रहा, जो कि पूर्ण ब्रिटिश नियंत्रण में आने के लिए पेशवा के पूर्व क्षेत्रों में अंतिम था।[४]साँचा:r/superscript
ब्रिटिश शासन
खानदेश को बॉम्बे प्रेसिडेंसी के तहत एक जिला बनाया गया था।[५] 1906 में, जिले को दो जिलों में विभाजित किया गया था: पूर्वी खानदेश जिसका मुख्यालय जलगाँव में था और क्षेत्रफल 11,770 किमी2 (4,544 वर्ग मील) था, जबकि धुले में मुख्यालय वाला पश्चिम खानदेश का क्षेत्रफल 14,240 किमी2 (5,497 वर्ग मील) था; 1901 में उनकी क्रमश: आबादी 957,728 और 469,654 थी।[६]
स्वतंत्र भारत
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, बॉम्बे प्रेसिडेंसी बॉम्बे राज्य बन गया, और 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात के भाषायी राज्यों में विभाजित हो गया। पूर्वी खानदेश जलगाँव जिला, और पश्चिम खानदेश धुले जिला -दोनो महाराष्ट्र राज्य- में बन गया।[७] बाद को धुले से कटकर नंदुरबार जिला बना।[८]
भूगोल
पूरे क्षेत्र का क्षेत्रफल ९,९१८ वर्गमील है। १९०६ ई. में इस क्षेत्र को दो जिलों में विभाजित कर दिया गया :
- (१) पश्चिमी खानदेश और
- (२) पूर्वी खानदेश।
पश्चिमी खानदेश
इसका क्षेत्रफल ५,३२० वर्गमील है। इसके उत्तरपूर्व में सतपुड़ा पर्वत, उत्तरपश्चिम में नर्मदा नदी तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट का उत्तरी किनारा है। इसमें ताप्ती और पांझरा नदियाँ बहती हैं। पश्चिमी भाग में जंगल हैं, जिनमें कीमती लकड़ियाँ मिलती हैं। इस जिले की मुख्य उपज ज्वार, बाजरा, कपास, गेहूँ और तिलहन हैं। इस जिले का केंद्रीय नगर धुलिया है, जो व्यापार और शिक्षा का केंद्र है। इसके अतिरिक्त शिरपुर, तलोदा,शाहदा और नंदुरबार आदि प्रसिद्ध स्थान हैं। इन सभी नगरों में कपास से बिनौला निकालने के कारखाने हैं।
पूर्वी खानदेश
महाराष्ट्र के उत्तरपूर्व में दक्षिणी पठार पर स्थित है, जिसका क्षेत्रफल ४,५९८ वर्गमील है। इसका केंद्रीय नगर जलगाँव है। इसके उत्तर में सतपुड़ा पर्वत और दक्षिण में अजंता की पहाड़ियाँ है। इसमें ताप्ती और गिरना नदियाँ बहती है। चालीस गाँव के उत्तर-उत्तर-पश्चिम में आठ मील की दूरी पर जमदा सिंचाई प्रणाली प्रारंभ होती है। यहाँ पर कपास, मक्का, ज्वार, गेहूँ और आम उत्पन्न होते है। सतपुड़ा पर्वत की ढालों पर पर्वतीय वन में इमारती लकड़ियाँ मिलती है जिन्हें फैजपुर और यावल के बाजारों में बेचा जाता है। यहाँ पर कपास से बिनोला निकालने के कारखाने है। कुटीर उद्योग में वस्त्र बनाए जाते हैं। अमलनेर, चालीसगाँव, जलगाँव और भुसावल में कपास का व्यापार होता है।
सन्दर्भ
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- ↑ साँचा:cite web
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