खलील जिब्रान
खलील जिब्रान | |
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جبران خليل جبران | |
Born | 6 January 1883 |
Died | साँचा:death date and age New York City, United States |
Resting place | Bsharri, Lebanon |
Nationality | Lebanese and American |
Occupation | Writer, poet, visual artist, philosopher |
Employer | साँचा:main other |
Organization | साँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Notable work | The Prophet, The Madman, Broken Wingsसाँचा:main other |
Movement | Mahjar (Arabic literature), Symbolism |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | साँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
Parent(s) | स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other |
Signature | |
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खलील जिब्रान (Khalil Gibran (/dʒɪˈbrɑːn/; पूरा अरबी नाम : Gibran Khalil Gibran, अरबी: جبران خليل جبران / ALA-LC: Jubrān Khalīl Jubrān or Jibrān Khalīl Jibrān) ( 6 जनवरी, 1883 – 10 जनवरी, 1931) एक लेबनानी-अमेरिकी कलाकार, कवि तथा न्यूयॉर्क पेन लीग के लेखक थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होना पड़ा और जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्रान लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए।
परिचय
खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 में अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थायी रूप से रहने लगे थे।
बोस्टन नगर में उन्होंने बालकों के एक पब्लिक स्कूल में ढ़ाई वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की। तदुपरांत एक रात्रि के स्कूल में वर्ष भर पढ़ते रहे। फिर वह लेबनान में 'मदरस्तुल हिकमत' नामक एक उच्च कोटि के विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिये चले गए। वहाँ शिक्षा प्राप्त करके वह सीरिया तथा लेबनान में ऐतिहासिक स्थानों की सैर करते हुए १९०२ ई. में लेबनान से वापस चले गए। वह अपने परिवारवालों से बड़ा प्रेम करते थे। इसी कारण १९०२ ई. में अपनी बहिन, १९०३ ई. में अपने भाई तथा तीन मास उपरांत ही अपनी माँ के र्स्वगवास से उन्हें बड़ा शोक हुआ। इन पारिवारिक दु:खों की अनुभूति तथा अपने मितभाषी स्वभाव के कारण वे अपने विचारों के जगत् में ही विचरण करते रहते थे। चित्रकला से उन्हें बड़ी रुचि थी। जब बच्चे उन्हें बातों में लगाना चाहते, वे ऐसी अद्भुत बातें छेड़ देते कि वे यह समझने पर विवश हो जाते कि कोई बड़ा ही विचित्र बालक है। १९०८ ई. में उनहोंने पेरिस की फाइन आर्टस् एकेडमी में मूर्तिकला की शिक्षा प्राप्त की। पेरिस से लौटकर वे न्यूयार्क में निवास करने लगे किंतु वे हर वर्ष अपने परिवारवालों के पास कुछ समय व्यतीत करने के लिये बोस्टन जाया करते थे। वहीं वे शांतिपूर्वक चित्रकला में अपना समय व्यतीत करते।
उनके जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में भी वर्तमान है जिनमें उन्होंने प्राय: अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण का चित्रण किया है। आधुनिक अरबी साहित्य में उन्हें प्रेम का संदेशवाहक माना जाता है। अंग्रेजी में अनूदित उनकी कृतियाँ बड़ी प्रसिद्ध हो चुकी है।
सुभाषित
वे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।
उनमें अद्भुत कल्पना-शक्ति थी। वे अपने विचारों के कारण कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकक्ष ही स्थापित होते थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। इनमें उर्दू तथा मराठी में सबसे अधिक अनुवाद प्राप्त होते हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई, जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे। देश से निष्कासन के बाद भी अपनी देशभक्ति के कारण अपने देश हेतु सतत लिखते रहे। 48 वर्ष की आयु में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर 10 अप्रैल 1931 को उनका न्यूयॉर्क में ही देहांत हो गया। उनके निधन के बाद हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों को आते रहे। बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि के गिरजाघर में दफनाया गया।
वे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।
वे कहते थे जिन विचारों को मैंने सूक्तियों में बंद किया है, मुझे अपने कार्यों से उनको स्वतंत्र करना है। 1926 में उनकी पुस्तक जिसे वे कहावतों की पुस्तिका कहते थे, प्रकाशित हुई थी। इन कहावतों में गहराई, विशालता और समयहीनता जैसी बातों पर गंभीर चिंतन मौजूद है। उनकी कुछ श्रेष्ठतम सूक्तियां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं-
- सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए।
- दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
- कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है।
- यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए- 1. ज्ञान कला का जादू, 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और 3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू।
- यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं।
- बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं।
- जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
- मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर।
- मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
- यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।
- यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
- यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं।
- इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि दूसरों के अपराधों को जानते रहें।
- यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।
- अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो अपने आपे से बाहर हो गई है।
- दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
- संसार में केवल दो तत्व हैं- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में।
- इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत।
- निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
- यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।
सन्दर्भ
- खलिल जिब्रान (वेब दुनिया)
बाहरी कड़ियाँ
- Comprehensive Gibran Site स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (All his works, photos, artwork, bio, downloads etc)
- The Gibran Archive: Biography, Timeline, Drawings/Paintings and many Full Text books
- Online copies of texts by Gibran
- "Kahil Gibran -- a retrospective (video), documentary, May 31, 2007
- Works by Khalil Gibran
- खलील जिब्रान के अनमोल विचार