कोन्या-उरगेन्च

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
कोन्या-उरगेन्च
Köneürgenç

साँचा:location map

सूचना
प्रांतदेश: दाशोग़ुज़ प्रान्त, तुर्कमेनिस्तान
जनसंख्या (२००५): ३०,००० (अनुमानित)
मुख्य भाषा(एँ): तुर्कमेन
निर्देशांक: स्क्रिप्ट त्रुटि: "geobox coor" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
सोल्तान तेकेश मक़बरा
गुतलुक-तेमिर मीनार

कोन्या उरगेन्च या कोन्ये उरगेन्च (तुर्कमेन: Köneürgenç, अंग्रेज़ी: Konye-Urgench) मध्य एशिया के तुर्कमेनिस्तान देश के पूर्वोत्तरी भाग में उज़बेकिस्तान की सरहद के पास स्थित एक बस्ती है। यह उरगेन्च की प्राचीन नगरी का स्थल है जिसमें १२वीं सदी के ख़्वारेज़्म क्षेत्र की राजधानी के खँडहर मौजूद हैं। २००५ में यूनेस्को ने इन खँडहरों को एक विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया।[१]

इतिहास

कोन्या उरगेन्च कभी आमू दरिया के किनारे बसा हुआ और रेशम मार्ग पर स्थित एक महान शहर हुआ करता था। इसकी स्थापना की सही तिथि तो मालूम नहीं लेकिन यहाँ के किर्कमोला क़िले को देखकर लगता है कि यह हख़ामनी काल के कुछ बाद स्थापित हुआ हो। १२वीं और १३वीं शताब्दियों में यह ख़्वारेज़्मी साम्राज्य की राजधानी बना और बुख़ारा को छोड़कर मध्य एशिया की सबसे शानदार नगरी कहलाने लगा। १२२१ में मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान ने यहाँ आक्रमण किया। उसकी सेनाओं ने शहर जलाकर राख कर दिया और यहाँ के अधिकाँश नागरिकों को मौत की घाट उतार दिया गया।

चंगेज़ ख़ान के हमले के बाद शहर धीरे-धीरे फिर से स्थापित हुआ लेकिन आमू दरिया ने अचानक अपना मार्ग बदल लिया और नगर में पानी ख़त्म हो गया। १३७० में तैमूर ने भी इसपर हमला किया तो नागरिकों ने इस हमेशा के लिए छोड़ दिया। सैंकड़ों साल बाद, १८३१ में तुर्कमेनों ने पुराने शहर-स्थल के बाहर एक छोटी सी बस्ती बनाई और पुराने शहरी इलाक़ें को क़ब्रिस्तान की तरह प्रयोग करने लगे। उरगेन्च नाम का एक नया शहर इस पुराने शहर से दक्षिणपूर्व में खड़ा हो गया तो इस पुराने शहर को 'पुराना उरगेन्च' (स्थानीय भाषाओं में 'कोन्या उरगेन्च') बुलाया जाने लगा। नया उरगेन्च शहर अब सीमा के पार उज़बेकिस्तान में स्थित है।[२]

स्थापत्य

कोन्या उरगेन्च के बहुत से स्थापत्य गिरकर खँडहर बन चुके हैं। आजकल यहाँ १२वीं सदी में बने तीन छोटे मक़बरे और १४वीं सदी में बना बड़ा तोरेबेग़​ हानिम मक़बरा खड़े हैं। यहाँ ११वीं शताब्दी की शुरुआत में बनी गुतलुक-तेमिर मीनार भी है, जो जाम की मीनार बनने से पहले विश्व की सबसे ऊंची ईटों से बनी मीनार हुआ करती थी। आगे चलकर १३६८ में दिल्ली में क़ुत्ब मीनार पूरी की गई जो मीनार-ए-जाम से भी ऊँची थी।

यहाँ इल-अर्सलान का मकबरा भी है जिसके १२ पहलुओं वाले शंकुनुमा गुम्बज़ ने नीचे ख़्वारेज़्मी नरेश मुहम्मद द्वितीय के दादा, इल-अर्सलान, की क़ब्र है जिनका देहांत ११७२ में हुआ था। इस से ज़रा उत्तर में एक विस्तृत मध्यकालीन क़ब्रिस्तान स्थित है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

  1. Kunya-Urgench स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, UNESCO World Heritage Center, UNESCO, Accessed 19 फ़रवरी 2011
  2. A History of Inner Asia स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Svat Soucek, pp. 7, Cambridge University Press, 2000, ISBN 978-0-521-65704-4, ... the original site came to be known as Kunya Urgench, 'Old Urgench' (from the Persian kuhna, 'old') ...