कैलाश (तीर्थ)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
कैलाश पर्वत

कैलाश (तीर्थ) हिमालय के तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है जिसे 'गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलास के बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।

जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलास को अष्टापद कहते है। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। बौद्ध अनुश्रुति है कि कैलास पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है। उसकी उपत्यका में रत्नखचित कल्पवृक्ष है। डेमचोक (धर्मपाल) वहाँ के अधिष्ठाता देव हैं; वे व्याघ्रचर्म धारण करते, मुंडमाल पहनते हैं, उनके हाथ में डम डिग्री और त्रिशूल है। वज्र उनकी शक्ति है। ग्यारहवीं शती में सिद्ध मिलेरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रमशिला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान (982-1054 ई0) तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ यहाँ आए थे।

कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलास है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (भोटिया) लोग कैलास मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।

मार्ग

कैलास-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तरप्रदेश के अल्मोड़ा स्थान से अस्ककोट, खेल, गर्विअंग, लिपूलेह, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। यह भाग 338 मील लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 44 मील की चढ़ाई है, उसके आगे 46 मील उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकला कोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है।

कैलास की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 25 मील पर मांधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 16,200 फुट की ऊँचाई पर है। इसके मध्य में पहले बाईं ओर मानसरोवर और दाईं ओर राक्षस ताल है। उत्तर की ओर दूर तक कैलास पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। प्रवाद है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है, उनकी ऊँचाई 18,600 फुट है। इसके निकट ही गौरीकुंड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ हैं।

यात्रा में सामान्यत: दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं।

इन्हे भी देखे