कैरल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
अगिनकोर्ट (Agincourt) का करोल् (१५वीं शताब्दी)

साधारणत:, मनुष्य या पक्षी के आह्लादमय गान को करोल या कैरल (Carol) कहते हैं। किन्तु आजकल विशेषत: क्रिसमस का धार्मिक गान ही करोल कहलाता है।

इतिहास

करोल का उदय फ्रांस के करोल (Carole) नामक लोकप्रिय सामूहिक नृत्य से माना जाता है जिसके महत्वपूर्ण अंग कविता और संगीत भी थे। १२वीं सदी में इसके माध्यम से फ्रांस ने मध्ययुगीन यूरोप के लोकजीवन, साहित्य और संस्कृति को प्रभावित किया। यूरोप में ईसाई धर्म के प्रचार के पूर्व, प्रकृतिपूजा के युग में, प्रजनन संबंधी कर्मकांडों, लीलाओं, सामूहिक उत्सवों और भोलों के अवसर पर नृत्यगान का आयोजन होता था। मसीही धर्म के प्रचार के बाद चर्च के नाक-भौं सिकोड़ने के बावजूद यह लोकपरंपरा हवेलियों से लेकर साधारण झोपड़ियों तक करोल के रूप में जीवित रही। उत्सवों, संतदिवसों और क्रिसमस इत्यादि के नैश जागरण के अवसर पर जनता इस सामूहिक नृत्यगान का आयोजन स्वयं चर्च के अहाते में ही करती रही।

करोल में समूह का नायक एक के बाद दूसरी नई पंक्ति को गाता जाता था और उनके बीच बाकी लोग एक दूसरे का हाथ पकड़कर चक्रनृत्य करते हुए टेक या धुन की पंक्तियाँ गाते थे। इन गानों में भोज के लिए आखेट में मारे हुए सुअर के सिर, हौली और आइवी की बोलियों के रूप में क्रमश: युवकों और युवतियों के केलिमय विवाद, अपानक, गड़ेरियों के वेणुवादन इत्यादि का प्रमुख उल्लेख प्रकृतिपूजा के युग की देन था। फ्रांस के कवियों में संयमित प्रेम से इन गीतों को निखारने का प्रयत्न किया, लेकिन प्रकृतिपूजा के युग के प्रतीक अपनी जगह पर कायम रहे। १४वीं सदी तक इसी प्रकार के नृत्यगान, आपानक और प्राय: असंयमित क्रीड़ाओं के आयोजन के साथ क्रिसमस का पर्व मनाया जाता रहा।

विवश होकर पादरियों को करोल पर धार्मिक रंग चढ़ाना पड़ा। इंग्लैंड में इस दिशा में सबसे बड़ा प्रयत्न संत फ्ऱांसिस के अनुयायी पादरियों का रहा। इस प्रकार १५वीं सदी में करोल के नृत्यगान से नृत्यमुक्त क्रिस्मस करोल का जन्म हुआ। किंतु पहले के लौकिक या धर्मनिरपेक्ष और प्रेमपरक गीतों की रचना भी होती रही। ऐसे गीत हेनरी अष्टम और वायट ने भी लिखे। करोल के दो रूपों-धर्मनिरपेक्ष और क्रिस्मस संबंधी या धार्मिक- के विकसित होने के बावजूद उनके बीच की विभाजक रेखा प्राय: बहुत अस्पष्ट है। उदाहरणार्थ, बहुत से गीत ऐसे हैं जिनमें कुमारी मरियम को विटप, पुष्प या मधुमास की देवी के रूप में चित्रित किया गया है। 'देयर इज़ ए फ़्लावर स्प्रंग ऑव ए ट्री', 'ऑव ए रोज़', 'लव्ली रोज़', 'देयर इज़ नो रोज़ ऑव सच वर्चू' आदि गीतों में कुमारी मरियम या तो स्वयं गुलाब का फूल है या गुलाब का पौधा जिसकी डाल पर ईसा जैसे गुलाब का फूल खिलता है। कुछ में कुमारी मरियम को पुत्र के वध पर विलाप करती हुई माँ के रूप में चित्रित किया गया है।

ये करोल १५वीं सदी की अंग्रेजी कविता की बहुत बड़ी उपलब्धि हैं। उन्होंने प्रवाहपूर्ण छंदों में धर्म के सूक्ष्म सिद्धांतों को नाटकीय शैली और चित्रमयी भाषा में सजीव कर दिया। उनमें लोकगीतों की स्वाभाविक सरलता और संगीतमाधुर्य है। इन गीतों का प्रभाव १६वीं सदी के अंत और १७वीं सदी के प्रांरभ के अनेक अंग्रेजी गायक कवियों पर पड़ा।

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • द अर्ली इंग्लिश कैरल (संपादक, ग्रीन);
  • इंग्लिश लिटरेचर ऐट द क्लोज़ ऑव द मिडिल एजेज़ (ऑक्सफ़र्ड हिस्ट्री ऑव इंग्लिश लिटरेचर)।