के-पीजी सीमा

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के-टी सीमा पर अक्सर पत्थर का रंग अचानक बदल जाता है - इन चट्टानों में के-टी सीमा के नीचे हल्के और उसके ऊपर गाढ़े रंग का पत्थर है
कनाडा में इस चट्टान पर के-टी सीमा स्पष्ट दिख रही है

के-पीजी सीमा (K–Pg boundary) या के-टी सीमा (K–T boundary) पृथ्वी पर मौजूद एक पतली भूवैज्ञानिक​ परत है। यह सीमा मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic Era, मीसोज़ोइक महाकल्प) के चाकमय कल्प (Cretaceous Period, क्रीटेशस काल) नामक अंतिम चरण के अंत और नूतनजीव महाकल्प (Cenozoic Era, सीनोज़ोइक महाकल्प) के पैलियोजीन कल्प (Paleogene Period) नामक प्रथम चरण की शुरुआत की संकेतक है। के-पीजी सीमा क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना के साथ सम्बन्धित मानी जाती है जिसमें विश्व भर के डायनासोर मारे गये और पृथ्वी की उस समय की लगभग ७५% वनस्पतिजानवर जातियाँ हमेशा के लिये विलुप्त हो गई। इस सीमा की आयु आज से लगभग ६.६ करोड़ वर्ष पूर्व निर्धारित की गई है।[१]

क्षुद्रग्रह प्रहार और महाविलुप्ति का सिद्धांत

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। सन १९८० में नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी लुईस वाल्टर अल्वारेज़, उनके भू-विज्ञानी पुत्र वाल्टर अल्वारेज़, और रसायन विज्ञानी फ्रैंक असारो और हेलेन मिशेल ने अपने एक अध्ययन में दुनिया भर की परतदार शिलाओं पर जाँच करी और पाया कि उनमें के-पीजी सीमा वाली परत में अत्याधिक इरिडियम नामक धातु का संकेंद्रण (कॉन्सनट्रेशन​) था। यह धातु पृथ्वी की ऊपरी सतहों में कम ही मिलती है। पाया गया कि कई शिलाओं की के-पीजी सीमा में औसत से ३० गुना से लेकर १२० गुना इरिडियम का जमावड़ा उपस्थित था। इस जमावड़े का पृथ्वी पर स्वयं ही पैदा होने का कोई कारण ज्ञात​ नहीं है क्यूंकि इरीडियम लोहे की तरफ आकर्षित होने वाला तत्व है इसलिए इसकी अधिकाँश मात्रा धरती के निर्मांण के समय ही कोर में मौजूद लोहे से आकर्षित हो के केन्द्र में चली गई। लेकिन इस से मिलता-जुलता इरिडीयम संकेंद्रण कई क्षुद्रग्रहों (ऐस्टरायडों) में मिलता है। वैज्ञानिकों ने पूर्ण विश्व की के-पीजी सीमा में बसे हुए इरिडियम की मात्रा का अनुमान लगाते हुए हिसाब लगाया कि उसे पृथ्वी पर लाने के लिये प्रहार करने वाला क्षुद्रग्रह कम-से-कम १० किमी का रहा होगा और उसके प्रहार ने १० नील (१०० ट्रिलियन) टन टीएनटी के ज़ोर का विस्फोट किया होगा। तुलना के लिये यह मानव द्वारा किये गये सबसे शक्तिशाली हाईड्रोजन बम के धमाके से २० लाख गुना अधिक है।[२]

अल्वारेज़ के धूमकेतु की टक्कर वाले इस सिद्धांत के सबूत इस बात से भी सही प्रतीत होते हैं कि कॉन्ड्राइट, उल्का पिंड और क्षुद्रग्रहों में मिलने वाले इरिडियम की भारी मात्रा जो कि लगभग ~455 अंश प्रति अरब है [३] धरती की उपरी परतों में मिलने वाले ~0.3 अंश प्रति अरब से कहीं ज्यादा है।[२] के-पीजी सीमा वाली परत में पाए जाने वाले क्रोमियम के समस्थानिक असंगतियाँ कार्बनमय कॉन्ड्राइटों से बने क्षुद्रग्रहों और उल्कापिंडों के समान हैं। Shocked quartz के कण, tektite शीशे की गोलियाँ जो कि टक्कर को इंगित करते हैं भी के-पीजी सीमा में भारी मात्रा में पाए जाते हैं, खासकर कैरेबियन द्वीपों के आसपास। यह सारे मिट्टी की एक परत में समाहित और गुथे हुए हैं जिसे अल्वारेज़ और साथियों ने दुनिया भर में इस भीषण टक्कर से फैला मलबा माना है।[२]

इस प्रहार के कारण धूल का एक महान बादल पूरे विश्व पर फैल गया होगा, जिसमें गंधक के तेज़ाब की महीन बूंदे भी सम्मिलित रही होंगी। यह बादल कई वर्षों तक क़ायम रहा। इस धूल के कारण धरती पर पड़ने वाली सूरज की किरणों में अनुमानित २०% की कमी आई जिस से औसत तापमान में अत्यंत कमी आई। सौर-प्रकाश की कमी से पौधों में प्रकाश-संश्लेषण (फ़ोटोसिन्थसिस​) भी बहुत कम हुआ। पौधे मरे, फिर उन्हें खाने वाले प्राणी मरे और फिर उन प्राणियों को खाने वाले मांसाहारी जानवर मरे। साथ-ही-साथ जब वर्षा हुई तो उसमें तेज़ाब भी शामिल था। प्रहार के ज़ोर से बहुत से बड़े पत्थर भी वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष तक उछाले गए और फिर वापिस पृथ्वी पर तेज़ी से गिरे। अनुसंधान ने दिखाया है कि उस समय वायुमंडल में लगभग ३०% ऑक्सीजन था जो आज की तुलना में अधिक था। इस तेज़ गति से गिरते हुए मलबे ने अधिक ऑक्सीजन​ में आग पकड़ ली और पूरी पृथ्वी पर आकाश से जलते हुए मलबे की बारिश हुई। जब तक पृथ्वी लगभग १० वर्षों के बाद अपनी मामूली स्थिति में वापस पहुँच पाई और धूल बैठने के साथ आकाश से तेज़ाब भी धुलकर हट गया, तब तक विश्वभर के अधिकतर बड़े जीव विलुप्त हो चुके थे। डायनासोरों का युग समाप्त हो गया जिस से स्तनधारियों को उभरने का मौक़ा मिला। [४]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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