बारहठ कृष्णसिंह
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ठाकुर कृष्णसिंह बारहठ (सन 1849 - सन 1906) अर्ध-स्वतंत्र राज्य शाहपुरा के प्रतोली-पात्र (पोळपात), इतिहासकार, कवि एवं मनीषी थे। वे हिन्दी, संस्कृत, डिंगल, पिंगल के अच्छे कवि और विद्वान् एवं अंग्रेजी भाषा के भी अच्छे जानकार थे। राजस्थान में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की अलख जगाने वाले तथा अपनी तीन पीढ़ियों को क्रांतियज्ञ में आहूत करने वाले ठाकुर केसरी सिंह बारहट व जोरावर सिंह बारहट इनके पुत्र थे।
परिचय
ठाकुर कृष्ण सिंह बारहट का जन्म सन 1849 में शाहपुरा में हुआ था। राजस्थान में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की अलख जगाने वाले तथा अपनी तीन पीढ़ियों को क्रांतियज्ञ में आहूत करने वाले ठाकुर केसरी सिंह बारहट व जोरावर सिंह बारहट इनके पुत्र थे। ये शाहपुरा राजाधिराज नाहरसिंह की तरफ से उदयपुर महाराणा सज्जनसिंह के दरबार में वकील थे। उदयपुर महाराणा, कृष्णसिंह की योग्यता से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने कृष्णसिंह को शाहपुरा राजाधिराज की तरफ से वकील होने के साथ-साथ अपना सलाहकार भी नियुक्त कर दिया। कृष्णसिंह के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने लिखा है कि वे महर्षि दयानन्द सरस्वती के तीन प्रमुख शिष्यों में से एक थे। प्रथम, अमर-शहीद स्वामी श्रद्धानन्द, द्वितीय, महान क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, मांडवी (गुजरात) जिन्हें महर्षि ने बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए आक्सफोर्ड भिजवाया था। और तृतीय कृष्णसिंहजी, जिनके साथ उनकी गाढ़ी मैत्री थी।
कृतियाँ
बारहठ कृष्ण सिंह जी ने प्रमुख रूप से निम्न ग्रंथों की रचना की[१]:
- (1) महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के वृहत ऐतिहासिक ग्रंथ वंश-भास्कर की उदधि-मंथिनी टीका, पृष्ठ सं. 5000
- (2) बारहठ कृष्णसिंह का जीवन चरित्र और राजपूताना का अपूर्व इतिहास (तीन खण्ड), पृष्ठ सं. 979[२]
- (3) डिंगल भाषा का प्रथम शब्द-कोष, जिसमें उन्होंने अस्सी हजार शब्द एकत्रित किये थे और उसकी विशद भूमिका भी लिखी थी
- (4) चारण कुल प्रकाश
- (5) मेवाड़ गजेटियर
इनके अतिरिक्त भी इनके कई फुटकर लेख एवं रचनाएं हैं।