काशीपुर का चैती मेला

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चैती मेला
Mata Bala Sundari temple, Kashipur, Uttarakhand 10.jpg
माता बाल सुन्दरी मन्दिर के निकट चैती मेले का मैदान, काशीपुर जहां चैती मेला आयोजित होता है।
आधिकारिक नाम चैती मेला
अनुयायी हिन्दू
प्रकार हिन्दू
आरम्भ नवरात्रि चैत्र मास

साँचा:main other

चैती मेला (जिसे चैती का मेला भी कहा जाता है) क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला है। इसका आयोजन उधमसिंह नगर जिले में काशीपुर में प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है। काशीपुर में कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और यहीं बालासुन्दरी देवी का मन्दिर है जो इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं।[१]

मेला

माता बाल सुन्दरी मन्दिर जिन्हें चैती माता भी कहते हैं, उनका मन्दिर।

शाक्त सम्प्रदाय से सम्बन्धित अधिकांश मंदिरों में नवरात्रि में मेले लगते हैं, वैसे ही माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर में भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ पड़ता है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ तरह-तरह की दुकानें भी मेले में लगती हैं। यहां देवी महाकाली के मंदिर में बलि भी चढाई जाती थी। अन्त में दशमी की रात्रि को बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है। प्राय: चैती मेले में पूरी ऊर्जा काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचने पर ही आती है। डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है। डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। मेले का समापन इसके बाद ही होता है। जनविश्वास के अनुसार इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।

मन्दिर

इस स्थान पर भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से माता सती के अंगों को काट दिये जाने के बाद माता की दायीं भुजा यहां गिरी थी। तभी यहां माता की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिला पर उनकी दायीं भुजा की आकृति गढी हुई है, उसी की पूजा की जाती है।[२]

बालासुन्दरी के अलावा यहाँ शिव मंदिर, भगवती ललिता मंदिर, बृजपुर वाली देवी के मंदिर, भैरव व काली के मंदिर भी हैं। माँ बालासुन्दरी का एक स्थाई मंदिर पक्काकोट मोहल्ले में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के क्षेत्र में स्थित है। इन ब्राह्मण परिवारों को स्थानीय चंदराजाओं से यह भूमि दानस्वरूप प्राप्त हुई थी। बाद में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया । बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती है।

मान्यताएं

मन्दिर परिसर स्थित खोखला पाकड वृक्ष।

लोक मान्यतानुसार जो लोग इस मन्दिर के वर्तमान पण्डे हैं, उनके पूर्वज मुगलों के समय में यहाँ आये थे और उन्होंने ही इस स्थान पर माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर की स्थापना की। तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी इस मंदिर को बनाने में सहायता दी थी। इस मंदिर परिसर में एक पाकड़ का पेड़ स्थित है। इसका तना और पतली टहनी तक सब खोखला है। स्थानीय पंडा पेड़ के संबंध में मान्यता बताते हैं कि एक बार एक महात्मा आए उन्होंने मंदिर के पुजारी पंडा को शक्ति दिखाने को कहा तो पंडा ने कदंब के पेड़ पर पानी का छींटा मारा तो पेड़ फ़ौरन सूख गया। तब उन्होंने फिर उसे हरा करने को कहा तो पंडा ने पेड़ हरा कर दिया, लेकिन पेड़ खोखला रह गया।[३] यह पेड आज भी यहां दिखाई देता है।

चित्र दीर्घा

स्थानीय बुक्सा जाति के लोगों की इस देवी पर बहुत आस्था है और बुक्सों के नवविवाहित जोड़े माँ से आशीर्वाद लेने चैती मेले में जरुर अवश्य पहुँचते हैं।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कडियां

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