काला अजार
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
काला अज़ार वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
Amastigotes in a chorionic villus | |
आईसीडी-१० | B55.0 |
आईसीडी-९ | 085.0 |
डिज़ीज़-डीबी | 7070 |
ईमेडिसिन | emerg/296 |
एम.ईएसएच | D007898 |
कालाजार (अंग्रेज़ी:विस्केरल लीश्मेनियेसिस) धीरे-धीरे विकसित होने वाला एक देशी रोग है जो एक कोशीय परजीवी या जीनस लिस्नमानिया से होता है। कालाजार के बाद डरमल लिस्नमानियासिस (पीकेडीएल) एक ऐसी स्थिति है जब लिस्नमानिया त्वचा कोशाणुओं में जाते हैं और वहां रहते हुए विकसित होते हैं। यह डरमल लिसियोन के रूप में तैयार होते हैं। कई कालाजार में कुछ वर्षों के उपचार के बाद पी के डी एन प्रकट होते हैं।
लक्षण
- बुखार अक्सर रुक-रुक कर या तेजी से तथा दोहरी गति से आता है।
- भूख न लगना, पीलापन और वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता
- कमजोरी
- प्लीहा का अधिक बढ़ना- प्लीहा तेजी से अधिक बढ़ता है और सामान्यतः यह नरम और कड़ा होता है।
- जिगर का बढ़ना लेकिन प्लीहा के जितना नहीं, यह नरम होता है और इसकी सतह चिकनी होती है तथा इसके किनारे तेज होते हैं।
- लिम्फौडनोपैथी- भारत में सामान्यतः नहीं होता है।
- त्वचा-सूखी, पतली और शल्की होती है तथा बाल झड़ सकते हैं। गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार पड़ा अर्थात काला बुखार।
- खून की कमी-बड़ी तेजी से खून की कमी होती है।
एच.आई.वी तथा कालाजार का एक साथ संक्रमण
- एच आई वी तथा अन्य ऐसे रोगियों में, जिनकी प्रतिरक्षा निरोधक क्षमता नहीं होती। उनमें विसीरल लिस्मानियासिस (वी एल) संक्रमण अक्सर पाया जाता है।
संक्रमण
- कालाजार एक रोग वाहक जाति का रोग है।
- उपलब्ध जानकारी के अनुसार फ्लैबोटोमस अर्जेन्टाइप्स जीन्स वाली मक्खी भारत में कालाजार का रोगवाहक है।
- भारत में कालाजार छूत की एक विशेष प्रकार की बीमारी है क्योंकि इसमें एन्थ्रोपोनिटिक होता है। मनुष्य से यह बीमारी फैलती है।
- महिला मक्खी, इस रोग से ग्रस्त मनुष्य को काटकर वहां से कीटाणुओं (एम्स्टीगोट या एल डी बाडी) को लेकर यह बीमारी फैलाती है।
भारत में कालाजार रोगवाहक
- भारत में कालाजार फैलाने वाली एक मात्र रोगवाहक मक्खी है - फ्लैबोटामस अर्जेंटाइप्स।
- यह मक्खी छोटे कीड़े होते हैं जिसका आकार मच्छर का एक चौथाई होता है। इस मक्खी के शरीर की लंबाई 1.5 से 3.5 मिमी होती है।
- वयस्क मक्खी रोएंदार होती हैं जिसके सीधे पंख आयु के अनुपात में छोटे- बड़े होते हैं।
- इसका जीवन अंडे से शुरू होता है तथा लार्वा, प्यूपा के स्तर से होते हुए व्यस्क के रूप में पनपते है। इस पूरे चक्र में लगभग एक महीना लग जाता है। तथापि तापमान तथा अन्य भौगोलिक परिस्थितियों पर इसका विकास निर्भर करता है।
- इन मक्खियों के लिए आपेक्षिक उमस, गरम तापमान, उच्च अवमृदा पानी, घने पेड़ पौधे लाभकारी होते हैं।
- लार्वा के भोजन के लिए उपयुक्त उच्च जैव पदार्थ वाले स्थानों की सूक्ष्म जलवायु वाली परिस्थितियां इन मक्खियों के पनपने के लिए उपयुक्त हैं।
सन्दर्भ
सामान्य बोलचाल कि भाषा में इसे बालू मक्खी या सैंड फ्लाई कहा जाता है।
इन्हें भी देखें
- बालूमाक्षिका ज्वर (sandfly fever)