कार्ल रोजर्स

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
कार्ल रोजर्स (Carl Rogers)
जन्म साँचा:birth date
Oak Park, Illinois, U.S.
मृत्यु साँचा:death date and age
San Diego, California, U.S.
राष्ट्रीयता American
क्षेत्र Psychology
संस्थान Ohio State University
University of Chicago
University of Wisconsin–Madison
Western Behavioral Sciences Institute
Center for Studies of the Person
शिक्षा University of Wisconsin–Madison
Teachers College, Columbia University
प्रसिद्धि The Person-centered approach (e.g., Client-centered therapy, Student-centered learning, Rogerian argument)
प्रभाव Otto Rank, Kurt Goldstein, Friedrich Nietzsche, Alfred Adler
उल्लेखनीय सम्मान Award for Distinguished Scientific Contributions to Psychology (1956, APA); Award for Distinguished Contributions to Applied Psychology as a Professional Practice (1972, APA); 1964 Humanist of the Year (American Humanist Association)

स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

कार्ल रोजर्स (Carl Ransom Rogers) (8 जनवरी 1902 – 4 फ़रवरी 1987) अमेरिका के प्रसिद्ध मनश्चिकित्सक थे। मनश्चिकित्सा में मानवीय संवेदना को स्थान देने के लिये प्रसीध हैं।

उपचारार्थी केंद्रित मनश्चिकित्सा नामक मानसिक रोगों के निवारण की एक मनोवैज्ञानिक विधि कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित की गई है। रोजर्स का स्व-वाद प्रसिद्ध है जो अधिकांशत: उपचार प्रक्रिया या परिस्थितियों से उद्भूत प्रदत्तों पर अवलंबित है। रोजर्स की मूल कल्पनाएँ स्वविकास, स्वज्ञान, स्वसंचालन, बाह्य तथा आंतरिक अनुभूतियों के साथ परिचय, सूझ का विकास करना, भावों की वास्तविक रूप में स्वीकृति इत्यादि संबंधी हैं। वस्तुत: व्यक्ति में वृद्धिविकास, अभियोजन एवं स्वास्थ्यलाभ तथा स्वस्फुटन की स्वाभाविक वृत्ति होती है। मानसिक संघर्ष तथा संवेगात्मक क्षोभ इस प्रकार की अनुभूति में बाधक होते हैं। इन अवरोधों का निवारण भावों के प्रकाशन और उनको अंगीकार करने से सूझ के उदय होने से हो जाता है।

इस विधि में ऐसा वातावरण उपस्थित किया जाता है कि रोगी अधिक से अधिक सक्रिय रहे। वह स्वतंत्र होकर उपचारक के सम्मुख अपने भावों, इच्छाओं तथा तनाव संबंधी अनुभूतियों का अभिव्यक्तीकरण करे, उद्देश्य, प्रयोजन को समझे और संरक्षण के लिए दूसरे पर आश्रित न रह जाए। इसमें स्वसंरक्षण अथवा अपनी स्वयं देख देख आवश्यक होती है। उपचारक परोक्ष रूप से, बिना हस्तक्षेप के रोगी को वस्तुस्थिति की चेतना में केवल सहायता देता है जिससे उसके भावात्मक, ज्ञानात्मक क्षेत्र में प्रौढ़ता आए। वह निर्देश नहीं देता, न तो स्थिति की व्याख्या ही करता है।

बाहरी कड़ियाँ