कल्याण वर्मा
कल्याण वर्मा भारत के एक ज्योतिषाचार्य थे जिन्होने 'सारावली' नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की है। इसमें उन्होने अपना जन्मस्थान 'देवग्राम' बताया है। किन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि यह ग्राम कहाँ था। उनके जीवनकाल के बारे में भी ठीक-ठीक पता नहीं है। किन्तु कुछ विश्लेषणों के अनुसार सारावली के रचयिता कल्याण वर्मा रीवा जिला के बघेल खण्ड में बघेल राजपूत परिवार में जन्मे थे। उनका पूर्व नाम कर्ण देव था और इनका जन्म विक्रमी संवत १२४५ के आस पास का माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र वेदाङ्गों में सर्वश्रेष्ठ शास्त्र है। इस शास्त्र के तीन भाग हैं-
इन तीनों भागों को महॠषियों के द्वारा प्रणीत होने के कारण जीवन में होने वाली घटनाओं का सत्य कथन सम्भव है। श्री कल्याण वर्मा के द्वारा रचित प्रमुख ज्योतिष ग्रंथ सारावली होरा शास्त्र के रूप में ही है।
सारावली के अनुसार सकल अरिष्ट भंग योग
आचार्य कल्याण वर्मा ने सारावली में अपने १२ वें अध्याय में सभी अरिष्टों के भंग होने के योग बताये है, जो निम्नप्रकार हैं-
- सर्वातिशाय्यातिबल: स्फुरदंशुमाली लग्ने स्थित: प्रशमयेत् सुरराजमन्त्रा।
- एको बहूनि दुरितानि सुदुस्तराणि भक्त्या प्रयुक्त् इव चक्रधरे प्रणाम:।।१।।
- सौम्यग्रहैरतिबलैर्विबलैश्च पापै लग्नं च सौम्यभवने शुभदृष्टियुक्त्म् ।
- सर्वापदाविरहितो भवति प्रसूतः पूजाकर: खलू यथा दुरितैर्ग्रहाणाम्।।२।।
आचार्य कल्याण वर्मा के मत से यदि सभी ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान् अति चमकदार बृहस्पति अर्थात् उच्च का स्वग्रही, सूर्य से दूर याने वक्री होनपर लग्न में स्थित हो, तो बहुत अरिष्टों का नाश करता है, जैसे विभक्ति से युक्त पुरूष विष्णु भगवान् को प्रणाम करने से सहस्त्रों पापों से मुक्त होता है।
सभी शुभग्रह (चन्द्र, बुध, गुरू, शुक्र) अत्यन्त बलवान् तथा पापग्रह(मंगल, शनि, रवि, निर्बल चद्र) निर्बल हो और शुभग्रह का लग्न हो, शुभग्रह से दृष्ट हो, तो इस योग में उत्पन्न बालक सभी आपदाओं से रहित होता है, जैसे कि ग्रहों के पूजा से ग्रहजनित दुरित नाश होता है।।१-२।।
पापा यदि शुभवर्गे सौम्यैर्दृष्टा: शुभांशवर्गस्थै:।
निघ्नन्ति तदा रिष्टं पतिं विरक्ता यथा युवति:।।३।।
राहुस्त्रिषष्ठलाभे लग्नात् सौम्यैर्निरीक्षित: सद्य:।
नाशयति सर्वदुरितं मारूत इव तूलसंघातम्।।४।।
शुक्र अनुसार यदि पापग्रह शुभग्रह के वर्ग में स्थित शुभग्रह के नवांश और वर्ग में स्थित शुभग्रहों से दृष्ट हो, तो अरिष्ट का नाश करते हैं, जैसे कि पति से विरक्त् स्त्री पति का नाश करती है।
यदि लग्न से ३।६।११ में से किसी स्थान में स्थित राहु शुभग्रहों से दृष्ट हो, तो अपने आप अरिष्ट् का नाश करता है, जैसे कि वायु का वेग रूई के गल्ले (ढेर) का नाश करता है।।३-४।।
शीर्षोदयेषु राशिषु सर्वैर्गगनाधिवासिभि: सूतौ।
प्रकृतिस्थैश्चारिष्टं विक्रियते घृतमिवाग्निष्ठम्।।५।।
तत्काले यदि विजयी शुभग्रह: शुभनिरीक्षितो वर्गे।
तर्जयति सर्वरिष्टं मारूत इव पादपान् प्रबल:।।६।।
परिविष्टो गगनचर: क्रुरैश्च विलोकितो हरति पापम्।
स्नानं सन्निहितानां कृतं यथा भास्करग्रहणे।।७।।
सूत्र के अनुसार यदि जन्म समय सभी ग्रह शीर्षोदय राशि में स्थित हो, तो प्रकृतिस्थ सभी अरिष्टों का नाश करता है। जैसे कि आग पर तपा देने से घृत का विकार नष्ट हो जाता है।
यदि जन्माण्ड् में तत्काल शुभग्रह विजयी हो, शुभग्रह के वर्ग में शुभ दृष्ट हो, तो सभी अरिष्ट् प्रबल वायु के वेग से वृक्ष की भॉति नष्ट् हो जाते है।
जन्म समय यदि कोई ग्रह परिवेष मण्डल के अन्तर्गत हो और पापग्रहों से दृष्ट हो, तो अरिष्ट का नाश करता है, जैसे कि भास्कर के ग्रहण काल में स्नान करने से पाप दूर होता है।।५-७।।
स्रिग्धमृदुपवनभाजो जलदाश्च तथैव खेचरा: शस्ता:।
स्वस्था: क्षणाच्च रिष्टं शमय्न्ति रजो यथाम्बुधारौध:।।८।।
उदये चागस्त्यमुने: सप्तर्षीणां मरीचिपुत्राणाम्।
सर्वारिष्टं नश्यति तम इव सूर्योदये जगत:।।९।।
अजवृषकर्किविलग्ने रक्षति राहु: समस्तपीडाभ्य:।
पृथ्वीपति: प्रसन्न: कृतापराधं यथा पुरूषम्।।१०।।
स्निग्ध, मृदु तथा पवनप्रदायक और जलदयोग करने वाले तथा प्रशस्त ग्रह शीघ्र अरिष्ट का नाश करते है – जैसे कि वर्षा की धारा धूलि का नाश करती है।
अगस्त मुनि तथा मरीच्यादि सप्तर्षियों का उदय सभी अरिष्टो का नाश करते है, जैसे कि सूर्योदय संसार के अंधकार को दूर करता है।
जन्म् समय में लग्न स्थान में मेष, वृष या कर्क राशि का राहू हो तभी सभी प्रकार के अरिष्टो से रक्षा करता है। जैसे कि प्रस्न्न राजा अपराधियो कि रक्षा करता है।
र्यत्नेन भंगमपरे सरोजजन्मातिविस्मयं कुरूते।
तज्ज्ञ: कष्टमनिष्टं समतटदेशे यथा किरट:॥११॥
आचार्य के अनुसार और भी अन्य अरिष्ट् भंग योग से अरिष्ट से उत्पन्न् होने वाले दू:खो का तथा अनिष्टं से ब्रम्हा आश्चर्य करते है। (अर्थात् सभी दु:खो का निर्माण होता है) जैसे कि समतट देश में गिरगिट आश्चर्य को करता है।
बहवो यदि शुभफलदा: खेटास्तत्रापि शीर्यते रिष्टम्।
सुर्यात् त्रिकोण इन्दौ यथैव यात्रा नरेन्द्रस्य्॥१२॥
गुरूशुकौ च केन्द्रस्थौ जीवेद्वर्षशतं नर:।
गृहनिष्टं हिनस्त्याशु चन्द्रानिष्टं तथैव च॥१३॥
इस सुत्र के अनुसार यदि अधिक ग्रह शुभफल करने वाले हों तथा सूर्य से त्रिकोण में अर्थात् पंचमनवम चन्द्रमा हो, तो राजा के यात्रा की भॉति समस्त् कष्टो का निवारण होता है।
ब्रहस्पति तथा शुक्र केंन्द्र में हो, तो १०० सौ वर्ष की आयु होती है और सभी ग्रहो के अरिष्ट तथा चंद्र से उत्पन्न होनेवाले अरिष्टो का नाश होता है ॥१२-१३॥
बन्ध्वास्पदोदयविलग्नगतौ कुलीरे
गीर्वाणनाथसचिव: सकलश्च चन्द्र:।
जूके रवीन्दूतनयावपरे च लाभे
दुश्चिक्यशत्रुभवनेष्वमितं तदायु:॥१४॥
यदि कर्क राशिस्थ् सम्पूर्ण चन्द्रमा अर्थात् पोर्णिमा का जन्म् हो ब्रहस्पति से युक्त् होकर चतुर्थ या दशम अथवा लग्न में हो और तूला राशि में शनि, बुध तथा शेष ग्रह ३/६ या ११ स्थान में हो, तो अमितायुयोग अर्थात् १२० वर्ष से भी अधिक होता है॥१४॥
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- सारावली ('कान्तिमती' हिन्दी व्याख्या सहित)