कमन पोडिगई

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तमिलनाडु में होली का दिन कामदेव को समर्पित होता है। इसके पीछे भी एक किवदन्ती है। प्राचीन काल में देवी सती (भगवान शंकर की पत्नी) की मृत्यू के बाद शिव काफी क्रोधित और व्यथित हो गये थे। इसके साथ ही वे ध्यान मुद्रा में प्रवेश कर गये थे। उधर पर्वत सम्राट की पुत्री भी शंकर भगवान से विवाह करने के लिये तपस्या कर रही थी। देवताओ ने भगवान शंकर की निद्रा को तोड़ने के लिये कामदेव का सहारा लिया। कामदेव ने अपने कामबाण के शंकर पर वार किया। भगवन ने गुस्से में अपनी तपस्या को बीच में छोड़कर कामदेव को देखा। शंकर भगवान को बहुत गुस्सा आया कि कामदेव ने उनकी तपस्या में विध्न डाला है इसलिये उन्होने अपने त्रिनेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। अब कामदेव का तीर तो अपना काम कर ही चुका था, सो पार्वती को शंकर भगवान पति के रूप में प्राप्त हुए। उधर कामदेव की पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप में गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने में पीड़ा ना हो। साथ ही बाद में कामदेव के जीवित होने की खुशी में रंगो का त्योहार मनाया जाता है।]]

स्रोत

कमन पोडिगई