कंडार देवता

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

ऋषिकेश से 160 किलोमीटर व देहरादून से 140 किलोमीटर की दूरी पर बसा सीमांत जनपद उत्तरकाशी । बस अड्डे से आधा किलोमीटर दूर कलक्ट्रेट के पास कंडार देवता का भव्य मंदिर है। यह मंदिर वर्षों पुराना है। उत्तरकाशी शहर के निकट संग्राली, पाटा, बग्यालगांव में भी कंडार देवता के मंदिर हैं।

इतिहास और यह के पूर्वजो के अनुसार राजशाही के समय यही कलक्ट्रेट के पास खेत पर हल लगाते हुए एक किसान को अष्टधातु से बनी अद्भुत प्रतिमा प्राप्त हुई. राज्य की संपत्ति मानकर किसान ने प्रतिमा को राजा को सौंप दिया तत्पश्चात राजा ने इस प्रतिमा को अपने देवालय में रखी अन्य मूर्तियों के नीचे स्थान दिया. सुबह जब राजा देवालय में पूजा करने पहुंचे तो उन्होंने इस प्रतिमा को अन्य मूर्तियों की अपेक्षा सबसे ऊपर पाया. इसके बाद राजा ने इस प्रतिमा को परशुराम मंदिर में पहुंचा दिया. परशुराम मंदिर के पुजारी ने प्रतिमा की विलक्षणता को समझते हुए इसे नगर से दूर वरुणावत पर्वत पर स्थापित करने का सुझाव दिया.

       भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाले श्री कंडार देवता को संग्राली,  पाटा, खांड, गंगोरी, लक्षेस्वर, बाडाहाट (उत्तरकाशी), बसुंगा गांवों का रक्षक देवता माना जाता है. वरुणावत पर्वत पर संग्राली गाँव में मूल रूप से स्थापित श्री कंडार देवता के दिव्य स्वरुप के कारण आज भी वहां सदियों से चली आ रही परम्पराएँ जीवित हैं.

        संग्राली गाँव में पंडित की पोथी डॉक्टर की दवा, कोतवाल का आदेश काम नहीं आता ! यहाँ केवल कंडार देवता का आदेश ही सर्वमान्य है. ये मंदिर श्रृद्धा व आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि ऐसा न्यायालय भी है जहाँ जज, वकीलों की बहस नहीं सुनता बल्कि देवता की डोली स्वयं ही फैसला सुनाती है.

पंचायत प्रांगण में तय ग्रामीण डोली (तस्वीर में दृष्टव्य)  को कंधे पर रख कर देवता का स्मरण करते हैं और डोली डोलते हुए नुकीले अग्रभाग से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती है इन रेखाओं के आधार पर ही फैसले, शुभ मुहूर्त आदि तय किये जाते हैं. इन रेखाओं के आधार पर जन्म कुंडली भी बनायीं जाती है.

स्थानीय निवासियों में शिव का स्वरुप माने जाने वाले कंडार देवता के प्रति इतनी अधिक श्रद्धा है कि पंडितों द्वारा जन्म कुंडली मिलान करने पर विवाह के लिए मना किये जाने पर वे विवाह देवता की आज्ञा पर तय कर जाते हैं. गाँव में बीमार होने पर पीड़ित को देवता के पास लाया जाता है, सिरदर्द, बुखार दांत दर्द आदि समस्याएँ ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे पहले थी ही नहीं.

       श्री कंडार देवता के मूल मंदिर का स्थान संग्राली गाँव, उत्तरकाशी शहर से कुछ दूर और चढ़ाई वाले मार्ग पर है