ऐस्टरेसिए
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ऐस्टरेसिए | |
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ऐस्टरेसिए (उर्फ़ कम्पोज़िटी) कुल के कुछ पौधों के फूल | |
Scientific classification | |
उपकुल | |
Asteroideae Lindley | |
Synonyms | |
Compositae Giseke |
कंपोज़िटी (compositae) या ऐस्टरेसिए (Asteraceae) फूलवाले पौधों का एक कुल है। इस कुल को हिंदी में संग्रथित कुल कह सकते हैं। इस कुल में अन्य कुलों की अपेक्षा बहुत अधिक पौधे हैं और ये विश्वव्यापी भी हैं।
परिचय
इस कुल में १२ उपकुल, लगभग १६२० प्रजातियाँ (जेनेरा) और २३,००० स्पेसीज हैं। प्रत्येक फूल वस्तुतः कई पुष्पों का गुच्छ होता है। साधारण गेंदा नामक फूल का पौधा इसी कुल में है। इस कुल के पौधों में बड़ी भिन्नता होती है। अधिकांश पौधे शाक के समान हैं। संसार के उष्ण भागों में भी इस कुल के अनेक झाड़ियाँ और वृक्ष पाए जाते हैं। कुल पौधे आरोही होते हैं। पत्तियाँ बहुधा गुच्छों में होती हैं। जिन पौधों में तने लंबे होते हैं, उनमें पत्तियाँ साधारणतः एकांतर होती हैं। जड़ बहुधा मोटी होती है और कभी-कभी उसमें कंद होता है, जैसे डालया (Dahlia) में। कुछ पौधों के तनों में दूध के सदृश रस रहता है। जैसा पहले बताया गया है, फूल शीर्षों (कैपिट्यूला, capitula) में एकत्र रहते हैं। ये चारों ओर हरे निपत्रों (ब्रैक्ट, Bract) से घिरे रहते हैं। जब फूल कलिकावस्था में रहता है तो इन्हीं से उसकी रक्षा होती है। ये ही बाह्यदल-पुंज (कैलिक्स, calyx) का काम देते हैं। ये फूल के शीर्ष परागण के लिए अत्युत्तम रूप से व्यवस्थित होते हैं। फूलों के एक साथ एकत्र रहने के कारण किसी एक कीट के आ जाने से अनेक का परागण हो जाता है। वर्तिका (स्टाइल, style) की जड़ पर मकरंद निकालता है और दलपुंज नलिका (कौरोला ट्यूब, corolla tube) के कारण वर्षा से अथवा ओस से बहने नहीं पाता। छोटे होंठ के कीट भी इस मकरंद को प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि दलपुंज नलिका लंबी होती है।
फूल का जीवनेतिहास दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। आरंभ में तो फूल नर का काम करते हैं और अंत में नारी का। इस प्रकार इन फूलों में साधारणत: परपरागण होता है, स्वयंपरागण नहीं। परंतु कुछ फूलों में एक तीसरी अवस्था भी होती है, जिसमें वर्तिकाग्र (स्टिग्मा, stigma) पीछे मुड़ जाता है और बचे खुचे परागणों को, जो नीचे की वर्तिका (स्टाइल) पर पड़े रहते हैं, छू देता है। यदि परपरागण नहीं हुआ रहता तो इस प्रकार स्वयंपरागण हो जाता है।
फलों के वितरण की विधियाँ भी अनेक होती हैं। कुछ फलों में बीज में रोएँ लगे रहते हैं, जिससे वे दूर-दूर तक उड़ जाते हैं। कुछ में काँटे होते हैं, जिनसे वे पशुओं की खाल में चिपककर अन्यत्र पहुँच जाते हैं। कभी-कभी बीज अपने स्थान पर ही पड़े रहते हैं और पौधे को झटका लगने पर इधर-उधर बिखर जाते हैं।
उपयोगिता
इस परिवार के कुछ सदस्य आर्थिक लाभ के हैं, जैसे लैक्ट्यूका सैटाइवा (Lactuka Sativa), चिकरी (सिकोरियम, cichorium), हाथी चोक (आर्टिचोक, Artichoke)। बहुत से सदस्य अपने सुंदर फूल के कारण उद्यान में उगाए जाते हैं, जैसे ज़िन्निआ, सूरजमुखी, गेंदा, डालिया इत्यादि। कुछ औषधि के भी काम में आते हैं। आरटीमिज़िया वल्गेरिस (Artimisia vulgaris) से 'सैंटोनिन' दवा बनती है। पाईथ्रोम से कीट मारने का चूर्ण बनाया जाता है। यह पुष्प प्रसिद्ध गुलदाउदी (क्राइसैंथिमम, Chrysanthemum) की प्रजाति का है। पार्थेनियम की एक जाति से एक प्रकार का रबर होता है।
इन्हें भी देखें
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