एल नीनो

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(एल-नीनो से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
दक्षिण प्रशांत महासागर का औसत परिसंचरण

ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए उत्तरदायी समुद्री घटना को एल नीञो साँचा:langWithName कहा जाता है। यह दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित ईक्वाडोर, चिली और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है। इससे परिणाम स्वरूप समुद्र के सतही जल का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। इसका विस्तार ३° (3)°दक्षिण से १८° (18)°दक्षिण अक्षांश तक रहता है|

अर्थ

एल नीञो स्पेनी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- छोटा बच्चा इसे यह नाम पेरू के मछुआरों द्वारा बाल ईसा के नाम पर किया गया है क्योंकि इसका प्रभाव सामान्यतः क्रिसमस के आस-पास अनुभव किया जाता है।[१]

एल नीञो के प्रभाव

सामान्यतः व्यापारिक पवन समुद्र के गर्म सतही जल को दक्षिण अमेरिकी तट से दूर ऑस्ट्रेलिया एवं फिलीपींस की ओर धकेलते हुए प्रशांत महासागर के किनारे-किनारे पश्चिम की ओर बहती है। एल नीञो गर्म जलधारा है जिसके आगमन पर सागरीय जल का तापमान सामान्य से ३-४° बढ़ जाता है। पेरू के तट के पास जल ठंडा होता है एवं पोषक-तत्वों से समृद्ध होता है जो कि प्राथमिक उत्पादकों, विविध समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों एवं प्रमुख मछलियों को जीवन प्रदान करता है। एल नीञो के दौरान, व्यापारिक पवनें मध्य एवं पश्चिमी प्रशांत महासागर में शांत होती है। इससे गर्म जल को सतह पर जमा होने में मदद मिलती है जिसके कारण ठंडे जल के जमाव के कारण पैदा हुए पोषक तत्वों को नीचे खिसकना पड़ता है और प्लवक जीवों एवं अन्य जलीय जीवों जैसे मछलियों का नाश होता है तथा अनेक समुद्री पक्षियों को भोजन की कमी होती है। इसे एल नीञो प्रभाव कहा जाता है जो कि विश्वव्यापी मौसम पद्धतियों के विनाशकारी व्यवधानों के लिए जिम्मेदार है।[२] एक बार शुरू होने पर यह प्रक्रिया कई सप्ताह या महीनों चलती है। एल नीञो अक्सर दस साल में दो बार आती है और कभी-कभी तीन बार भी। एल-नीनो हवाओं के दिशा बदलने, कमजोर पड़ने तथा समुद्र के सतही जल के ताप में बढ़ोत्तरी की विशेष भूमिका निभाती है। एल नीञो का एक प्रभाव यह होता है कि वर्षा के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं। परिणामस्वरूप विश्व के ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होने लगती है। कभी-कभी इसके विपरीत भी होता है । यह घटना दक्षिण अमेरिका में तो भारी वर्षा करवाती है लेकिन ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया में सूखे की स्थिति को उत्पन्न कर देती है यह पेरु की ठंडी जलधारा को विस्थापित करके गरम जलधारा को विकसित करती है ।[३] साँचा:asbox एल नीञो का भारतीय मानसून (दक्षिण पश्चिम मानसून) पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि अलनीनो दक्षिण अमेरिका के तट पर अधिक सक्रिय हो तो भारत में अनावृष्टि होती है।

इन्हें भी देखें

ला नीञा

सन्दर्भ

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ

  1. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २0१२, पृष्ठ४0८-0९, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. भौतिक भूगोल का स्वरूप, सविन्द्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद, २0१२, पृष्ठ४९३, ISBN: ८१-८६५३९-७४-३