एरिक हॉब्सबॉम
एरिक जॉन अर्नेस्ट हॉब्सबॉम (1917-2012) बीसवीं शताब्दी के श्रेष्ठ मार्क्सवादी इतिहासकार, विचारक एवं राजनीतिज्ञ थे। 18 वीं सदी के अंत से लेकर, संपूर्ण 19वीं सदी एवं लगभग पूरी बीसवीं सदी की कालावधि पर केंद्रित उनके चारखंडीय इतिहास लेखन ने उन्हें अत्यधिक प्रसिद्धि दिलायी।
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मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | इतिहासकार, समाजशास्त्री एवं लेखक |
नागरिकता | ब्रिटिश |
उच्च शिक्षा | किंग्स काॅलेज कैम्ब्रिज |
विधा | विश्व इतिहास, पाश्चात्य इतिहास |
जीवनसाथी | साँचा:unbulleted list |
सन्तान | जोशुआ बेनाथन, जुलिया हॉब्सबॉम एवं एण्डी हॉब्सबॉम |
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जीवन-परिचय
एरिक हॉब्सबॉम का जन्म जून 1917 में सिकन्दरिया (अलेक्जेंड्रिया) में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश यहूदी और माता मध्य यूरोपीय थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वियना और बाद में बर्लिन में हुई। 1930 के दशक में उन्हें इंग्लैंड जाना पड़ा क्योंकि जर्मनी में यहूदियों के अस्तित्व पर खतरा था। वहीं कैम्ब्रिज में उन्होंने उच्च शिक्षा पायी। बर्लिन में उन्होंने नाजियों के फासीवाद को उनकी यहूदी विरोधी गतिविधियों के रूप में तो समझा ही, साथ-साथ नागरिकों की सामान्य स्वतंत्रता को नकारने के रूप में भी उसका अनुभव उन्हें हुआ। परिणाम स्वरूप वे कम्युनिस्ट बन गये और फासीवाद के एकमात्र उपाय के रूप में समाजवाद को मानने लगे। उनकी यह प्रतिबद्धता आजीवन बनी रही।[१]
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इतिहास विषय में अध्ययन के लिए उन्हें छात्रवृति मिली, जिसके कारण वे इतिहासकारों के ऐसे समूह से मिल पाये जिनका मार्क्सवाद से तत्काल साक्षात्कार हुआ था और जो राजनीतिक एवं कूटनीतिक इतिहास पढ़ने के अभ्यस्त पाठकों को इस नयी दृष्टि से संपन्न सामाजिक और आर्थिक इतिहास से परिचित करने की कोशिश में जुटे थे। यह समूह खुद को ब्रिटिश इतिहासकार (सीपीजीबी) समूह कहता था। इसमें क्रिस्टोफर हिल, रोडनी हिल्टन, जॉर्ज रूडे, ई०पी० थाॅम्पसन, राफेल सैम्युअल जैसे इतिहासकार शामिल थे।[१]
एरिक हॉब्सबॉम ने उन्नीसवीं सदी के यूरोप को अपना शोध क्षेत्र चुना था, क्योंकि यूरोप में ही ऐसे बहुत सारे विकास सबसे पहले हुए जिन्होंने सदा के लिए लोगों के जीवन को परिवर्तित कर दिया और कालांतर में एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका को भी अपने दायरे में ले लिया। यही कारण है कि इतिहास में उनका शोध उन्नीसवीं सदी के यूरोप पर केंद्रित होने के बावजूद उनकी दृष्टि कभी यूरोप केंद्रित नहीं रही।[२]
लेखन-कार्य एवं महत्त्व
एरिक हॉब्सबॉम का सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखन कार्य उन्नीसवीं सदी के विकास क्रम का अलग-अलग खंडों में प्रस्तुत अध्ययन है। इस शृंखला की पहली पुस्तक क्रांति का युग (एज ऑफ रेवोल्यूशन) - 1789-1848, औद्योगिक और फ्रांसीसी क्रांति के दोहरे प्रभावों, लोकतंत्र और असमानता से बनी आधुनिक दुनिया में इनके योगदान तथा लोकरंजक राजनीति और संप्रभुता के विचार के उभार पर केंद्रित है जिसने शासकों को जनता के करीब लाने का काम किया। पूँजी का युग (एज ऑफ कैपिटल) - 1848-1875, दुनिया भर में पूँजी की प्रभावात्मक विजय की कहानी है कि कैसे पूँजी ने लोगों के आंतरिक जीवन, परिवार और सांस्कृतिक मूल्यों को रूपांतरित किया और कैसे इसने अपने आईने में इस दुनिया को ढाल लिया। साम्राज्य का युग (एज ऑफ एंपायर) - 1875-1914, में साम्राज्यवादियों द्वारा आपस में दुनिया के बँटवारे और पहले विश्व युद्ध को संभव करने वाली वैश्विक स्थितियों का विवरण है। इसमें मजदूर वर्ग, समाजवादी आंदोलनों और महिला आंदोलन द्वारा राजनीतिक प्रतिनिधित्व एवं समान अधिकारों के लिए पैदा की गयी चुनौतियों का विवरण भी मौजूद है। इस शृंखला के अंतिम खंड अतिरेकों का युग (एज ऑफ एक्सट्रीम्स) - 1914-1991, समकालीन देश-काल से सम्बद्ध है। यही वह समय है जिसने हॉब्सबॉम की अपनी जिंदगी को भी निर्णायक रूप में निर्मित किया था। एक इतिहासकार के रूप में वे इस खंड में रूसी क्रांति और उसके विचलनों का विश्लेषण करते हैं जबकि निजी तौर पर सोवियत संघ के पतन के साथ इस प्रक्रिया के अंत का दर्द भी वे खुद में समाहित किए चलते हैं। इस खंड में उन्होंने जर्मनी और इटली में फासीवादी सत्ता के उभार, यूरोप के फासीवादी विरोधी साहसिक संघर्ष, स्पेन के गृह युद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध और उपनिवेशों के अंत, शीत युद्ध और कम्युनिस्ट आंदोलन के पतन जैसे विषयों का विश्लेषण किया है। इस खंड तथा इन घटनाओं के संदर्भ में नलिनी तनेजा ने लिखा है कि "ये घटनाएं हमारे इतने करीब हैं कि इन्हें हॉब्सबॉम की दृष्टि से पढ़ते हुए ऐसा लगता है गोया हम अपनी आंखों के सामने अपने दादा-परदादा से लेकर खुद अपनी जिंदगियों के पन्ने खुलते हुए देख रहे हों। सुदूर घटने वाली घटनाएं हमें खुद से जुड़ी जान पड़ती हैं, जो लगता है कोई और नहीं कर सकता है।"[३]
इसके अतिरिक्त तीन महत्त्वपूर्ण पुस्तकों प्रिमिटिव रिबेल्स (आदिकालीन विद्रोही), बैंडिट्स (डाकू) और कैप्टन स्विंग (जॉर्ज रूड के साथ लिखित) में 18 वीं सदी के लोकप्रिय संघर्षों की चर्चा करते हुए नयी सामाजिक श्रेणियों का परिचय दिया गया है। उनकी पुस्तक नेशंस एंड नेशनलिज्म (राष्ट्र और राष्ट्रवाद) भी राष्ट्रवाद संबंधी लेखन के क्षेत्र में काफी महत्व रखती है।
इतिहास लेखन में उन्होंने एक अलग दृष्टि अपनाई जो तथ्यों को सर्वोच्च मानती है लेकिन उनके प्रभावों को तात्कालिकता तक सीमित नहीं रखती। मार्क्सवाद के प्रति प्रतिबद्धता के बावजूद हॉब्सबॉम कट्टरता से दूर ही रहते थे। उनका मानना था कि मार्क्सवादी इतिहास कोई अलग ध्रुव नहीं है और उसे ऐतिहासिक चिंतन व शोध की विरासत से अलग करके नहीं देखा जा सकता। हॉब्सबॉम यह कहने में हिचकते नहीं थे कि ऐतिहासिक शोध के क्षेत्र में मार्क्स को अंतिम आदर्श की तरह नहीं बल्कि एक प्रस्थान बिंदु के तौर पर देखा जाना चाहिए। नरेश गोस्वामी के अनुसार "हॉब्सबॉम अगर अपनी सबसे नज़दीकी विचारधारा के बारे में इतना खुला रवैया अख़्तियार कर सकते हैं तो इससे यही जाहिर होता है कि वे विचारधारा का चकाचौंध पैदा करने के लिए नहीं बल्कि परिघटनाओं और प्रवृत्तियों को ज्यादा सुग्राह्य बनाने के लिए उपयोग करते हैं। तथ्यों के प्रति उनमें एक निस्संग निष्ठा है जिसे वे अपने वैचारिक रुझान पर हावी नहीं होने देते। उन्हें मार्क्स का इतिहास को देखने का भौतिकवादी नज़रिया इसलिए महत्त्वपूर्ण लगता है, क्योंकि उसके बिना मध्ययुग के बाद होने वाले रूपांतरण को सही ढंग से नहीं समझा जा सकता। लेकिन अगर उन्हें मार्क्स में कुछ भी अप्रासंगिक या कमतर लगता है तो वे ठिठकने के बजाय आगे बढ़ जाते हैं।"[४]
सुप्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर के अनुसार "एरिक हॉब्सबॉम उन इतिहासकारों में से थे जिनका अधिकांश कार्य यूरोपीय इतिहास की विगत तीन सदियों पर केंद्रित रहा। इसके बावजूद वे हम जैसे इतिहासकारों के लिए भी प्रासंगिक थे जिनका सरोकार उनसे भिन्न देश-काल से रहा है। उनके लिए ऐतिहासिक अनुसंधान किसी विशेष विषय के साथ संकीर्ण जुड़ाव तक सीमित नहीं था बल्कि उसमें अनेक लोगों और विचारों को शामिल करते हुए इसके क्षितिज को व्यापक बनाने में था। उनके लिए इतिहास-लेखन बौद्धिक उद्यम के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों के प्रमुख प्रेरणास्रोत को समझने का प्रयास था।"[५]
एरिक हॉब्सबॉम की गणना बीसवीं सदी के महानतम बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों में होती है।[६][७]
प्रकाशित कृतियाँ
- Labour's turning point : extracts from contemporary sources - 1948
- Primitive Rebels : studies in archaic forms of social Movement in the 19th and 20th centuries, 1959, 1963, 1971
- The jazz scene - 1959
- The age of revolution: Europe (1789-1848) - 1962 (हिन्दी अनुवाद- क्रांति का युग, संवाद प्रकाशन, शास्त्री नगर, मेरठ से)
- Labouring men : studies in the history of labour - 1964
- Pre-capitalist economic formations - 1965
- Industry and Empire : from 1750 to the present day - 1968
- Bandits - 1969
- Captain Swing - 1969
- Revolutionaries : Contemporary essays - 1973
- The age of capital (1848-1875) - 1975 (हिन्दी अनुवाद- पूँजी का युग, संवाद प्रकाशन, शास्त्री नगर, मेरठ से)
- Italian road to socialism : an interview by Eric Hobsbawm with Giorgio Napolitano - 1977
- The history of Marxism : Marxism in Marx's day, volume-1 - 1982
- The invention of tradition - 1983
- Worlds of labour : further studies in the history of labour - 1984
- The Age of Empire (1875-1914) - 1987 (हिन्दी अनुवाद- साम्राज्य का युग, संवाद प्रकाशन, शास्त्री नगर, मेरठ से)
- Politics for a rational left : political writing (1977-1988) - 1989
- Echoes of the Marseillaise : two centuries look back on the French Revolution - 1990
- Nations and nationalism since 1780 : programme, myth, reallity - 1991
- The age of extremes : the short 20th century (1914-1991) - 1994 (हिन्दी अनुवाद- अतिरेकों का युग, दो भागों में, संवाद प्रकाशन, शास्त्री नगर, मेरठ से)
- Art and power : Europe and the Dictator sexhibition catalogue - 1995
- On History - 1997
- 1968 Magnum throughout the world - 1998
- Behind the times : decline and fall of the twentieth century avant gardes - 1998
- Uncommon people : resistance, rebellion and jazz - 1998
- Karl Marx and Friedrich Engels, The communist Manifesto : a modern edition - 1998
- The new century : in conversation with Antonio Polito - 2000
- Interesting times : a twentieth century life - 2002
- Globalisation, democracy and terrorism - 2007
- How to change the world : Tales of Marx and Marxism - 2012
- Fractured Times : Culture and Society in the twentieth Century by Eric hobsbawm (28 Mar 2013)
सम्मान
- 1995 : ड्यूश्चर मेमोरियल पुरस्कार, लियोनेल गेल्बर पुरस्कार
- 1996 : वोल्फसन हिस्ट्री ओयूव्रे पुरस्कार
- 2000 : अर्न्स्ट ब्लॉक पुरस्कार
- 2008 : बॉकम इतिहास पुरस्कार
इनके अतिरिक्त सन् 1973 से 2008 तक उन्हें अनेक संस्थानों से मानद उपाधियाँ एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ रोमिला थापर, अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-11.
- ↑ अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-19.
- ↑ नलिनी तनेजा, अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-22.
- ↑ समाज-विज्ञान विश्वकोश, खण्ड-1, संपादक- अभय कुमार दुबे, राजकमल प्रकाशन प्रा० लि०, नयी दिल्ली, संस्करण-2016, पृष्ठ-302.
- ↑ रोमिला थापर, अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-10.
- ↑ वैभव सिंह, अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-304.
- ↑ परिमल प्रियदर्शी, अभिनव क़दम-30 ('स्वप्न अभी जिन्दा है' शीर्षक एरिक हॉब्सबॉम विशेषांक) संपादक- जयप्रकाश धूमकेतु, पृष्ठ-324.