एच जे कनिया

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एच जे कनिया
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हस्ताक्षर
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सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया (3 नवम्बर 1890 - 6 नवम्बर 1951) स्वतन्त्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। उनका निधन पद सम्भालते हुए 1951 में हुआ था।[१]

निजी जीवन

कनिया का जन्म 1890 में सूरत के एक मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था। उनके दादा गुजरात में ब्रिटिश सरकार के लिए राजस्व अधिकारी थे, और उनके पिता, जेकिसुनदास, भावनगर रियासत के शामलदास कॉलेज में संस्कृत प्राध्यापक और फिर प्रधानाचार्य थे। उनके बड़े भाई, हीरालाल जेकिसुनदास, भी वकील थे। हीरालाल जेकिसुनदास के बेटे मधुकर हीरालाल जेकिसुनदास भी 1987 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, और आगे चलके मुख्य न्यायाधीश बने। 1925 में कनिया का विवाह सर चुन्नीलाल मेहता की बेटी कुसुम मेहता से हुआ।[१]

शिक्षा

कनिया ने 1910 में शामलदास कॉलेज से कला स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, और शासकीय विधी महाविद्यालय, बम्बई से 1912 में विधी स्नातक और 1913 में उसी विषय में स्नताकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी।

व्यावसायिक जीवन

अपनी पढ़ाई ख़त्म करने के बाद कनिया बम्बई के उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर काम करने लगे। वकालत के साथ-साथ, थोड़े समय के लिए वह इंडिया लॉ रिपोर्ट्स के कार्यकारी सम्पादक भी थे। 1930 में कुछ वक़्त के लिए वह बम्बई उच्च न्यायालय में कार्यकारी न्यायाधीष बने और जून 1931 में वह उसी न्यायालय में अपर न्यायाधीष नियुत्त हुए। यह पद उन्होने 1933 तक सम्भाला। इसके बाद सहयोगी न्यायाधीष के रूप में नियुक्त होने के लिए कनिया ने तीन महीने इंतेज़ार किया। इन तीन महीनों के लिए वह फिर वकालत को लौटे और अंततः जून 1933 में उनकी पदोन्नति हुई।

1943 की बर्थडे ऑनर्ज़ लिस्ट में कनिया का नाम था और उन्हे सर की उपाधि मिली।.[२] इस समय तक वह बम्बई उच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ सहयोगी न्यायाधीष थे और न्यायाधीश सर जॉन बोमॉन्ट के सेवानिवृत्त होने के बाद कनिया को यह पद मिलना था। लेकिन बोमॉन्ट भारतीयों के खिलाफ़ पक्षपाती थे और इसलिए उन्होने कनिया की जगह सर जॉन स्टोन का नामांकन किया। स्टोन व्यक्तिगत रूप से इस फ़ैसले के विरुद्ध थे पर उन्होने यह नामांकन स्वीकार करा। तब भी मई-सितम्बर 1944 और जून-अक्टूबर 1945 कनिया ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीष का पद सम्भाला। 20 जून 1946 में वह संघीय न्यायालय के सहयोगी न्यायाधीष नियुक्त हुए। 14 अगस्त 1947 को संघीय न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष सर पैट्रिक स्पेन्ज़ सेवानिवृत्त हुए और तब यह पद कनिया को मिला। 26 जनवरी को जब स्वतनत्र भारत एक गणराज्य बना तो कनिया देश के सर्वोच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बने और उन्होने अपनी शपथ भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के सामने पढ़ी। 6 नवम्बर 1951 को 61 साल के कनिया की मृत्यु दिल के दौरे से हुई।[३]

सन्दर्भ

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  3. साँचा:cite book

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