ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रणीत ग्रन्थ है। महर्षि ने वेद और वेदार्थ के प्रति अपने मन्तव्य को स्पष्टरूप से प्रतिपादित करने के लिये इस ग्रन्थ का का प्रणयन किया है। महर्षि ने सत्यार्थ-प्रकाश को जहाँ मूलतः हिन्दी में लिखा है, वहीं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका को संस्कृत में। यद्यपि महर्षि ने हिन्दी में भी प्रकरणगतभाव को व्यक्त करने का प्रयास किया है, परन्तु अनेकशः उनमें संगति का अभाव दृष्टिगोचर होता है। महर्षि कतिपय स्थलों पर ऐसा अनुभव करते हैं कि जो वचनीय था वह संस्कृत में कह दिया है, अतः उक्त विषय को पुनः हिन्दी में कहने की कोई आवश्यकता नहीं है।[१]