उपरिचर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

उपरिचर कुरुवंश के एक प्रतापी राजा थे। इनका वास्तविक नाम 'वसु' था और 'उपरिचर' इनकी उपाधि थी। ये चंद्रवंशी सुधन्वा की शाखा में उत्पन्न कृती (मतांतर से कृतयज्ञ, कृतक) के पुत्र थे।

इन्हें मृगया का व्यसन था, लेकिन बाद में यह व्यसन छूट गया और ये तपश्चर्या के प्रति विशेष अनुरक्त हो गए। इंद्र की आज्ञा से इन्होंने चेदि देश पर विजय प्राप्त की जिससे प्रसन्न हो इंद्र ने इन्हें स्फटिक के बना विमान और वैजयंती माला उपहार में दी। ये सदा उक्त विमान में बैठकर आकाश में विचरण करते रहे थे इसलिए इन्हें उपरिचर कहा जाने लगा। इंद्रमाला धारण करने के कारण इन्हें इंद्रमाली नाम भी प्राप्त है। शुक्तिमती नदी को कोलाहल नमक पर्वत रोक रहा है, यह देखकर इन्होंने पाद प्रहार से पर्वत में विवर बना दिया। शक्तिमती उस विवर से बहने लगी और पर्वत के संयोग से उसे एक पुत्र तथा एक पुत्री प्राप्त हुई जिन्हें उसने उपरिचर को दे दिया। पुत्र को राजा ने अपना सेनापति बनाया और गिरिका नाम की उस कन्या के साथ विवाह कर लिया। गिरिका ऋतुमती हुई तो पितरों की आज्ञा से राजा मृगया हेतु वन में चले गए। परंतु पत्नी की याद आते ही वहाँ उनका रेत स्खलित हो गया जिसे उन्होंने एक श्येन के द्वारा अपनती पत्नी के पास भेजा। लकिन मार्ग में एक अन्य श्येन के झपटने से उक्त रेत यमुना में गिरा और उससे मत्स्यरूपा अद्रिका आपन्नसत्वा हुई। अद्रिका धीवर द्वारा पकड़ी गई और चीरने पर उसके पेट से एक पुत्र तथा एक पुत्री मिली जिन्हें राजा को दे दिया गया। मत्स्य नामक पुत्र को राजा ने अपने पास रखा और कन्या धीवर को लौटा दी। यही कन्या मत्स्यगंधा (सत्यवती) के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी से वेदव्यास का जन्म हुआ।