उत्पलाचार्य

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

उत्पलाचार्य प्रत्यभिज्ञादर्शन के एक आचार्य थे। ये काश्मीर शैवमत की प्रत्यभिज्ञा शाखा के प्रवर्तक सोमानंद के पुत्र तथा शिष्य थे। इनका समय नवम शती का अंत और दशम शती का पूर्वार्ध था। इन्होंने प्रत्यभिज्ञा मत को अपने सर्वश्रैष्ठ प्रमेयबहुल ग्रंथ 'ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-कारिका' द्वारा तथा उसकी वृत्तियों में अन्य मतों का युक्तिपूर्वक खंडन कर उच्च दार्शनिक कोटि में प्रतिष्ठित किया। इनके पुत्र तथा शिष्य लक्ष्मणपुत्र अभिनवगुप्त के प्रत्यभिज्ञा तथा क्रमदर्शन के महामहिम गुरु थे।

उत्पल की अनेक कृतियाँ हैं जिनमें इन्होंने प्रयत्यभिज्ञा के दार्शनिक रूप को विद्वानों के लिए तथा जनसाधारण के लिए भी प्रस्तुत किया है। इनके मान्य ग्रंथ हैं-

  • (क) स्तोत्रावली (भगवान्‌ शंकर का स्तुतिपरक सरस सुबोध गीतिकाव्य);
  • (ख) सिद्धित्रय : अजड प्रमातृसिद्धि, ईश्वरसिद्धि (वृत्ति के साथ) और संबंधसिद्धि (टीका के साथ);
  • (ग) शिवदृष्टिव्याख्या : यह इनके गुरु सोमानंद के 'शिवदृष्टि' ग्रंथ का व्याख्यान है जिसका प्रणयन, भास्करी के अनुसार, 'ईश्वरप्रत्यभिज्ञा' से पूर्ववर्ती है;
  • (घ) ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-कारिका, अपनी 'वृत्ति' नामक लघ्वी तथा 'विवृत्ति' नामक महती व्याख्या के साथ, उत्पलाचार्य का पांडित्यपूर्ण युक्तिसंवलित गौरवग्रंथ है जिसपर अभिनवगुप्त ने 'विमर्शिणी' और 'विवृत्तिविमर्शिणी' नामक नितांत प्रख्यात टीकाएँ लिखी हैं। इसी ग्रंथ ने इस दार्शनिक मतवाद को 'प्रत्यभिज्ञा' जैसी मार्मिक संज्ञा प्रदान की है।


सन्दर्भ


बाहरी कड़ियाँ