ईब आले ऊ!

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ईब आले ऊ!
निर्देशक प्रतीक वत्स
निर्माता श्वेताभ सिंह
प्रतीक वत्स
पटकथा शुभम
प्रतीक वत्स
कहानी शुभम
अभिनेता साँचा:unbulleted list
संगीतकार अंशुल टक्कर
छायाकार सौम्यानन्द सही
संपादक तनुश्री दास
स्टूडियो नामा प्र्डक्शन्स
वितरक आउटसाइडर पिकचर्स, संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रदर्शन साँचा:nowrap [[Category:एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"। फ़िल्में]]
  • October 2019 (2019-10) (पिंग्यावो)
  • 18 December 2020 (2020-12-18) (भारत)
समय सीमा 97 मिनट
देश भारत

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ईब आले ऊ! प्रतीक वत्स की निर्देशन में बनी पहली भारतीय फ़िल्म है जो वर्ष 2019 में जारी हुई और इसे शुभम ने लिखा। फ़िल्म नई दिल्ली के नये प्रवासी के ईर्द्ध गिर्द्ध घुमती है जिसमें सार्वजनिक भवनों के निकट बन्दर भगाने का असामान्य कार्य करने की सरकारी नौकरी करता है। वो इस कार्य में आगामी संघर्ष और इससे मोहभंग पर ध्यान खींचती है। इस फ़िल्म का शीर्षक भी कुछ स्वनानुकरणात्मक है जिसमें उन तीन ध्वनियों को काम में लिया गया है जिनसे माकड़ (लाल मुह वाले बन्दर) खदेड़े जाते हैं।

ईब आले ऊ! को पिंग्यावो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में 2019 में जारी किया गया। वर्ष 2020 में फ़िल्म को 70वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव में वी आर ओन: ए ग्लोब फ़िल्म फेस्टिवल (हम एक हैं: वैश्विक फ़िल्मोत्सव) के भाग के रूप में दिखाने के लिए चयन की गयी। फ़िल्म को नाट्यरूप में भारत में 18 दिसम्बर 2020 को जारी किया गया। फ़िल्म ने मार्च 2021 में घोषित सर्वश्रेष्ठ (समालोचक) श्रेणी में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार प्राप्त किया।[१]

कथानक

अंजनी बिहार के एक प्रवासी परिवार से है और अपनी गर्भवती बहन और जीजा के साथ दिल्ली के बाहरी इलाके में रहता है। वो राजधानी के बन्दर भगाने वाले दस्ते में नौसिखिया है जिसे सरकारी भवनों रेल भवन, विज्ञान भवन, निर्माण भवन के निकट तैनात है – जिससे सरकारी बाबू बिना किसी परेशानी के काम कर सकें लेकिन वो किसी बन्दर को चोट नहीं पहुँचा सकता।[२] एकबार उसको संविदाकर्मियों के एक समूह द्वारा पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है जिसमें केले लटकाकर बन्दरों को पकड़ा जाता है। जैसे ही फ़िल्म आगे बढ़ती है। जैसे जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, उसे पता चलता है कि वो महेंदर (जो उसे नौकरी में प्रशिक्षण देता है) की तरह आवाज नहीं निकाल पा रहा है जिससे बन्दर आवश्यकतानुसार दूर भाग जायें। उसका जीजा एक सुरक्षा प्रहरी की नौकरी करता है। उसका वेतन मामूली है और 1000 बढ़ने की सम्भावना है जो उसके परिवार के लिए बहुत है। लेकिन यह बढ़ोतरी एक काम के बाद होगी जिसमें उसे बन्दूक रखना होगा – एक ऐसी शर्त जो उसकी गर्भवती पत्नी को पीड़ादायक लगती है। नौकरी में अपनी प्रभावहीनता से पार पाने के लिए वो गुलेल का सहारा लेकर बन्दर को घायल कर देता है और दूसरे समय वो लंगूर की पोषाक पहन लेता है और बन्दरों को डराता है जबकि ये दोनों ही तरिके अवैध हैं और इसे राज्य में मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है। जबकि इसके पहले गलत कार्य और अन्य लोगों द्वारा ठेकेदार को उसे नौकरी से निकालने के लिए उकसाने के बाद वो नौकरी से हाथ धो बैठता है। अंजनी नगर में घूमता है और लोगों से नौकरी मांगता है; वो लोगों के घरों के सामने अपने पोस्टर चिपकाता है जिसमें अपने फोन नम्बर और नाम सूचीबद्ध होते हैं। इसी समय वो एक महिला के प्यार में पड़ जाता है।

कलाकार

  • शर्दुल भारद्वाज – अंजनी प्रसाद
  • महेंदर नाथ – महेंदर
  • नूतन सिन्हा – अंजनी की बहन
  • शशी भूषण – अंजनी के जीजाजी
  • नितिन गोयल – नारायण/ठेकेदार
  • नैना सरीन – कुमुद

निर्माण

विकास

वत्स को फ़िल्म का विचार एक समाचार रपट को पढ़कर आया जिसके अनुसार वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार केन्द्र सरकार के शासन और नौकरशाही के कार्यस्थल राष्ट्रपति भवन पर बन्दरों को भगाने के लिए लंगूर को काम में नहीं लिया जा सकता, इसके फलस्वरूप प्राधिकरियों ने लोगों को लंगूर की पोशाक पहनकर उनकी नकल करते हुये बन्दरों को भगाने का काम करवाया, जिनसे अक्सर बाधा उत्पन्न होती है।[३]


सम्मान

पुरस्कार और नामांकन

पुरस्कार समारोह का दिन श्रेणी प्राप्तकर्ता परिणाम स॰
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार 27 मार्च 2021 सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (समालोचना) प्रतीक वत्स साँचा:won [४]
सर्वश्रेष्ठ कथानक शुभम Nominated
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (समालोचक) शर्दुल भारद्वाज Nominated [५]
सर्वश्रेष्ठ ध्वनि डिज़ाइन बिज्ञान भूषण दहल Nominated
सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी सौम्यानन्द सही Nominated

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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