इष्टि
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
इष्टि वैदिक काल का विशेष प्रकार का यज्ञ। यज्ञ वैदिक आर्यो के दैनिक तथा वार्षिक जीवन में प्रधान स्थान रखता है।
'इष्टि' 'यज्' धातु से 'क्तिन्' प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। फलत: इसका अर्थ 'यज्ञ' है। ऐतरेय ब्राह्मण में इष्टि पाँच भागों में विभक्त है--अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमास, चातुर्मास्य, पशु तथा सोम। परंतु स्मृति और कल्पसूत्रों में स्मार्त तथा श्रौत कर्मो की सम्मिलित संख्या 21 मानी गई है जिनमें पाकयज्ञ, हविर्यज्ञ तथा सोमयज्ञ प्रत्येक सात प्रकार के माने जाते हैं। प्रत्येक अमावास्या तथा पूर्णिमा के अनंतर होने वाली प्रतिपदा के याग सामान्य रूप से 'इष्टि' कहलाते हैं जिनमें पहला 'दर्श' तथा दूसरा 'पौर्णमास' कहलाता है।