इत्सिंग

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
इत्सिंग का यात्रा-पथ

इत्सिंग एक चीनी यात्री एवं बौद्ध भिक्षु था, जो ६७१-६९५(672-695) ई. में भारत आया था। वह ६७५ ई में सुमात्रा के रास्ते समुद्री मार्ग से भारत आया था और 10 वर्षों तक 'नालन्दा विश्वविद्यालय' में रहा था। उसने वहाँ के प्रसिद्ध आचार्यों से संस्कृत तथा बौद्ध धर्म के ग्रन्थों को पढ़ा।

691 ई. में इत्सिंग ने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ 'भारत तथा मलय द्वीपपुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण' लिखा। उसने 'नालन्दा' एवं 'विक्रमशिला विश्वविद्यालय' तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है। इस ग्रन्थ से हमें उस काल के भारत के राजनीतिक इतिहास के बारे में तो अधिक जानकारी नहीं मिलती, परन्तु यह ग्रन्थ बौद्ध धर्म और 'संस्कृत साहित्य' के इतिहास का अमूल्य स्रोत माना जाता है।

परिचय

भारत में आनेवाले तीन बड़े चीनी यात्रियों (फाहियान, ह्वेन त्सांग और इत्सिंग) में से इत्सिंग (ईच-चिङ) सबसे बाद में आया। इसका जन्म ६३५ ई. में सन-यंग में ताई-त्सुंग के शासनकाल में हुआ। ताई पर्वत पर स्थित मंदिर में शन-यू और हुई उसी से इसने सात वर्ष की अवस्था से ही शिक्षा प्राप्त की। शन-यू की मृत्यु के पश्चात् सांसारिक विषयों को छोड़कर इसने बौद्ध शास्त्रों का अध्ययन आरंभ किया। १४ वर्ष की आयु में इसे प्रवज्या मिल गई और १८ वर्ष की आयु में इसने भारतयात्रा का संकल्प किया जो लगभग २० वर्ष बाद ही पूरा हो सका। इसने विनयसूत्र का अध्ययन हुई-उसी की देखरेख में किया और अभिधर्मपिटक से संबंधित असंग के दो शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए वह पूर्व की ओर चला। फिर पश्चिमी राजधानी सी-अन-फूयांग-आन शेन सी पहुँच उसने वसुबंधुकृत 'अभिधर्मकोश' और धर्मपालकृत 'विद्या-मात्र-सिद्धिका' का गहरा अध्ययन किया। चेन-अन में कदाचित् ह्येन-त्सांग के सम्मान और यश से प्रभावित होकर उसने अपनी भारतयात्रा का पूरा संकल्प किया जिसका वर्णन इसने स्वयं किया है।

इत्सिंग का कथन है कि यह ६७० ई. में पश्चिमी राजधानी (यंगअन) में अध्ययन कर व्याख्यान सुन रहा था। उस समय इसके साथ चिंग-यू निवासी धर्म का उपाध्याय चू-इ, लै-चोऊ निवासी शास्त्र का उपध्याय हुँग-इ और दो तीन दूसरे भदंत थे। उन सबने गृद्धकूट जाने की इच्छा प्रकट की। त्सिन-चोऊ के शन-हिंग नामक एक युवा भिक्षु के साथ इसने भारत के लिए प्रयाण किया। यहाँ से दक्षिण की यात्रा के लिए एक ईरानी जहाज के स्वामी से मिलने की तिथि निश्चय की। छह मास की यात्रा के पश्चात् यह श्रीभोज (श्रीविजय) पहुँचा। यहाँ छह मास ठहरकर शब्दविद्या सीखता रहा। राजा ने इसे आश्रय देकर मलय देश भेज दिया। वहाँ से पूर्वी भारत के लिए जहाज पर चला और ६७३ ई. के दूसरे मास में ताम्रलिप्ति पहुँचा। वहाँ से इसे ता-तेंग-तेंग (ह्येन-त्सांग का शिष्य) मिला। प्राय: २६ वर्ष यह उसके पास ठहरा और संस्कृत सीखी तथा शब्दविद्या का अभ्यास किया। वहाँ से कई सौ व्यापारियों के साथ यह मध्यभारत के लिए चला और क्रमश: बोधगया, नालंदा, राजगृह, वैशाली, कुशीनगर, मृगदाव (सारनाथ), कुक्कुटगिरि की यात्रा की। यह अपने साथ पाँच लाख श्लोंकों की पुस्तकें ले गया। लगभग २५ वर्ष (६७१ई.-६९५ ई.) के लंबे काल में इसने ३० से अधिक देशों का पर्यटन किया और ६९५ ई. में चीन वापस पहुँच गया। इसने ७०० से ७१२ ई. के बीच २३० भागों में ५६ ग्रंथों का अनुवाद किया जिनका मूल सर्वास्तिवादी मत संबंध है। ७१३ ई. में ७९ वर्ष की अवस्था में इसका देहान्त हो गया।

सन्दर्भ