भारतीय सैन्य अकादमी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:refimprove

Indian Military Academy
सक्रिय1932-Present
देशभारत
शाखाभारतीय सशस्‍त्र सेनाएँ and Royal Bhutan Army
प्रकारप्रशिक्षण
भूमिकाअधिकारी प्रशिक्षण
विशालता1,600 Gentleman Cadets
मुख्यालयदेहरादून
आदर्श वाक्यValor and Wisdom
सेनापति
CommandantLieutenant General S.K Jha

साँचा:template other

इंडियन मिलिटरी ऐकडमी (भारतीय सैन्य अकादमी) भारतीय सेना के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए प्रमुख प्रशिक्षण स्कूल है।

इतिहास

सृष्टि

1922 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स ने इंग्लैंड के सैंडहर्स्ट के रोंयल मिलिटरी ऐकडमी जाने वाले भारतीयों के एक पोषक स्कूल के रूप में देहरादून से बाहर इंडियन मिलिटरी कॉलेज की स्थापना की।

मॉन्टेग-चेम्सफोर्ड रिफॉर्म्स ने प्रशिक्षण के लिए सैंडहर्स्ट भेजे जाने वाले दस भारतीयों को तैयार किया। बाद में 1930 में लन्दन में हुए राउण्ड टेबल कॉन्फरेन्स में इस बात की सिफारिश की गयी कि सैंडहर्स्ट के जैसे ही एक स्कूल के भारतीय रूप की स्थापना की जाय. इस काम को अंजाम देने के लिए, ब्रिटिश इंडिया की सरकार ने, फील्ड मार्शल सर फिलिप शेत्वुड नामक तत्कालीन भारतीय कमान्डर-इन-चीफ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। जुलाई 1931 में, समिति ने यह सिफारिश की कि एक सत्र (एक सत्र की अवधि - छ: महीने) में चालीस प्रवेशकों के प्रशिक्षण के लिए एक अकादमी की स्थापना की जाय. प्रवेशकों की संख्या का विभाजन कुछ इस प्रकार था - 15 प्रत्यक्ष प्रवेशक; 15 प्रवेशक नोवगांव के किचनर कोंलेज के माध्यम से और बाकी 10 प्रिंसली स्टेट्स (रजवाड़ों) से.

उद्घाटन

1 अक्टूबर 1932 को, 40 जेंटलमैन कैडेट्स की प्रविष्टि के साथ, अकादमी को कार्यात्मक रूप दिया गया। ब्रिगेडियर एल. पी. कॉलिन्स, DSO, OBE अकादमी के पहले कमान्डेन्ट थे। कोर्स के पहले दल के कैडेट्स में थे - सैम माणेकशॉ, स्मिथ डून और मूसा खान. आगे चलकर ये सभी क्रमशः अपने-अपने देश - अर्थात् भारत, बर्मा और पाकिस्तान की सेनाओं के प्रमुख बने। इस कोर्स का नाम रखा गया -'PIONEERS' (पायोनियर्स)। सरकार ने, देहरादून के, उस वक्त के रेल्वे कॉलेज की भूसंपत्ति को उपार्जित किया, चूंकि इसकी इमारत और इसका विशाल परिसर, दोनों ही अकादमी के जन्म समय की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काफी उपयुक्त थे।

अकादमी का औपचारिक उद्घाटन, पहले सत्र के अंत में 10 दिसम्बर 1932 को किया गया। अकादमी का उद्घाटन तत्कालीन भारतीय कमांडर-इन-चीफ़ फील्ड मार्शल सर फिलिप शेत्वुड, बैरोनेट GCB, OM, GCSI, KCMG, DSO ने किया। अकादमी के मुख्य भवन और प्रमुख सभा-भवन को इन्हीं का नाम दिया गया है। उद्घाटन के अवसर की ख़ास बात थी - सर फिलिप शेत्वुड द्वारा दिया गया भाषण, जो उसी सभा-भवन में दिया गया था जिसे आज उन्हीं के नाम से सुशोभित किया गया है। उनके भाषण के एक परिच्छेद को अकादमी के सिद्धांत के रूप में अपनाया गया है। यह परिच्छेद है - "हर बार और हमेशा, अपने देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण के हित में काम करना आपका सबसे पहला कर्त्तव्य है। उसके बाद, अपने अधिपत्य में काम कर रहे व्यक्तियों के सम्मान, कल्याण और सुख-सुविधा का ख्याल रखना. और सबसे अंत में, हर बार और हमेशा, अपने ख़ुद के आराम, सुख-सुविधा और सुरक्षा पर ध्यान देना."

इन वाक्यों को शेत्वुड के 'आदर्श-वाक्य' माने जाते हैं और IMA (इंडियन मिलिटरी ऐकडमी) में सफलता पाकर आगे बढ़ने वाले सभी अधिकारियों के आदर्श भी यही होते हैं।

1932 से स्वतन्त्रता तक

1934 में, कैडेट्स के पहले दल के उत्तीर्ण होने से पहले, भारत के वाइसरॉय, लॉर्ड विलिंग्डन ने, राजा की ओर से अकादमी को ध्वज प्रदान किया। परेड की कमान अन्डर-ऑफिसर GC स्मिथ डून ने संभाली. विश्व युद्ध छिड़ने के बाद, अकादमी में प्रवेश पाने वालों की संख्या और उनकी श्रेणियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। दिसंबर 1934 और मई 1941 के बीच, 16 दल नियमित कोर्स उत्तीर्ण कर चुके थे, पर केवल 524 जेंटलमैन कैडेट्स को सेना में भर्ती किया गया, जबकि अगस्त 1941 से जनवरी 1946 के दौरान 3,887 कैडेट्स की भर्ती हुई है।

अकादमी का विस्तार करने के लिए, अधिक ज़मीन खरीद कर, उस पर बहुत सारी अस्थायी इमारतें बनायी गयीं, जिन्हें आज तक इस्तेमाल किया जा रहा है। आवास के लिए पहले-पहल बनाए दो ब्लॉक्स को, पहले दो कमान्डेन्ट्स - ब्रिगेडियर कॉलिन्स और किंग्सले के नाम दिए गए।

लड़ाई के बाद का पहला नियमित कोर्स 25 फ़रवरी 1946 को शुरू किया गया। आज़ादी के बाद के पहले भारतीय कमान्डेन्ट ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह, DSO थे। मई 1947 में, पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने अकादमी का दौरा किया। आज़ादी के समय, अकादमी की जंगम-संपत्ति को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। जो जेंटलमैन कैडेट्स पाकिस्तान जाना चाहते थे, उन्होंने 14 अक्टूबर 1947 की रात को अकादमी छोड़ दी। पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों की पहली दो पीढ़ियां इंडियन मिलिटरी ऐकडमी की देन थीं।

1947 से रजत जयंती (1957) तक

9 अक्टूबर 1948 को, अकादमी ने, प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल - हिज़ एक्सेलेंसी सी. राजगोपालाचारी का स्वागत किया और 9 दिसंबर को भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विश्वविद्यालय के प्रथम ग्रेज्युएट कोर्स उत्तीर्ण करने वाले कैडेट्स की 'पासिंग आउट परेड' का मुआइना किया।

आर्म्ड फोर्सेस ऐकडमी

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, तीनों सेवाओं के बीच आपसी-निर्भरता का एहसास हो चुका था। इसलिए, भारत सरकार ने थल-सेना, नौ-सेना और वायु-सेना कैडेट्स के प्रशिक्षण के लिए एक इन्टर-सर्विसेस विंग का निर्माण करने की मंज़ूरी दी। इस तरह, जनवरी 1949 में, अकादमी का नाम बदलकर 'आर्म्ड फोर्सेस ऐकडमी' रखा गया। थल-सेना की शाखा प्रेम नगर स्थित वर्तमान परिसर में ही रही और इन्टर-सर्विसेस विंग को क्लेमेन्ट टाउन में स्थापित किया गया। कमान्डेन्ट की पदोन्नति हुई और उन्हें ब्रिगेडियर से मेजर जनरल बनाया गया।

नैशनल डिफेन्स ऐकडमी

राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप, जनवरी 1950 में, इंडियन मिलिटरी ऐकडमी का नाम बदलकर नैशनल डिफेन्स ऐकडमी रखा गया। और इन्टर-सर्विसेस विंग जॉइंट सर्विसेस विंग (JSW) बन गया। दिसंबर 1950 में, JSW के प्रथम कोर्स के कैडेट्स उत्तीर्ण हुए.

मिलिटरी कॉलेज के रूप में अस्तित्व

दिसंबर 1954 में, जॉइंट सर्विसेस विंग खडकवासला के एक सम्पूर्ण नवीन परिसर में स्थानांतरित हो गया और इसके साथ इसका नाम, निर्माण चिह्न और कमांडेंट भी गया। इंडियन मिलिटरी ऐकडमी (तब मिलिटरी कॉलेज नाम दिया गया) अपनी असली पहचान और भूमिका को फिर से प्राप्त किया। ब्रिगेडियर आप्जी रणधीर सिंह ने कमांडेंट का पदभार संभाला. 1956 के अंत में, इंडियन मिलिटरी ऐकडमी की कमान सैंडहर्स्ट-प्रशिक्षित अधिकारियों के हाथों से IMA-प्रशिक्षित अधिकारियों के हाथों में आ गई, जब ब्रिगेडियर एम. एम. खन्ना, MVC ने ब्रिगेडियर आप्जी रणधीर सिंह का पदभार संभाला. 10 दिसम्बर 1957 को मिलिटरी कॉलेज ने अपनी रजत जयंती मनाई जहां बड़ी संख्या में प्रतिष्ठित दिग्गजों ने भाग लिया।

रजत जयंती से स्वर्ण जयंती (1982) तक और IMA के रूप में नाम परिवर्तन

1960 में, मिलिटरी कॉलेज को फिर से इंडियन मिलिटरी ऐकडमी नाम दिया गया। 10 दिसम्बर 1962 को भारत गणराज्य के द्वितीय राष्ट्रपति, डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इंडियन मिलिटरी ऐकडमी को नया ध्वज प्रदान किया।

1963 में, कमांडेंट के पद को फिर से उन्नत कर मेजर जनरल का पद बना दिया गया और इस पदभार को मेजर जनरल एस. सी. पंडित, वीर चक्र, ने संभाला. 1963 में चीनी आक्रमण के कारण नियमित पाठ्यक्रमों के प्रशिक्षण की अवधि में कटौती की गई और आपातकालीन पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई। रंघरवाला क्षेत्र में और टोंस नदी के किनारे नए ठिकाने का निर्माण किया गया। अगस्त 1964 में, आपातकालीन पाठ्यक्रमों को बंद कर दिया गया और नियमित पाठ्यक्रमों को फिर से शुरू किया गया। अंतिम आपातकालीन पाठ्यक्रम का परिणाम 1 नवम्बर 1964 को निकला।

1974 में, IMA के नियमित कोर्स में प्रवेश पाने के लिए शैक्षणिक योग्यता के स्तर को बढ़ाकर विश्वविद्यालय स्तर की डिग्री कर दिया गया और डायरेक्ट एन्ट्री जेंटलमेन कैडेट्स के लिए प्रशिक्षण की अवधि को दो साल से घटाकर डेढ़ साल कर दिया गया। IMA की चार बटालियनों के नाम थे - करियप्पा बटालियन, थिमइया बटालियन, माणेकशॉ बटालियन और भगत बटालियन और हर बटालियन के साथ दो कम्पनियां जुड़ी हुईं थीं।

भारत के राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा ध्वज अर्पण

भारत के पांचवें राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रशंसा के चिह्न के रूप में इंडियन मिलिटरी ऐकडमी को नया ध्वज प्रदान किया। उन्होंने जेंटलमैन कैडेट सीनियर अंडर ऑफिसर डी. एस. हूडा के कमरबंद में ध्वज लगाया. जी.सी. रुमेल दहिया को स्वॉर्ड ऑफ ऑनर और गोल्ड मेडल दोनों से सम्मानित किया गया।

1977 में, किचनर कॉलेज की संतति, आर्मी कैडेट कॉलेज (ACC) को पुणे से देहरादून के IMA में स्थानांतरित किया गया, जिसने भारतीय सेना अन्य पदों और NCO के उम्मीदवारों को भर्ती कर लिया जिन्होंने अधिकारियों के पाठ्यक्रम के लिए योग्यता प्राप्त करने के लिए प्राथमिक परीक्षा को उतीर्ण कर लिया था। 1980 में, कमान्डेन्ट को पदोन्नत कर लेफ्टिनेन्ट जनरल बनाया गया और लेफ्टिनेंट जनरल एम. थॉमस, AVSM, VSM, ने दिसंबर 1980 में कमान्डेन्ट का पद संभाला. डेप्यूटी कमान्डेन्ट और चीफ इन्स्ट्रक्टर को भी जुलाई 1982 में पदोन्नत करके मेजर जनरल बना दिया गया जब मेजर जनरल समीर सिंह पन्नू को इस पद के लिए नियुक्त किया गया। बाद में और भी कई पदोन्नतियां हुई जिसके तहत कमांडर ACC विंग और हेड ऑफ़ द ऐकडमिक डिपार्टमेन्ट को ब्रिगेडियर का पद प्राप्त हुआ।

स्वर्ण जयंती समारोह

ब्रिगेडियर एल. पी. कॉलिन्स, CB, DSO, OBE, ADC, से लेकर लेफ्टिनेन्ट जनरल मैथ्यू थॉमस, AVSM, VSM, तक का सफ़र इंडियन मिलिटरी ऐकडमी के लिए 50 वर्षों का एक सफ़र था। भारत के तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ सर फिलिप शेत्वुड द्वारा जेंटलमैन कैडेट के रूप में दृष्टिगत कैडेट में से कुछ कैडेट स्वर्ण जयंती महोत्सव में पधारे थे। तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा दृष्टिगत 500 जेंटलमैन कैडेट के गोल्डन जुबली परेड को उन्होंने अपनी आंखों से देखा. 1982 में ही IMA ने माउन्ट्स कैमेट (25,447 फीट) और ऐबी गैमिन (24,130 फीट) के अभियान को सफलतापूर्वक पूरा किया। इस अभियान टीम का नेतृत्व ब्रिगेडियर जगजीत सिंह, AVSM (Bar), VSM, ने कैप्टन भूपिंदर सिंह और कैप्टन डी.बी. थापा के कुशल सहयोग से किया था।

इस समारोह में, लेफ्टिनेंट जनरल जे. एस. अरोरा, PVSM (सेवानिवृत्त) ने लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए. के. नियाजी (ढाका के भूतपूर्व ईस्ट पाकिस्तान फोर्सेस का कमांडर) का पिस्तौल प्रस्तुत किया। इस पिस्तौल को IMA म्यूज़ियम में रखने के लिए कमांडेंट को सौंप दिया गया।

हीरक जयंती (1992) और उसके बाद

हीरक जयंती वर्ष में, भारत के राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन ने, IMA के 90वें नियमित और 73वें तकनीकी स्नातक कोर्स के कैडेट्स की 'पासिंग आउट परेड' का निरीक्षण किया।

अकादमी के प्रचलन के पैमाने को इस तथ्य से आंका जा सकता है कि 50,000 से भी अधिक कैडेट्स सेना में भर्ती हो चुके हैं। यह संख्या, ऑस्ट्रेलिया के डुनट्रून जैसी पुरानी अकादमियों से भर्ती होने वाले कैडेट्स की संख्या से कहीं ज़्यादा है।

ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो, इंडियन मिलिटरी ऐकडमी (IMA) एक आदर्श सैन्य संस्था है और भारतीय उपमहाद्वीप में, अपने इलाके की पहली प्रशिक्षण संस्था है।

01.10.2007 को IMA ने 75 वर्ष पूरे किये।

    • दीप्ति भल्ला और कुणाल वर्मा द्वारा निर्मित, IMA की फिल्म "मेकिंग ऑफ़ ए वॉरियर" देखें

संरचना

कैडेट्स को चार प्रशिक्षण बटालियनों में बांटा गया है और हर बटालियन की 3 या 4 कम्पनियां होती है और कंपनियों की संख्या कुल मिलाकर 16 होती है।

बटालियन और कम्पनियां

  • करियप्पा बटालियन में निम्न कम्पनियां अंतर्भुक्त हैं:
कोहिमा कम्पनी
नौशेरा कम्पनी
पूंछ कम्पनी
हाजिपीर कम्पनी
  • थिमइया बटालियन में निम्न कम्पनियां अंतर्भुक्त हैं:
अलामीन कम्पनी
मेइक्तिला कम्पनी
डोग्राई कम्पनी
  • माणेकशॉ बटालियन में निम्न कम्पनियां अंतर्भुक्त हैं:
इम्फाल कम्पनी
ज़ोजिला कम्पनी
जेस्सोर कम्पनी
सैन्ग्रो कम्पनी
  • भगत बटालियन में निम्न कम्पनियां अंतर्भुक्त हैं:
सिंहगढ़ कम्पनी
केरन कम्पनी
कसीनो कम्पनी
बसन्तार कम्पनी

बटालियनों के नाम भारतीय सेना के जनरल और कमान्डेन्ट्स के नामों के आधार पर होते हैं, जबकि कम्पनियों के नाम उन लड़ाइयों के नामों से जुड़े होते हैं जिसमें भारतीय सेना ने हिस्सा लिया था। इनमें से कुछ लड़ाइयां (कोहिमा, इम्फाल, कसीनो और अलामीन) ब्रिटिश इंडियन आर्मी (ब्रिटिश भारतीय सेना) के समय की लड़ाइयां हैं। इन लड़ाइयों में सिंहगढ़ एक अपवाद है क्योंकि यह एक आरंभिक लड़ाई से संदर्भित है।

IMA का सम्पूर्ण संचालन कमान्डेन्ट के नेतृत्व में होता है और उनकी सहायता के लिए डेप्यूटी कमान्डेन्ट होता है और क्लासरूम प्रशिक्षण में मदद करने के लिए एक हेड ऑफ़ ऐकडमिक्स डिपार्टमेंट (H.A.D) होता है।

1980 में, कमान्डेन्ट की पदोन्नति हुई और उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर नियुक्त किया जाने लगा।

उल्लेखनीय पूर्व-छात्र

साँचा:ambox

बाहरी कड़ियाँ