आहड़-बनास संस्कृति
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भौगोलिक विस्तार | South Asia |
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काल | Bronze Age (black and red ware culture) |
तिथियाँ | साँचा:circa |
उदहारण स्थल | Settlement |
मुख्य स्थल | in Rajasthan and Madhya Pradesh, India |
विशेषताएँ | Contemporary of Indus Valley Civilisation, Ochre Coloured Pottery, Cemetery H |
पूर्ववर्ती | Chalcolithic |
परवर्ती | Black and red ware culture, Vedic Period |
साँचा:template otherआहड़ संस्कृति एक ताम्र पुरातात्विक संस्कृति है जो दक्षिणपूर्व राजस्थान में आहाड़ नदी के तट पर ईसापूर्व 3000 से ईसा पूर्व 1500 तक फली-फूली। यह सिंधु घाटी सभ्यता के समीपवर्ती और समकालीन है। इसे बनास संस्कृति भी कहते हैं।।बनास और बेरच नदियों के साथ-साथ आहड़ नदी के किनारे स्थित, आहड़-बनास लोग अरावली श्रेणी के तांबे के अयस्कों का उपयोग करके कुल्हाड़ियाँ और अन्य कलाकृतियाँ बनाते थे। वे गेहूं और जौ सहित कई फसलों का उत्पादन करते थे।
आहड़, उदयपुर नगर/ मेवाड़ क्षेत्र के पूर्व में बहने वाली आयड़/बेड़च नदी के तट पर स्थित है। आहड़ को प्राचीनकाल में ताम्बवती/ताम्रवती के नाम से जाना जाता था। १०वीं व ११वीं शताब्दी में आहड़ को अघाटपुर या अघाटदुर्ग भी कहा जाता था। वर्त्तमान में आहड़ के स्थानीय लोग इसे 'धूलकोट' के नाम से जानते हैं।[१]
आहड़ संस्कृति, तकनीकी रुप से बहुत विकसित थी। खुदाई से पता चलता है कि आहड़ संस्कृति के इस दौर में खेती यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हुआ करती थी। यहां तांबे के औज़ार, तरह तरह के बर्तन और सार्वजनिक भवनों के अवशेष मिले हैं जिससे लगता है कि यहां की संस्कृति बहुत समृद्ध रही होगी।
आहड़ में पुरातत्वविदों को व्यवसाय के दो दौर मिले। पहला दौर अर्ध-ऐतिहासिक है जिसमें लोग तांबे का प्रयोग करते थे। इसे आहड़ अविध प्रथम दौर भी कहा जाता है जो 2580 ई.पू. और 1500 ई.पू. के बीच था। दूसरा ऐतिहासिक दौर है जिसे आहड़ अवधिक द्वितीय कहते हैं और जिसमें लोग धातु का प्रयोग करते थे। ये अवधि 1000 ई.पू. के बाद की है। यहां खुदाई में धातु की कलाकृतियां, काली पॉलिश की हुई वस्तुएं, कुषाण तथा अन्य साम्राज्यों के समय की कलाकृतियां, ब्राह्मी लिपि से अंकित तीन मोहरें और सिक्के मिले थे।
इनके अलावा खुदाई में धान की खेती, पालतू मवेशी, बहुत कम संख्या में पालतू भेड़, बकरी, बैल, सूअर और कुत्तों की अस्थियां भी मिली थी। इसके अलावा जंगली जानवरों की भी अस्थियां मिलीं जिनका शिकार किया गया होगा। सपाट कुल्हाड़ियां, अंगूठियां, चूड़ियां, तार और ट्यूब आदि जैसी तांबे की कलाकृतियां भी मिली थीं। इसके अलावा एक गढ्डा भी मिला जिसमें तांबे की तलछट और राख थी। इससे पता चलता है कि यहां तांबे को पिघलाने का काम होता होगा। आहड़ में जो अन्य वस्तुएँ मिली हैं उनमें टेराकोटा की कलाकृतियां जैसे मनका, चूड़ियां, कान की बालियां, जानवरों की छोटी मूर्तियां, कम क़ीमती मोती के मनके जिनमें एक राजावर्त नग है, पत्थर, शंख और अस्थियों की वस्तुएं शामिल हैं।
बर्तनों में विविधता आहड़ की वस्तु संस्कृति की विशेषता है। यहां बर्तनों की कम से कम आठ क़िस्में मिली हैं। काले और लाल रंग के बर्तन आहड़ संस्कृति की विशिष्टता है। इस पर आर.सी. अग्रवाल का ध्यान गया था। बर्तनों की अन्य क़िस्मों में काले और लाल रंग का बर्तन जिस पर सफ़ेद रंग की पॉलिश है, भूरा बर्तन, चमड़े के बर्तन आदि शामिल हैं।[२]
इन्हें भी देखें
- सिन्धु घाटी की सभ्यता
- मालवा संस्कृति
- जोरवे संस्कृति
- भारतीय उपमहाद्वीप में मिट्टी के बर्तन
बाहरी कड़ियाँ
टिप्पणियाँ
संदर्भ
- जेन मैकिन्टोश, द प्राचीन सिंधु घाटी: नए दृष्टिकोण, एबीसी- CLIO, 2008, , 77 एफ।
- स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- रोहित परिहार, पीहर अहर पहेली। 4,500 साल पुरानी अहार संस्कृति के स्थलों की खुदाई से हड़प्पावासियों और उनके पूर्ववर्तियों के बीच की कड़ी का पता चलता है। 12 मार्च, 2001 indiatoday.intoday.in
- पश्चिमी भारत में खोजे गए सील छापों का कैश अल्पज्ञात अहार-बनास संस्कृति में सांस्कृतिक जटिलता के लिए नए प्रमाण प्रदान करता है, लगभग 3000-1500 ई.पू. यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी एंड एंथ्रोपोलॉजी