आसल उत्ताड़ का युद्ध
आसल उत्ताड़ का युद्ध | |||||||
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१९६५ के भारत-पाक युद्ध का भाग | |||||||
भारत द्वारा विनाशित पाकिस्तानी पैटन टैंक | |||||||
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योद्धा | |||||||
सेनानायक | |||||||
साँचा:flagicon लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह साँचा:flagicon मेजर जनरल गुरबख्श सिंह साँचा:flagicon लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह राठौड़ |
साँचा:flagicon मेजर जनरल नासिर अहमद खान [२] | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
45 सेंचूरियन टैंक, 45 M4 शर्मन टैंक, 45 ए एम एक्स-13 टैंक |
4th कैवेलरी(44 पैटन टैंक)[२]
5th हॉर्स (44 पैटन टैंक)[२] 6th लैंसर्स (44 पैटन टैंक)[२] 24th कैवेलरी (44 पैटन टैंक)[२] 12th कैवेलरी (44 M24 शैफ टैंक)[२] 19th लैंसर्स (44 पैटन टैंक)[२] | ||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||
10 टैंक नष्ट या खराब[५] | 100 टैंक नष्ट[६][७][८] |
साँचा:Campaignbox Indo-Pakistani War of 1965 साँचा:Campaignbox भारत पाक युद्ध
आसल उत्ताड़ का युद्ध (पंजाबी: ਆਸਲ ਉਤਾੜ[९])१९६५ के भारत-पाक युद्ध के दौरान लड़ा गया सबसे बड़ा टैंक युद्ध था। यह युद्ध 8 से 10 सितंबर, 1965 के दौरान लड़ा गया था जब पाकिस्तानी सेना ने अपने टैंकों व पैदल सेना के द्वारा भारतीय भूमि पर धावा बोला और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 5 किमी अंदर स्थित खेमकरण पर कब्जा कर लिया।[१०] भारतीय सेना ने भी तगड़ा जवाब दिया और 3 दिन के भीषण युद्ध के बाद आसल उत्ताड़ के समीप पाकिस्तानी फौज को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस जीत के प्रमुख कारण थे भारतीय सेना का जबरदस्त संघर्ष, मैदान की स्थितियाँ, भारत की बेहतर चालें व सफल रणनीति। [७][११]
डॉ० फिलिप टॉल सहित कई युद्ध इतिहासकारों का मानना है कि खेमकरण के पास हुए इस युद्ध का भारतीय प्रतिरोध उन प्रमुख घटनाओं में से एक था जिसने इस युद्ध में पलड़ा भारत की ओर झुका दिया।[८] पीटर विल्सन कहते हैं कि[१] आसल उत्ताड़ की पराजय 1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना कि सबसे बड़ी पराजयो में से एक थी।[१]
उपक्रम
पाकिस्तान द्वारा ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के जबाव में भारतीय पश्चिमी सेना के कमांडर जनरल हरबख्श सिंह ने पहली और 11वीं कोर के साथ आक्रामक कार्रवाई शुरू की। 1 कोर, जिसमें 1 बख्तरबंद डिवीजन, 6 माउंटेन डिवीजन, 26वीं इन्फैंट्री डिवीजन और 14वीं इन्फैन्ट्री डिविज़न शामिल थे, ने चिनाब के दक्षिणी किनारे पर जम्मू-सियालकोट सेक्टर में एक आक्रामक अभियान शुरू किया। वहीं 11वीं कोर जिसमें 15वीं इन्फैंट्री डिवीजन, 7वीं इन्फैंट्री डिवीजन और 4 माउंटेन डिवीजन शामिल थे, इचोगिल नहर के पूर्वी तट से लगें क्षेत्रों और महत्वपूर्ण पुलों को नष्ट करने का कार्य शुरू कर दिया। 11वीं कोर को दिये कार्य निम्नानुसार थे:
- 15वीं इन्फैन्ट्री डिवीजन को अमृतसर-लाहौर के बीच ग्रांड ट्रंक रोड के माध्यम से हमला करने को कहा गया।
- 7वीं इन्फैन्ट्री डिवीजन को भिक्कीविंड-खालरा-बार्की कि ओर हमला करने को कहा गया।
- चौथी माउंटेन डिवीजन कम 33वीं माउंटेन ब्रिगेड को खेमकरण-कसूर की ओर हमला करने को कहा गया। जिसनें ही आसल उत्ताड़ का युद्ध लडा।
सैन्य बल
चौथी माउंटेन डिवीजन
भारत कि ओर से आसल उत्ताड़ की लड़ाई, चौथी माउंटेन डिवीजन के द्वारा लड़ा गया था,
इसमें अन्य टुकडियाँ भी शामिल थी:[१२]
- 7 माउंटेन ब्रिगेड के तीन टुकडियाँ, 4 ग्रेनेडियर, 7 ग्रेनेडीयर और 1/9 गोरखा राइफल्स थे।
- 62 माउंटेन ब्रिगेड जिसमें 18 राजपूताना राइफल्स, 9 जम्मू और कश्मीर राइफल्स और 13 डोगरा टुकडियाँ शामिल थी।
- शेरमेन टैंक से सुसज्जित डेक्कन हॉर्स।
- एक फील्ड रेजिमेंट (25 पाऊंडर्स), दो माउंटेन रेजिमेंट (3.7 इंच तोपें), एक मध्यम रेजिमेंट (5.5 इंच बंदूक) और एक लाइट रेजिमेंट (120 मिमी मोर्टार) के साथ आर्टिलरी ब्रिगेड।
- 41 फील्ड पार्क कंपनी के साथ 1, 77 और 100 फील्ड कंपनियां।
- रिजर्व कोर, 2 आर्मर्ड ब्रिगेड के साथ दो बख्तरबंद रेजीमेंट, 3 कैवलरी (सेंचुरियन) और 8 कैवलरी (एएमएक्स)।
युद्ध
पाकिस्तान की आक्रामक सेना, जिसमें प्रथम बख्तरबंद डिवीज़न व 11वीं इन्फैंट्रि डिवीज़न शामिल थे, ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार की और भारतीय शहर खेमकरण पर कब्जा कर लिया। स्थिति को भाँपते हुए, भारत की चौथी माऊण्टेन डिवीज़न के जनरल ऑफिसर कमाण्डिंग मेजर जनरल हरबख्श सिंह ने तुरन्त अपनी डिवीज़न को पीछे हटने का आदेश दिया और आसल उत्ताड़ को केन्द्र में रखते हुए घोड़े की नाल के आकार में प्रतिरक्षात्मक व्यूह बनाने को कहा।
रात के समय, गन्ने के खेतों में भारतीय टैंको ने मोर्चा संभाल लिया और अगली सुबह मुख्यतः M-47 और M-48 पैटन टैंकों से लैस पाकिस्तान की प्रथम बख्तरबंद डिवीज़न को भारतीय सेना ने अपने व्यूह में फाँस लिया। दलदली ज़मीन ने पाकिस्तानी टैंको की चाल धीमी कर दी और कई टैंक तो कीचड़ में फँस कर ही रह गए। भारत की बख्तरबंद ब्रिगेड ने व्यूह में फँसे पाकिस्तानी टैंको कों नेस्तनाबूद कर दिया। लगभग 100 पाकिस्तानी टैंक जिनमें अधिकतर पैटन और कुछ शर्मन व शैफ टैंक थे, नष्ट कर दिए गए अथवा कब्जा लिए गए।[७][८] जब कि भारतीयों के अनुसार उन्होंने केवल 10 ही टैंक खोए।[५]
निर्णय
शुरुआत में भारतीय भूमि पर पाकिस्तानी सेना ने बढ़त हासिल की लेकिन इस युद्ध का अंत भारत की निश्चित विजय के साथ हुआ।[१] पाकिस्तानी सेना के कमाण्डर मेजर जनरल नासिर अहमद खान युद्ध में मारे गए।[१] युद्ध इतिहासकार स्टीवन ज़ोल्गा के अनुसार, पाकिस्तान ने स्वीकार किया किया कि उसने 1965 के युद्ध में कुल 165 टैंक खो दिए जिनमें से आधे से अधिक आसल उत्ताड़ के विनाश में थे।[५]
बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे परवेज़ मुशर्रफ़ ने इस युद्ध में 16 (SP) फील्ड रेजिमेंट, प्रथम बख्तरबंद डिवीज़न आर्टिलरी के एक लेफ्टिनेंट के तौर पर हिस्सा लिया था। यह युद्ध एक भारतीय सिपाही अब्दुल हमीद की वीरता का गवाह भी बना जिन्होनें दुश्मन के सात[१३] टैंकों को एक जीप माऊण्टेड रिकॉइललेस गन की मदद से तबाह कर दिया। इस असाधारण वीरता के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।[१४]
इस युद्ध के परिणामस्वरूप युद्ध स्थल पर इतने टैंक इकट्ठे हो गए थे कि इस स्थान को "पैटन नगर" कहा जाने लगा था।[५]
गैलरी
- PattonNagar03.jpg
खेमकरण में प्रदर्शित टैंक
इन्हें भी देखेंSee also
सन्दर्भ
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- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए साँचा:cite web
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- ↑ साँचा:cite book
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- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ "Battle of Asal Uttar:" P K Chakravorty पेज ११९
- ↑ Maj Gen Cardozo, Ian (2003). PARAM VIR. नई दिल्ली: Lotus Collection. ISBN 81-7436-262-2
- ↑ The Param Vir Chakra Winners' home page for Company Quarter Master Havildar Abdul Hamid स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। indianarmy.nic.in
स्रोत
- 1965 Official War History, Ministry of Defence, भारत सरकार
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