आर्यसंघाट सूत्रम्
आर्यसंघाट सूत्रम् संस्कृत में लिखित महात्मा बुद्ध के राजगृह में दिये गये उपदेशों का संग्रह है। यह "धर्म पर्याय" नामक विशेष सूत्रों का संग्रह है। ऐसी मान्यता है कि इसका विशिष्ठ ढ़ंग से पाठ करने या श्रवण करने वालों का आमूल परिवर्तन हो जाता है। ये सूत्र इस मामले में अनन्य हैं कि बुद्ध ने इन्हें पूर्ववर्ती बुद्ध से सुना था।
अन्य संस्कृत ग्रन्थों की भाँति आर्यसंघाट सूत्र भी महात्मा बुद्ध के शिष्यों द्वारा कंठस्थ कर लिया गया था और बाद में तालपत्रों आदि पर लिपिबद्ध कर दिया गया। इतिहासपरक शोध से पता चलता है कि संघाट सूत्र आठवीं शती तक बौद्धों का मुख्य ग्रन्थ बना रहा। किन्तु इसके बाद दुर्दैव से सन् १९३० तक संघाट सूत्र अप्राप्य रहे। फिर सन् १९३१ एवं सन् १९३८ में पाकिस्तान के गिलगित क्षेत्र से संघाटसूत्र की कम से कम सात पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुईं। इसके बाद विद्वानों का ध्यान संघाटसूत्र के महत्व पर गया।
संघाट का अर्थ
- (१) दल, समूह या संघ आदि में रहनेवाला। वह जो दल बाँधकर रहता हो।
- (२) लकडी आदि को जोड़ना या मिलाना। जोड़ने का काम। बढ़ईगिरी।
बाहरी कड़ियाँ
- Website of the Arya Sanghata Sutra
- http://www.uwest.edu/sanskritcanon/dp/old/Sutra/devanagari/Sutraसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] 45/Part1.html आर्यसंघाट सूत्रं (देवनागरी पाठ)