आर्द्रतामापी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
डायल वाला आर्द्रतामापी

वायुमंडल की आर्द्रता नापने के साधनों को आर्द्रतामापी (हाइग्रोमीटर / Hygrometer) कहते हैं।

प्रकार

रासायनिक आर्दतामापी

बहुत से ऐसे पदार्थ हैं, जैसे सल्फ्यूरिक अम्ल, कैल्सियम क्लोराइड, फॉसफोरस पेंटाक्साइड, साधारण नमक आदि, जो जलवाष्प के शोषक होते हैं। इनका उपयोग करके रासायनिक आर्दतामापी बनाए जाते हैं, जिनके द्वारा वायु के एक निश्चित आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा ग्राम में ज्ञात की जाती है। एक बोतल में फॉसफोरस पेंटाक्साइड और दो तीन नलियों में कैल्सियम क्लोराइड भरकर तौल लेते हैं। फिर इस बोतल को एक वायुचूषक (ऐस्पिरेटर) की शृंखला में जोड़ देते हैं। चूषक चालू कर देने पर जल गिरता है और रिक्त स्थान में हवा बोतल तथा नलियों के भीतर से होकर आती है। पूर्वोक्त रासायनिक पदार्थ वायु के जलवाष्प को सोख लेते हैं और सूखी वायु चूषक में एकत्र हो जाती है। बोतल तथा नलियां रासायनिक पदार्थों सहित फिर तौली जाती हैं। पहली तौल को इसमें से घटाकर जलवाष्प की मात्रा, जो एकत्रित वायु के भीतर थी, ज्ञात हो जाती है। ऐसे यंत्र द्वारा आर्द्रता का पता बड़ी सूक्ष्मता से लगाया जा सकता है, परंतु परिणाम प्राप्त करने में समय लगता है।

अन्य आर्द्रतामापी

अन्य आर्द्रतामापी डाइन, डेनियल या रेनो के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा हम ओसांक (dew point) ज्ञात करते हैं। फिर इस ओसांक और वायु के ताप पर वाष्पदाब का मान, रेनो की सारणी देखकर, आपेक्षिक आर्द्रता ज्ञात कर सकते हैं।

साइक्रोमीटर

इनके अतिरिक्त वायु में किसी समय नमी की तात्कालिक जानकारी के लिए गीले और सूखे बल्बवाले आर्द्रतामापी (वेट ऐंड ड्राइ बल्ब हाइग्रोमीटर) का निर्माण किया गया है। इसे साइक्रोमीटर (psychrometer) भी कहते हैं। इस उपकरण में दो समान तापमापी एक ही तख्ते पर जड़े रहते हैं। एक तापमापी के बल्ब पर कपड़ा लपेटा रहता है, जो सदा भीगा रहता है। इसके लिए कपड़े का एक छोर नीचे रखे हुए बर्तन के पानी में डूबा रहता है। कपड़े के जल का वाष्पीभवन रहता है, जो वायु की आर्द्रता पर निर्भर रहता है। जब वायु में नमी की कमी होती है तो वाष्पीभवन अधिक और इसका मुख्य अंग एक बाल (केश) होता है, जो न्यूनाधिक आर्द्रता के अनुसार घटता-बढ़ता है। जब वायु में नमी की अधिकता होती है तो वाष्पीभवन कम होता है। वाष्पीभवन के अनुसार गीले बल्बवाले तापमापी का पारा नीचे उतर आता है और दोनों तापमापियों के पाठों में अंतर पाया जाता है। उनके पाठों में यह अंतर वायु की नमी की मात्रा पर निर्भर रहता है। यदि वायु जलवाष्प के संतृप्त हो तो दोनों तापमापियों के पाठ एक ही रहते हैं। रेनो की सारणी में विभिन्न तापों पर इस अंतर के अनुकूल जलवाष्प की दाब दी हुई है, अत: दोनों तापमापियों का पाठ लेकर आपेक्षिक आर्द्रता तथा ओसांक का मान ज्ञात किया जाता है।

तापमापियों पर वायु बदलती रहे, इस उद्देश्य से कुछ साइक्रोमीटरों को एक चाल से घुमाने का आयोजन किया रहता है। तख्ती मोटर द्वारा प्रति सेकंड चार बार घुमाई जाती है, जिससे वायु सदा बदलती रहती है। ऐसे साइक्रोमीटरों के लिए आपेक्षिक आर्द्रता की सारणी इसी परिभ्रमण संख्या 4 के अनुकूल बनाई जाती है। परिभ्रमण सेपारे की सतह हिलती रहती है। इस दोष को दूर करने और शुद्ध मापन के लिए अन्य उपाय उपाय का प्रयोग किया गया है। एक प्रकार के यंत्र में दोनों तापमापियों को धातु की दोहरी नली के भीतर स्थिर रखा जाता है और नली के भीतर की हवा एक छोटे बिजली के पंखे द्वारा बदलती रहती है। ऐसी दोहरी दीवाल की नली से विकिरणों का भी प्रभाव नहीं पड़ने पाता।

डी सोस्यूर का आर्द्रतादर्शक

किंतु उपरोक्त आर्द्रतामापियों से आर्द्रता का मान शीघ्र नहीं ज्ञात किया जा सकता। इसके अतिरिक्त वायु में नमी की मात्रा क्षण-क्षण पर बदलती रहती है तथा हमें क्षण प्रति क्षण नमी का पता पूरे दिन भर का जानना आवश्यक होता है। पूर्वोक्त यंत्रों द्वारा हम वायुमंडल के ऊपरी भाग की आर्द्रता का अध्ययन भी नहीं कर सकते। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बाल (केश) की लंबाई पर नमी के प्रभाव को देखकर सर्वप्रथम डी सोस्यूर ने एक आर्द्रतादर्शक का निर्माण किया। इस आर्द्रतादर्शक में एक रूखा स्वच्छ बाल रहता है। बाल का एक सिरा धातु के टुकड़े के बारीक छिद्र में पेंच द्वारा जकड़ा रहता है। नीचे की ओर बाल का एक फेरा एक घिरनी पर लपेट दिया जाता है। तब बाल के सिरे को घिरनी की बारी (रिम) में पेंच द्वारा जकड़ दिया जाता है। घिरनी की धुरी पर एक संकेतक लगा रहता हे। बाल की लंबाई बढ़ने पर एक कमानी के कारण घिरनी एक ओर और घटने पर दूसरी ओर घूमती है और उसके साथ संकेतक वृत्ताकार मापनी पर चलता है। मापनी का अंशांकन आर्द्रतामान में किया रहता है, अत: संकेतक के स्थान से मापनी पर आर्द्रता का मान प्रतिशत तुरंत पढ़ा जा सकता है। इसी के आधार पर स्वलेखी आर्द्रतामापी बनाए हैं, जिनके द्वारा ग्राफ पर 24 घंटे अथवा पूरे सप्ताह के प्रत्येक क्षण की आर्द्रता का मान अंकित किया जाता है। किंतु एक बाल से इतनी पुष्टता नहीं आती कि घिरनी के संकेतक से ग्राफ लिखवाया जा सके, विशेषकर जब ऐसा उपकरण गुब्बारे अथवा विमान में ऊपरी वायुमंडल के अध्ययन के लिए लगाया जाता है। पुष्टता के लिए बालों के गुच्छे अथवा रस्सी का उपयोग किया जाता है। परंतु इससे आर्द्रतामापी की यथार्थता घट जाती है। देखा गया है कि घोड़े का एक बाल मनुष्य के बालों की रस्सी से अधिक उपयोगी होता है। इसलिए इनका प्रयोग किया जाता है, परंतु एक अन्य दोष के कारण शीत प्रदेशों में इसका उपयोग नहीं हो सकता। ताप घटने से जलवाष्प के प्रति बाल की चेतनता क्षीण हो जाती है। तब उपकरण बहुत समय के बाद नमी से प्रभावित होता है। -40° सें. पर तो बाल बिलकुल कुंठित हो जाता है।

डनमोर का वैद्युत-प्रतिरोध पर आधारित आर्द्रतामापी

अब कुछ ऐसे विद्युत चालक पदार्थों का पता चला है जिनके वैद्युत अवरोध में जलवाष्प के कारण परिवर्तन होता है। डनमोर ने ऐसे आर्द्रतामापी का निर्माण ऊपरी वायुमंडल के अध्ययन के लिए किया है। इसमें लीथियम फ्लोराइड की पतली परत होती है जिसका वैद्युत अवरोध जलवाष्प के कारण बदलता है। यह परत विद्युत्परिपथ (इलेक्ट्रिक सरकिट) में लगी रहती है। अवरोध के परिवर्तन से धारा घटती बढ़ती है, अत: धारामापी की मापनी पर आर्द्रतामान पढ़ा जा सकता है। धारामापी के संकेतक को स्वलेखी बनाकर आर्द्रता का मान ग्राफ पर अंकित भी किया जा सकता है। गुब्बारे और वायुयानों में प्राय: ऐसे ही आर्द्रतामापी लगे रहते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ