The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
आनंद पर्वतदिल्ली का एक प्राचीन संस्कृति का क्षेत्र है, पहले जिसका नाम काला पहाड़ था। यहां की ज़मीन में अभ्रक की मात्रा बहुत अधिक है। किसी ज़माने में यह दिल्ली का बहुश्रुत स्थल था। यह इण्डिया गेट के भूमि तल से 165 फुट ऊँचा पहाड़ है जहाँ ऊपर बनें घरों की छतों से आज भी पूरी दिल्ली का 360 डिग्री का विहंगम दिग्भ्रमणात्मक दृश्य रमणीय है।यह सर्वत्र कीकर और जांड नामक झाड़ीनुमा कटीले पेड़ों से अटा पड़ा है। यहाँ पुरानी अकादमिक संस्कृति रही है। ऊपर पुराने विद्यालय स्वातन्त्रय पूर्व अंग्रेजी राज से आज भी ज्यों के त्यों हैं। अब भी वहां अनेक स्वतंत्र भारत से पूर्व के परिवार के लोग रहते हैं जो अधिकांश अध्यापकों के वंशज हैं। यहाँ दशकों से सैन्य छावनी स्थित है जो 600 एकड़ से अधिक पर्वतीय हरित क्षेत्र का संरक्षण करती आई है। यहां के पुराने हरित भागों में बीसवीं शती के 90 के दशक तक भी जंगली नील गाय, चितरीदार हिरन, जंगली सूअर, लौमड़ियां, जंगली कुत्ते, मोर, तोते,बत्तख,जलेबिया साँप, नेवले, भूमिगत दीमक की बांबियां, सफेद उल्लू, बड़ी नस्ल के चमगादड़, गिद्ध, की भरमार रही है। कुल मिलाकर आनंदकर जलवायु का निकर होने से सरकार ने इसका नामकरण आनंद पर्बत ही कर दिया।
आज तुलनात्मक रूप से इस क्षेत्र की स्थिति शोचनीय है। सालों से वोट बैंक की राजनीति से ग्रस्त यह क्षेत्र दिल्ली की सघनतम आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। विकास की झूठी राजनीति के बोझ के तले लोकतंत्र दम तोड़ रहा है। सरकारें तीन तीन बार आकर चली जाती हैं पर विकास के नाम पर न पानी न बिजली और न सड़कें। स्थिति ऐसी है कि वहां के स्थानीय लोग ही सड़कें और नालियों की मरम्मत में लगे रहते हैं। यहाँ ऊपरी आंनद पर्बत के आज़ादी से पूर्व के पुराने परिवार पेयजल तो क्या सामान्य जल के लिए भी मोहताज हो गये हैं। तीन दशकों से यह स्थिति अधिक बिगड़ी है। सरकारी षड्यंत्रकारी राजनीतिमूलक नितियों के कारण आज भी सम्पन्न परिवारों को भी पेयजल टैंकरों से पहुंचाया जाता है न कि पाइपलाईनों की निश्चित व्यवस्था द्वारा। सरकार ने भी यहां के सुन्दर खाली पहाड़ों को उपेक्षित कर जुगाड़ू योजनाओं का कार्यान्वयन दिखाकर यहां इसे और सघन करने में कोई कसर न छोड़ते हुए यहां कठपुतली कालोनी बसा दी और 2015 से यहां लूटममार, चोरी, हत्याएं भी होने लगी हैं। उपेक्षित विकास और वोट बैंक ने यहां 8-8 दशकों पुराने गैर रजिस्ट्री के मकानों की भरमार कर दी है। न जाने कब घरों का विनिमयन होगा और इस क्षेत्र का भाग्योदय होगा। बस ईश्वर ही संरक्षक है।