असाधारण-प्रतिभाशाली शिशु

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वेनेजुएला के पियानोवादक टेरेसा कारेनो (1853-1917) ने नौ वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में प्रदर्शन किया था।

मनोवैज्ञानिक अनुसन्धान साहित्य में असाधारण-प्रतिभाशाली शिशु या अद्भुत-प्रतिभाशाली शिशु (अंग्रेजी : child prodigy या जर्मन : Wunderkind) १० वर्ष से कम आयु के उन बच्चों को कहते हैं जिनका किसी क्षेत्र में किसी विशेषज्ञ वयस्क के बराबर अर्थपूर्ण आउटपुट दे रहे हों। दूसरे शब्दों में, वह बालक जिसकी मानसिक आयु अपनी आयु वर्ग के अनुपात में औसत से बहुत अधिक हो, उसे प्रतिभावान या प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। संगीत, कला या किसी अन्य क्षेत्र में अत्यधिक योग्यता रखने वाला बालक भी प्रतिभाशाली बालकों की श्रेणी में आता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रतिभावान बालक बुद्धि के साथ-साथ शारीरिक रूप से, व्यक्तित्व रूप से, तथा समायोजन की दृष्टि से भी श्रेष्ठ होते हैं।

परिभाषा

अलग-अलग वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न तरह से 'असाधारण-प्रतिभाशाली शिशु' की परिभाषा की है।

हैविंगहर्स्ट (Havighurst) के अनुसार, “ प्रतिभाशाली बालक वे हैं जो समाज के किसी भी कार्यक्षेत्र में निरन्तर कार्यकुशलता का परिचय देते हैं।”

प्रेम पसरीचा ने प्रतिभाशाली बालक को इस प्रकार से परिभाषित किया है- “जो सामान्य बुद्धि की दृष्टि से श्रेष्ठ प्रतीत हो या उन क्षेत्रों में जिनका अधिक बुद्धिलब्धि से सम्बन्धित होना जरूरी नहीं, अति विशिष्ट योग्यताएँ रखता हो।”

अब्दुल रऊफ के अनुसार, “प्रायः उच्च बुद्धिलब्धि को प्रतिभाशाली होने का संकेत माना जाता है। अतः ‘प्रतिभाशाली बालक’ शब्द का अभिप्राय बालक की उच्च बुद्धिलब्धि से किया जाता है।”

कोलेसनिक के अनुसार, “वह प्रत्येक बालक जो अपने आयु स्तर के बच्चों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नया योगदान कर सके।”

टरमन के अनुसार, “प्रतिभाशाली बालक वह है जिसकी बुद्धिलब्धि 140 है।”

प्रतिभाशाली बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 140 से अधिक होती है, समाज में प्रायः 2 से 4 प्रतिशत ही होते हैं। ये सामान्य बालकों से हर क्षेत्र में योग्य होते हैं व इनकी शैक्षिक उपलब्धि भी अधिक होती है। प्रतिभाशाली बालक समाज में अपने आपको अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा जल्दी सामायोजित कर लेते हैं।

ये किसी भी जाति, धर्म, लिंग और किसी भी समुदाय से सम्बन्धित हो सकते हैं। प्रतिभाशाली बालक राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। ये समाज के हर कोने में पाये जाते हैं। बहुत-से विकलांग बच्चों, जैसे- गूंगे-बहरे अस्थि बाधित, वाणी और भाषा सम्बन्धी दोष वाले बच्चों में भी प्रतिभाशाली बच्चे देखने को मिलते हैं।