धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों का एक प्रमुख उत्सव है। दुनिया भर से लाखों बौद्ध अनुयाई एकट्ठा होकर हर साल अशोक विजयादशमी एवं १४ अक्टूबर के दिन इसे मुख्य रुप से दीक्षाभूमि, महाराष्ट्र में मनाते हैं। इस उत्सव को स्थानीय स्तर पर भी मनाया जाता है।
२० वीं सदी के मध्य में डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने अशोक विजयादशमी के दिन १४ अक्टूबर १९५६ को नागपुर में अपने ५,००,००० अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। डॉ॰ आंबेडकर ने जहां बौद्ध धम्म की दीक्षा ली वह भूमि आज दीक्षाभूमि के नाम से जानी जाती है। डॉ॰ आंबेडकर ने जब बौद्ध धर्म अपनाया था तब बुद्धाब्ध (बौद्ध वर्ष) २५०० था। विश्व के कई देशों एवं भारत के हर राज्यों से बौद्ध अनुयाई हर साल दीक्षाभूमि, नागपुर आकर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस १४ अक्टूबर को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह त्यौहार व्यापक रूप से डॉ॰ आंबेडकर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।[१]
डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने यह दिन बौद्ध धम्म दीक्षा के चूना क्योंकि इसी दिन ईसा पूर्व ३ री सदी में सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म ग्रहन किया था। तब से यह दिवस बौद्ध इतिहास में अशोक विजयादशमी के रूप में जाना जाता था, डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया।[२]
इस त्यौहार में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध व्यक्ति एवं भारत के प्रमुख राजनेता भी सामिल रहते है।[३] धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर दीक्षाभूमि पर प्रति वर्ष हजारो लोग धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बनते हैं।[४] सन 2018 में 62वे धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 62,000 तथा सन 2019 में 63वे धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 67,543 अनुयायिओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म अपनाया था।[५]