अल-मुम्तहिना

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सूरा 'अल-मुम्तहिना (इंग्लिश:Al-Mumtahanah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 60 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 13 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-मुम्तहिना[१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-मुम्तह़िना[२] नाम दिया गया है।

नाम इस सूरा की आयत 10 में आदेश दिया गया है कि जो स्त्रियाँ हिजरत करके आएँ और मुसलमान होने का दावा करें उनकी परीक्षा ली जाए। इसी सम्पर्क से इसका नाम अल -मुम्तहिना रखा गया है। इसका उच्चारण मुम्तहना भी किया जाता है और मुम्तहिना भी। पहले उच्चारण के अनुसार अर्थ है “वह स्त्री जिसकी परीक्षा ली जाए” और दूसरे उच्चारण के अनुसार अर्थ है , “ परीक्षा लेने वाली सूरा।"

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मदनी सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत के पश्चात अवतरित हुई।

इसमें दो ऐसे मामलों पर वार्तालाप किया गया है जिसका समय ऐतिहासिक रूप से मालूम है। पहला मामला हज़रत हातिब बिन अबी - बल्तअह का है। और दूसरा मामला उन मुस्लिम स्त्रियों का है जो हुदैबिया की सन्धि के पश्चात् मक्का से हिजरत करके मदीना आने लगी थीं। इन दो मामलों के उल्लेख से (जिनका विस्तृत वर्णन आगे आ रहा है ) यह बात बिलकुल निश्चित हो जाती है कि यह सूरा हुदैबिया की सन्धि और मक्का की विजय के बीच के समय में अवतरित हुई है।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा के तीन भाग हैं : पहला भाग सूरा के आरम्भ से आयत 10 तक चलता है और सूरा की समाप्ति पर आयत 13 भी इसी से सम्बद्ध है। इसमें हज़रत हातिब (रजि.) बिन अबी - बल्तअह के इस कर्म पर कड़ी पकड़ की गई है कि उन्होंने केवल अपने परिवार के लोगों को बचाने के ध्येय से अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण युद्ध - सम्बन्धी रहस्य से दुश्मनों को अवगत कराने की कोशिश की थी , जिसे यदि ठीक समय पर असफल नहीं कर दिया गया होता तो मक्का की विजय के अवसर पर बड़ा रक्तपात होता। और वे समस्त उपलब्धियाँ भी प्राप्त न हो सकतीं जो मक्का पर शान्तिमय विजय प्राप्त करने की स्थिति में प्राप्त हो सकती थीं । (हज़रत हातिब रजि . की ) इस संगीन ग़लती को सचेत करते हुए अल्लाह ने समस्त ईमानवालों को यह शिक्षा दी है कि किसी ईमानवाले को किसी दशा में और किसी उद्देश्य के लिए भी इस्लाम के शत्रु के साथ प्रेम और मित्रता सम्बन्ध न रखना चाहिए और कोई ऐसा कम न करना चाहिए जो कुफ्र और इस्लाम के संघर्ष में काफ़िरों के लिए लाभकारी हो। अलबत्ता जो काफ़िर , इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध व्यवहारतः शत्रुता और तकलीफ़ पहुँचाने का बर्ताव न कर रहे हों उनके साथ सद्व्यवहार की नीति अपनाने में कोई दोष नहीं ।

दूसरा भाग आयत 10 और 11 पर आधारित है। इसमें एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या का फैसला किया गया है जो उस समय बड़ी जटिलता उत्पन्न कर रही थी। मक्का में बहुत - सी मुस्लिम स्त्रियाँ ऐसी थीं जिनके पति काफ़िर थे और वे किसी - न किसी तरह हिजरत करके मदीना पहुँच जाती थीं । इसी तरह मदीना में बहुत - से मुस्लिम पुरुष ऐसे थे जिनकी पत्नियाँ काफ़िर थीं और वे मक्का ही में रह गई थीं। उनके विषय में यह प्रश्न उठता था कि उनके मध्य दाम्पत्य - सम्बन्ध शेष है या नहीं । सर्वोच्च ईश्वर ने इसका सदैव के लिए यह निर्णय कर दिया कि मुस्लिम स्त्री के लिए काफ़िर पति वैध नहीं है और मुस्लिम पुरुष के लिए यह भी वैध नहीं कि वह बहुदेववादी पत्नी के साथ दाम्पत्य - सम्बन्ध बनाए रखे।

तीसरा भाग आयत 12 पर आधारित है जिसमें अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को आदेश दिया गया है कि जो स्त्रियाँ इस्लाम ग्रहण करें उनसे आप बड़ी - बड़ी बुराइयों से बचने का और भलाई के सभी तरीक़ों के अनुसरण का वचन लें )

सुरह "अल-मुम्तहिना का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Al-Mumtahanah 60:1

पिछला सूरा:
अल-हश्र
क़ुरआन अगला सूरा:
अस-साफ़्फ़ा
सूरा 60 - अल-मुम्तहिना

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें