अलोर का चच

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:infobox चच (लगभग 610-671 ईसवी)[१] सातवीं शताब्दी के मध्य में सिंध पर राज करने वाला एक ब्राम्हण वंश का शाशक था।[२] वह एक भूतपूर्व मंत्री और राजा राय साहसी (दूसरे) का प्रमुख सलाहकारा था। राजा के मरने के बाद उनकी विधवा रानी से शादी कर के वह सत्तासीन हो गया।[१] उसने अपने साम्राज्य को सिंध तक फैलाया। उसके आसपास के छोटे-२ राज्यों, कबीलों और सिंधु घाटी के अन्य स्वतन्त्र गुटों को अपने साम्राज्य में मिलाने के साहसिक व सफल प्रयासों की दास्तान चचनामा में लिखी हुई है।

परिचय

ब्राह्मण वंश में सिन्धु घाटी, लगभग ७०० ईसवी के दौरान।

चच एक ब्राह्मण था जो राय राजवंश के सिंध के राजा राय सहीरस (दूसरे) के कार्यकाल में प्रभावी पदों तक पहुंचा। उसके पिता का नाम शिलाइज (शिलादित्य) और भाई का नाम चंदर था और राजा बनने से पहले यह सिंध के राजा साहसी का सबसे प्रभावशाली मुख्य मंत्री रहा था।[३] कहते हैं कि राजा साहसी की मृत्यु के बाद उसे विधवा रानी से प्रेम हो गया और उनसे शादी कर के राजा बन गया। उसके इस तरह से राजा बनने का राजा साहसी के भाई और चित्तौण के समकालीन राजा राणा महारथ ने विरोध किया और सिंध के साम्राज्य पर अपना दावा किया। हालांकि बाद में चच ने ६६० ईसवी में उन्हें युद्ध में परास्त कर दिया।

शासन और युद्ध

चचनामा के अनुसार राणा महारथ ने जब यह पाया कि उनकी सेना चच की सेना के सामने ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही है तब उसने चच को एक द्वंद युद्ध के लिये ललकारा। महारथ अपने क्षत्रिय होने, युद्धकला में निपुण होने व चच के एक सामान्य ब्राह्मण मंत्री होने का फायदा उठाना चाहते थे। वह जानते थे की चच एक ब्राह्मण होने के नाते युद्धकला में निपुण नहीं होगा और उनसे हार जायेगा। चच इस प्रस्ताव के पीछे की मंशा को समझ चुका था लेकिन वह इस प्रस्ताव को ठुकरा भी नहीं सकता था। ऐसा करने पर उसे कमजोर समझ लिया जाता और शासन करने की उसकी क्षमता पर भी सवाल खडे होते। उसने राणा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। चच जानता था कि यह द्वंद युद्ध जीतने के लिये उसे सभी तरह के कूटनीतिक व मानसिक शक्तियों का प्रयोग करना होगा क्युँकि शारीरिक क्षमता व युद्धकला के बल पर वह राणा को नहीं हरा सकता था। इसलिये उसने एक चालाकी भरा दाँव खेलते हुए राणा का प्रस्ताव स्वीकर कर लिया और यह शर्त रक्खी की एक ब्राह्मण होने ने नाते वह घोडे पर बैठकर युद्ध नहीं कर सकता है और वह पैदल ही युद्ध करेगा। राणा ने यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया क्युँकि उन्हे लगा कि अनुभवी व अधिक बलवान होने की वजह से आमने सामने के पैदल युद्ध (द्वंद युद्ध/कुश्ती) में वह उसे तुरंत परास्त कर देंगे। दोनों घोडों पर से उतर गये लेकिन चच ने अपने सहायक सैनिक को घोडे के साथ अपने पीछे आने को कहा। नजदीक आते ही चच घोडे पर सवार हो गया और स्त्भद्ध खडे राणा पर तेजी से आक्रमण कर दिया। उसने राणा का सिर अपनी तलवार से एक झटके में काट दिया और राणा की मृत्यु के बाद उसकी सेना भी हार गई।[१]

चित्तौण के बाद के युद्ध

चच ने अपने भाई चंदर को अपने साम्राज्य के शासन में मदद करने के लिये अधिकृत किया। उसने अपने पक्ष के सरदारों को अच्छी जागीरें दीं, विरोधियों को कैद किया और राज्य को सुसंगठित कर दिग्विजय के लिये प्रयाण किया। चित्तौड़ के राजा को पराजित कर उत्तर की ओर उसने बीस नदी के तट पर बसे अपने विरोधियों इस्कन्दाह और सिक्का को हराया। जिसकी स्थिति संभव: सिंध और चिनाब के संगम के निकट थी। उसने सिक्का को जीतने के बाद लगभग ५००० लोगों को मौत के घाट उतार दिया और बाकियों को बंदी बना लिया।[४] इसके बाद मुल्तान और करूर की बारी आई। पश्चिमी प्रयाण में उसने मकरान और सिविस्तान को जीता। हालाँकि सिविस्तान के राजा भुट्टा को अपनी अधीनता में वहाँ का शासक बने रहने की अनुमति दी।

ब्राह्मणाबाद का युद्ध

इसके बाद उसने सिंधु नदी के दक्षिण में बौद्धों के क्षेत्र तक अपनी सत्ता का विस्तार किया। वहाँ के शासक अगम लोहाना ने उसका एक साल तक सामना किया। लेकिन ब्राह्मणाबाद के युद्ध में अगम की मृत्य के बाद उसके पुत्र सरहंद ने चच की अधीनता स्वीकार कर ली। सरहंद का विवाह चच की भतीजी से हुआ और चच ने अगम की विधवा से विवाह कर लिया। उसने स्थानीय निवासियों व जातीय समूहों को अपने आधिपत्य में करने और उनका विश्वास जीतने के लिये ढेरों अन्य कूटनीतिक नुस्खे अपनाए।
उसने [[जाट|जाटों]] और लोहानों को तलवार न बाँधने की आज्ञा दी। उन्हें काले और लाल रंग के उत्तरीय पहनने पड़ते थे, रेशमी कपड़े उनके लिये वर्जित थे। उन्हें घोड़े पर बिना जीन के चढ़ना और नंगे सिर, नंगे पैर घूमना पड़ता था। सिंध की वीर जातियों से चच का यह व्यवहार भारत के लिये अंतत: घातक सिद्ध हुआ। ब्राह्मणाबाद से उसने तुरन व कांधार होते हुए अर्मनबेला नगर की सीमाओं पर स्थित सासानिद पर हमला किया।

चच के बाद

चच ने चालीस वर्ष राज किया, किंतु जहाँ उसने राज्य की वृद्धि की वहाँ अपने कुछ कार्यों से उसे निर्बल भी बनाया। उसकी मृत्यु के बाद उसके भाई चंदर ने ८ वर्षों तक शासन किया जिसके बाद चच के ज्येष्ठ पुत्र राजा दाहिर ने शासन संभाला।

जाटों के साथ दुर्व्यवहार

चचनामा के अनुसार चच ने जाटों और लोहाणों के साथ बहुत दुर्व्यव्हार किया। उसने लोहाना को तलवार न बाँधने की आज्ञा दी। उन्हें काले और लाल रंग के उत्तरीय पहनने पड़ते थे, रेशमी कपड़े उनके लिये वर्जित थे। उन्हें घोड़े पर बिना जीन के चढ़ना और नंगे सिर, नंगे पैर घूमना पड़ता था। उनको बाहर निकलने पर अपने साथ कुत्तों को रखने व शाही रसोई के लिये लकडियाँ काटने व आपूर्ति करके की आज्ञाएँ दी गई। यह सब लोहाना के लिये बेहद असम्मानजनक बातें थी जिसने उनमें राज्य के प्रति असंतोष भर दिया। जाटो से चच को सत्ता के लिए विद्रोह का अंदेशा था इसलिए उसने इन्हें सत्ता से दूर रखने के लिए सेना में तो भर्ती किया लेकिन सलाहकारों से जुड़े महत्वपूर्ण पद नहीं दिए क्योंकि उसे डर था कि कहीं ये जाट क्षत्रिय तख्ता पलट न कर दें।

इस्लामी आक्रमण

644 ईसवी में सासानिद साम्राज्य पर इस्लामी विजय के बाद राशिदुन की सेना ने मकरान पर आक्रमण कर दिया और रसील के युद्ध में सिंध की सेना को हरा कर मकरान और बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया जो कि उस वक्त राय राजवंश के अधीनस्थ फ़ारसी क्षेत्र थे।[५][६]

चच के नाम पर बने महल

सिँधु नदी के किनारे बने ढेरों महलों को चच का नाम दिया गया। चचपुर, चाचर, चचरो, चचगाँव, चची इनमें प्रमुख हैं।[७]

साँचा:s-start साँचा:succession box साँचा:s-end

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • इलियट ऐंड डाउसन : चचनामा, खंड १ पृ. १३१-१५२;
  • होडीवाला : स्टडीज इन इंडो मुस्लिम हिस्ट्री, पृ. ८०-६
  • ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, दिल्ली, 1934

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. चचनामा
  4. साँचा:cite book
  5. साँचा:cite book
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. साँचा:cite book