अली बहादुर द्वितीय

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अली बहादुर 1850 से 1858 बांदा के नवाब रहे उन्होंने झांसी की रानी की सहायता की 1857 की क्रांति में और नानासाहेब और झांसी की रानी के साथ मिलकर ग्वालियर पर भी हमला बोला और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी जिसके तहत उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की मदद करना स्वीकार किया उनके पास करीब 10000 की सेना थी जो रानी लक्ष्मी बाई की सेना से जा मिली और उन सब ने मिलकर ग्वालियर में जयाजीराव सिंधिया की सेनाओं को अपनी ओर मिला लिया अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी परंतु बाद में उनकी पराजय हुई और उसके बाद 1858 में बांदा के नवाब अंग्रेजों ने ले लिया और आज भी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते हैं और अपनी महानता के लिए याद करते हैं। बाजीराव पेशवा और मस्तानी के वंशज थे। उनकी मृत्यु के बाद वादा पर नवाबों उनके वंशज आज भी एक सामान्य जिंदगी जीते हैं बांदा में और आज भी लोग उनका उतना ही सम्मान करते हैं वह बाजीराव प्रथम के वंशज और अली बहादुर के पोते थे उनके साथ काफी बड़ी मराठा सेना थी और 1857 की क्रांति में वह कई सारे मराठा सरदारों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ शामिल हुए जिसमें तात्या टोपे नानासाहेब पेशवा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और भी कई सारे उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारियों के साथ में शामिल हुए हालांकि हार के बाद बांदा के नवाब का पद ब्रिटिश सरकार द्वारा खत्म कर दिया गया और उनको मिलने वाली पेंशन भी खत्म कर दी गई जिसके कारण का परिवार काफी अकेला हो गया और गरीबी में जीवन जीने लगा