अलीपुर जेल प्रेस

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अलीपुर जेल प्रेस अलीपुर जेल में स्थित है। इसका संचालन प्रेस और फ़ॉर्म्स विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा किया जाता है जिसमें अलीपुर जेल के क़ैदियों से काम लिया जाता है। कुछ विशेष कार्यों के लिए अतिरिक्त मानव संसाधनों का बाहर से भी प्रयोग किया जाता है। यह प्रेस अपनी क्षमता के अनुसार वर्तमान में सभी सरकारी फ़ॉर्म्स और अन्य आधिकारिक छपाई के कार्यों को पूरा करती है। यह प्रेस किसी ग़ैर-सरकारी या लाभकारी संस्था के काम को क्रियांवित नहीं करती।

बंगाल प्रेसिडेन्सी की 1865 में छपी वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट के अनुसार उस प्रेस समय 269 क़ैदी कार्यरत थे और साल-भर की कमाई 2,20, 643 रुपिये थी। [१]

प्रारंभिक इतिहास

यह प्रेस अपने वर्तमान स्थान पर स्थापित नहीं की गई थी। दरअसल, अंग्रेज़ सरकार कोई प्रेस स्थापित करने की योजना रखती ही नहीं थी। इस प्रेस की स्थापना श्रेय डॉक्टर मुआत को जाता है जिन्हें जेलों प्रबंधन के लिए इंस्पेक्टर जेनेरल नियुक्त किया गया था। 1857 तक प्रशासन का विचार यही था कि जेल में बन्द क़ैदियों से सज़ा के रूप में मज़दूरी ली जानी चाहिए। डॉक्टर मुआत ने 1857 में बरेली जेल के प्रदर्शन को देखने के पश्चात यह निर्णय लिया कि उन्हें एक प्रेस की आवश्यकता है जिससे वह खुद के परिपत्र छापे जा सकते हैं और इसके अतिरिक्त जेलों को राज्य का एक लाभकारी स्रोत बनाया जा सकता है जिसकी कि 1857 की बग़ावत के पश्चात आवश्यकता थी।

एक साल के अन्दर प्रेस की स्थापना की गई थी ताकि खर्चों को कम किया जाए और जेल विभाद के परिपत्र, फ़ॉर्म आदि के तय्यार होकर आने के समय को कम किया जा सके। यह छोटा प्रायोगिक संगठन इतना सफल रहा कि डॉक्टर मुआत ने प्रस्ताव रखा कि इसका विस्तार किया जाए और सम्पूर्ण छपाई की व्यवस्था अलीपुर में चाहिए ताकि सरकारी कार्य जो वर्तमान में कहीं और पूरा किया जा रहा था, अलीपुर में किया जा सके और इस प्रकार से राज्य के खर्च में भी कमी हो जाएगी। इस प्रस्ताव पर तुरंत ही आपत्ति जताई गई थी क्योंकि कुछ लोगों का विचार था कि यह कार्य अपराधियों की सज़ा के लिए बहुत ही कम था। लम्बी बहस के पश्चात यह निर्णय लिया गया कि न तो डॉक्टर मुआत न उनके विरोधी पूर्नतः गलत थे। सरकार इस निर्णय पर पहुँची कि डॉक्टर मुआत का प्रस्ताव स्वीकृत किया जाए जिसमें केवल एक शर्त हो कि केवल टाइपोग्राफ़ी का काम जेल में किया जाए जबकि छपाई के बाक़ी कार्य सरकारी गज़िट प्रेस को दिए जाएँगे। 1 जुलाई 1858 को बंगाल के सभी फ़ॉर्मों का छपना पहली बार जेल विभाग को सौंपा गया था। प्रेस को समय-समय पर विभिन्न दरों पर मगर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होते रहे।

मुआत के सेवा निवृत्ति होने के पश्चात

डॉक्टर मुआत 15 वर्ष तक पद पर बने रहने के पश्चात 1870 में सेवा निवृत्ति हुए। उनके पद-मुक्त होने के तुरंत बाद उनके विरोधी उनकी जगह पर आ गए और मुआत की पॉलिसियों को बदल दिया। जेल-सुधार और शिक्षा के स्थान पर दंडनीय प्रणाली पर ज़ोर दिया जाने लगा। 1869 में प्रेस को जेल से स्थानांतरित किया गया। इसके बाजूद प्रेस के पतन की बात जिसके आधार पर स्थानांतरन किया गया था जल्दी ही एक बहुत बड़ी गलती साबित हुई और 1876 में इसे इसके वास्तविक स्थान पर पुनः स्थापित किया गया था।

प्रेस का झटका इतना तीव्र था कि उससे पूरी प्रभावित हुई और शीघ्र ही उसने पूरे प्रेस को प्रेसिडेन्सी को स्थानांत्रित करने का निर्णय लिया जो मैदान क्षेत्र में स्थित है। यहाँ पर यह सम्भव हुआ कि सभी शाखाओं के 600-700 क़ैदियों को काम छापने और बुक-बाइंडिंग का काम दिया जा सके।

प्रेस और फ़ॉर्म विभाग का एक होना

6 अप्रेल 1908 को श्री जॉन ग्रे, पहले प्रेस और फ़ॉर्म मैनेजर ने अलीपुर जेल का दायित्व संभाला। उस समय प्रेस एक जेल उदयोग से कहीं अधिक थी। मैदान में स्थापित प्रेसिडेन्सी जेल 30 अकतूबर 1913 को एक आधिकारिक सूचना के तहत बंद कर दी गई। अलीपुर जेल को प्रेसिडेन्सी जेल का दर्जा दिया गया। 1 अप्रेल 1914 को ढाका प्रेस बन्द हो गई और पूरा दायित्व अलीपुर जेल को दिया गया। फ़ॉर्म स्टोर स्टेशनरी विभाग से दूसरी बार स्थानांत्रित किया गया मगर इस बार यह जेल के बाहर एक ऐसे स्थल पर है ट्रैमवे लाइन्स से जुड़ा है जहाँ कि वह आज भी खड़ा है।

सन्दर्भ