समुच्चय अलंकार
(अलंकार सम्प्रदाय से अनुप्रेषित)
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समुच्चय अलंकार, एक प्रकार का अलंकार है। जहाँ काम का बनाने वाला एक हेतु मौजूद हो, तो भी, उसी काम के साधक अन्य हेतु भी यदि इकट्ठे हो जायँ, तो समुच्चय अलंकार कहलाता है। उदाहरण-
- धोखे से धन, धाम, धरा, उसने छीना सब!
- अन्न वस्त्र भी कर अधीन मोहताज किया अब!
- सजग हुए हम, आज हमारी निद्रा टूटी,
- छोड़ेंगे अब नहीं शत्रु ढिग कौड़ी फूटी ॥
मोहताज बनाने का एक हेतु ‘धन छीन लेना' होने पर भी धाम-धरा आदि का उपहरण हेत्वन्तर के रूप में उपस्थित है।
भेद
समुच्चय अलंकार के दो भेद माने गए हैं। एक तो वह जहाँ आश्चर्य, हर्ष, विषाद आदि बहुत से भावों के एक साथ उदित होने का वर्णन हो । जैसे,
- हे हरि तुम बिनु राधिका सेज परी अकुलाति ।
- तरफराति, तमकति, तचति, सुसकति, सुखी जाति ॥
दूसरा वह जहाँ किसी एक ही कार्य के लिये बहुत से कारणों का वर्णन हो । जैसे,
- गंगा गीता गायत्री गनपति गरुड़ गोपाल ।
- प्रातःकाल जे नर भजैं ते न परैं भव- जाल ॥