अर्थविज्ञान
भाषाविज्ञान के अन्तर्गत अर्थविज्ञान या 'शब्दार्थविज्ञान' (Semantics) शब्दों के अर्थ से सम्बन्धित विधा है।
परिचय
भाषा के दायरे में शब्दों और वाक्यों के तात्पर्य का अध्ययन अर्थ-विज्ञान कहलाता है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से पहले अर्थ-विज्ञान को एक अलग अनुशासन के रूप में मान्यता नहीं थी। फ़्रांसीसी भाषा-शास्त्री मिशेल ब्रील ने इस अनुशासन की स्थापना की और इसे 'सीमेंटिक्स' का नाम दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में फ़र्दिनैंद द सॅस्यूर द्वारा प्रवर्तित भाषाई क्रांति के बाद से सीमेंटिक्स के पैर समाज-विज्ञान में जमते चले गये। सीमेंटिक्स का पहला काम है भाषाई श्रेणियों की पहचान करना और उन्हें उपयुक्त शब्दावली में व्याख्यायित करना। ऊपर से सहज पर भीतर से पेचीदा लगने वाली अर्थ- संबंधी कवायदें सीमेंटिक्स की मदद के बिना नहीं हो सकतीं। उदाहरण के लिए ‘नश्वर होते हैं लोग’ और ‘नश्वर थे गाँधी’ के बीच अर्थ-ग्रहण के अंतर पर दृष्टि डाल कर सीमेंटिक्स की उपयोगिता का पता लगाया जा सकता है। दूसरे वाक्य का निहितार्थ यह है कि गाँधी को अमर माना जाता था या गाँधी जैसे लोग भी नश्वर होते हैं। सीमेंटिक्स यह पता लगाता है कि अर्थ-ग्रहण का यह अंतर पैदा करने में भाषा कैसे काम करती है।
विचित्र बात यह है कि अर्थ-विज्ञान पर शुरुआत में भाषा-शास्त्रियों बजाय ने गहरी डाली। साठ के दशक से भाषाविदों ने भाषाई अर्थों के दो बुनियादी प्रकारों को रेखांकित करना शुरू किया। माना गया कि अर्थ की पहली किस्म तो भाषाई रूप में ही सहजात होती है। दूसरी किस्म का ताल्लुक उस रूप के बोले जाने और उस अभिव्यक्ति के संदर्भ के बीच अन्योन्यक्रिया से होता है। के अर्थ-निरूपण तीन के विभेदों के तहत किया जाता रहा है। इनमें पहला है बोध और संदर्भ के बीच का अंतर। दूसरा है शब्द के अर्थ और वाक्य के अर्थ का भेद। तीसरा है पाठ और संदर्भ के बीच का अंतर। इस तीसरे अंतर को अब सीमेंटिक्स से अलग करके भाषा-शास्त्रियों ने प्रैगमैटिक्स के रूप में नया अनुशासन बना दिया गया है। सीमेंटिक्स के तहत जिस भाषा का अध्ययन किया जाता है उसे लक्ष्य-भाषा (ऑब्जेक्ट लैंग्वेज) की संज्ञा दी जाती है और जिस भाषा में उसकी व्याख्या की जाती है उसे मैटालेंग्वेज कहते हैं। एक लक्ष्य-भाषा अपनी व्याख्या के मैटालेंग्वेज भूमिका अदा सकती है। भाषा-शास्त्र के इतिहास में अर्थ-ग्रहण संबंधी कवायदें पहले शब्द-केंद्रित थीं, फिर वे वाक्य-केंद्रित हुईं और फिर वे पाठ- केंद्रित हो गयीं। इन तीनों प्रक्रियाओं ने मीडिया-अध्ययन, साहित्यालोचना, व्याख्यात्मक समाजशास्त्र और संज्ञानात्मक विज्ञान के अनुशासनों को प्रभावित किया है। सीमेंटिक्स प्रश्न उठाता है कि किसी शब्द के अर्थ की शिनाख्त भाषा के दायरे के भीतर ही की जाए या अर्थ-निरूपण के लिए उसके बाहरी दायरे से भी मदद ली जाए। मसलन, कुर्सी का मतलब हमें पता है, पर, यह अर्थ हम किस प्रकार हासिल करते हैं? हम कह सकते हं कि कुर्सी पर बैठा जाता है। पर, भाषा के भीतर कुर्सी का अर्थ फ़र्नीचर, मेज़, सीट या बेंच जैसे अन्य अर्थों सहित उसके संबंध के साथ भी ग्रहण किया जाता है। इन शब्दों के साथ रख कर बैठने के लिए काम आने वाली कुर्सी का अर्थ-ग्रहण अलग हो जाता है। बोध और संदर्भ के बीच अंतर का एक और उदाहरण शुक्र ग्रह या वीनस है। इसे भोर का तारा भी कहा जाता है और सांध्य-तारा भी, क्योंकि इसकी चमक सुबह भी दिखायी पड़ती है और रात में भी। इस तरह शुक्र, भोर का तारा और सांध्य-तारा एक ही चीज़ के तीन नाम हैं। लेकिन संदर्भ एक ही होते हुए भी तीनों को अलग-अलग बोध के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
सीमेंटिक्स का ज़ोर संदर्भ पर कम और बोध पर अधिक रहता चूँकि अर्थ-ग्रहण के ही चाहता है, इसलिए वह नतीजा निकलता है कि यथार्थ की समझ भी भाषा के ज़रिये ही हासिल हो सकती है और उसके लिए संस्कृति, इतिहास और अन्य भौतिक प्रक्रियाओं का कोई महत्त्व नहीं है। भाषा के भीतर शब्दार्थ प्राप्त करने के लिए सीमेंटिक्स में तीन मुख्य संबंधों समानार्थक, विलोमार्थक और हायपोनॉमिकल का सहारा लिया जाता है। हायपोनॉनिमकल श्रेणी वे आते जिनके में शब्द अभिव्यक्तियाँ भी शामिल होती हैं। जैसे, कुत्ता किसी बिल्ली, बंदर, जिराफ़ या खरगोश की तरह एक पशु भी है और साथ में वह टेरियर, हाउंड, जर्मन शेफ़र्ड या रिट्रीवर भी हो सकता है। ध्यान देने के बात यह है कि ये तीनों रूप किसी सुपरिभाषित भाषाई प्रणाली के भीतर अर्थ रचने के काम ज़रूर आते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अर्थ-ग्रहण और अर्थ- रचना की सामाजिक और सामुदायिक प्रक्रियाएँ भी उनकी मोहताज होती हों। मसलन, कोई ऐसा समुदाय भी हो सकता है जो इन तीन संबंधों के बिना अर्थात् भाषा के दायरे के बाहर शब्दों की अर्थ-रचना करता हो। उत्तर अमेरिकी में होपी एक ऐसा है पक्षियों छोड़ सभी वाली चीज़ों के लिए अलग-अलग के बजाय एक ही शब्द का इस्तेमाल होता है। इस कबीले के लोग मच्छर, गुब्बारा और हवाई जहाज़ या ऐसी ही किसी चीज़ को ‘मसायताका’ नाम देते हैं।
वाक्यों के माध्यम से शब्दार्थ ग्रहण करना भी सीमेंटिक्स के दायरे में आता है। ‘रमेश ने उमेश से मकान ख़रीदा’ दरअसल ‘उमेश ने रमेश को मकान बेचा’ का समानार्थक है। इसी तरह का समानार्थक संबंध ‘पुलिस ने आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया’ का ‘आंदोलनकारी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गये’ के बीच है। इसी तरह वाक्यों के बीच दूसरे अर्थ-संबंध बनते हैं। उदाहरण के लिए ‘अमेरिकी कमांडो युनिट के हाथों ओसामा बिन लादेन मारा गया’ और ‘ओसामा बिन लादेन मारा गया’ के बीच का अर्थ-संबंध देखा जा सकता है। अगर पहले वाक्य के मुताबिक अमेरिकी कमांडो युनिट ने ओसामा को वास्तव में मार डाला है, तो दूसरा वाक्य भी जिस यथार्थ का निरूपण करना चाहता है उसे सच मान लिया जाएगा। अर्थ के लिहाज़ से एक वाक्य की दूसरे पर निर्भरता के साथ- साथ वाक्य अपने अर्थ के लिए उसमें अंतर्निहित पूर्व-मान्यता पर भी निर्भर करते हैं। जैसे : ‘रक्षा मंत्रालय के एक वक्तव्य के अनुसार भारत को उन शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए जिनसे पाकिस्तान को सीमा-पार से होने वाले आंतकवाद को प्रोत्साहित करने से रोका जा सके’। इस वाक्य में दो पूर्व- मान्यताएँ निहित हैं : पहली, भारत के पास आवश्यक शक्तियाँ हैं और दूसरी, पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है।
पिछले दस साल में सीमेंटिक्स और प्रैगमैटिक्स के क्षेत्रों में ज़बरदस्त भाषा-शास्त्रीय काम हुआ है। वाक्यों और शब्दों के अर्थों के बीच अंतर करने वाली ये सीमेंटिक कवायदें ऊपर से देखने में बहुत मामूली लग सकती हैं, पर किसी इबारत में अंतर्निहित विचारधारात्मक तात्पर्यों और दावेदारियों को सामने लाने के लिए इनकी अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। सीमेंटिक्स और प्रैगमैटिक्स का सहारा लेकर राजनीति-विज्ञान के कई पदों में हुए अर्थ संबंधी परिवर्तनों का अध्ययन भी किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, लोकतंत्र का अर्थ अरस्तू के ज़माने से लेकर काफ़ी दिनों तक साधारण लोगों या उनकी भीड़ के तंत्र यानी अव्यवस्थित और अराजक प्रणाली के रूप में लगाया जाता रहा है। लेकिन आज लोकतंत्र एक व्यवस्थित क्रियाविधि के मुताबिक काम करने वाली व्यवस्था के अर्थ में रूढ़ हो गया है। इसलिए जैसे ही कोई माँग या आंदोलन की प्रक्रियाओं सीधे हस्तक्षेप की माँग करता है, उसे व्यवस्था के लिए ख़तरा करार दिया जाने लगता है। भारत में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन ने प्रतिनिधि वापसी के अधिकार की माँग करके ऐसी ही अर्थ-संबंधी बेचैनियाँ पैदा की थीं। अण्णा हजारे के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने भी लोकतंत्र से जुड़ी अर्थ-संबंधी समस्याओं को पेश किया है। अब यह भाषा-शास्त्रियों और लोकतंत्र के चिंतकों का काम है कि वे लोकतंत्र के अर्थ में आये इस परिवर्तन की अर्थ-वैज्ञानिक व्याख्या करें।
सन्दर्भ
1. आर. (1947), इंट्रोडक्शन सीमेंटिक्स, मैसाचुसेट्स.
2. जे. लियोंस (1977), सीमेंटिक्स, खण्ड 2, केम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, केम्ब्रिज.
3. विलियम फ़्राउले (1992), लिंगुइस्टिक सीमेंटिक्स, लॉरेंस एर्लबॉम, हिस्लडेल, एनजे.
4. थियो आर. हॉफ़मान (1993), रेल्म्स ऑफ़ मीनिंग, लांगमैन, लंदन.
5. जैकब एल. मी (सम्पा.) (2009), कंसाइज़ इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ प्रैग्मैटिक्स, एल्सवियर, ऑक्सफ़र्ड.
बाहरी कड़ियाँ
- अर्थ-विज्ञानसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] ( डा. मीनाक्षी व्यास)
- अर्थ विज्ञान
- semanticsarchive.net
- Teaching page for A-level semantics
- Noam Chomsky, On Referring, Harvard University, 30 अक्टूबर 2007(video)
- Ray Jackendoff, Conceptual Semantics, Harvard University,13 नवम्बर 2007(video)
- Semantic Systems Biology