अब्दुल सत्तर रंजूर
अब्दुल सत्तर रंजूर (12 अक्टूबर 1917 – 23 मार्च 1990) एक कश्मीरी राजनेता और एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि और लेखक थे। वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) के एक अनुभवी नेता थे। रंजूर जम्मू-कश्मीर में पार्टी के पहले राज्य सचिव थे।[१] उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य के रूप में भी कार्य किया।[२]
जीवनी
रंजूर का जन्म 12 अक्टूबर 1917 को कीगाम, शोपियां में हुआ था।[३] उन्होंने निरंकुश डोगरा शासन के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया।[४] कश्मीर घाटी में किसान आंदोलन के निर्माण में रंजूर ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किसान आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए उन्हें 1942 में जेल भेजा गया था। उन पर पुलवामा षड्यंत्र मामले के आरोप लगे, और फिर कश्मीर छोड़ो आंदोलन के दौरान एक वर्ष से अधिक समय तक वह भूमिगत ही रहे। इस समय के दौरान उनके घर पर अक्सर डोगरा शासन द्वारा प्रायोजित छेड़छाड़ और लूटपाट की घटनाएं भी होती रही। रंजूर एक प्रसिद्ध उर्दू कवि भी थे। [५] कुछ वर्षों तक लाहौर में रहते हुए, वह प्रसिद्ध कवि सर मुहम्मद इकबाल के करीब थे।[६] इकबाल ने रंजूर के जीवन और कविताओं में सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1949 में उन्होंने नेशनल कांफ्रेंस छोड़ दी, और कश्मीर में भूमिगत कम्युनिस्ट पार्टी संगठन की स्थापना की। उन्हें 1951 में गिरफ्तार किया गया था। 1953 में वह डेमोक्रेटिक यूथ लीग के उपाध्यक्ष बने, और फिर 1957 में डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल हो गए। इसके बाद 1962 में वह जम्मू-कश्मीर किसान सभा के भी उपाध्यक्ष बने।
रंजूर ने 1962 जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में राजपोरा सीट से डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस के टिकट पर चुनाव लड़ा। आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, वह दूसरे स्थान पर रहे हालाँकि उन्होंने केवल 188 वोट (निर्वाचन क्षेत्र में वोटों का 0.8%) ही प्राप्त किये थे।[७] चुनाव से कुछ दिन पहले ही उन्होंने और डीएनसी ने बक्षी शासन द्वारा अभूतपूर्व हिंसा के कारण इस चुनाव का बहिष्कार भी किया था। इसी कारण से यह चुनाव सत्तारूढ़ दल द्वारा भारी धोखाधड़ी के लिए कुख्यात हो गया। [८]
1966 में वह जम्मू-कश्मीर किसान सभा के अध्यक्ष बने। वह उसी वर्ष जम्मू-कश्मीर में सीपीआई के आयोजन सचिव भी बने। उन्होंने हमारा कश्मीर के संपादक के रूप में कार्य किया। 1967 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर विधान सभा चुनाव में सीपीआई के टिकट पर शोपियां सीट से चुनाव लड़ा, जिसमें वह 2,807 वोट (निर्वाचन क्षेत्र में 16.93% वोट) के साथ तीसरे स्थान पर रहे।[९] 1972 के चुनाव में वह शोपियां से ही एक बार फिर खड़े हुए, और फिर से तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन इस बार उन्हें मिले वोट बढ़कर 5,160 (25.87%) हो गये।[१०]
अपने बाद के वर्षों में वृद्धावस्था की वजह से रणजीर सक्रिय राजनीति से बाहर आ गए,[११] और अपनी कविताओं पर ध्यान केंद्रित करने लगे। हालांकि, वह सामाजिक रूप से सक्रिय रहे और उनका मूल घर एक खुला घर बना रहा जहां आम लोग अपनी सहायता और मार्गदर्शन की तलाश में जा सकते थे। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेशनल काउंसिल के सदस्य भी बने रहे। 23 मार्च 1990 को आतंकवादियों ने कीगाम (शोपियां) में स्थित उनके घर में घुसपैठ कर रंजूर को गोली मार दी, जिससे तुरंत उनकी मृत्यु हो गयी। अपनी मृत्यु के समय उनकी आयु 73 वर्ष थी।[१२]
संदर्भ
- ↑ Early Times Plus. CPI pays tributes to Com Ranjoor on death anniversary स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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- ↑ New Age Weekly. In Memory of Com Ranjoor स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Election Commission of India. .STATISTICAL REPORT ON GENERAL ELECTION, 1962 TO THE LEGISLATIVE ASSEMBLY OF JAMMU AND KASHMIR स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Election Commission of India। STATISTICAL REPORT ON GENERAL ELECTION, 1967 TO THE LEGISLATIVE ASSEMBLY OF JAMMU AND KASHMIR स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Election Commission of India. STATISTICAL REPORT ON GENERAL ELECTION, 1972 TO THE LEGISLATIVE ASSEMBLY OF JAMMU AND KASHMIR स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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