अबन्धता

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स्क्रिप्ट त्रुटि: "sidebar" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। अबन्धन या स्वेच्छा व्यापार (laissez-faire) ऐसी आर्थिक नीति या व्यवस्था को कहते है जिसमें निजी संस्थाओं के बीच लेन-देन को करमुक्त तथा अन्य सरकारी प्रतिबन्धों से मुक्त रखा जाता है। सरकारी नियम केवल इतने होते हैं ताकि चोरी और जबरजस्ती हड़पने के विरुद्ध सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकारों की रक्षा हो सके। लैसेफेयर (laissez faire) फ्रेंच भाषा का वांक्यांश है जिसका अर्थ 'करने दो' (अर्थात्, जैसा चाहें वैसा करने दो) होता है। विद्वानों का विचार है कि 'स्वेच्छा व्यापार' वाला राज्य कभी भी अस्तित्व में नहीं रहा है।

परिचय

अबन्धन सिद्धांत का प्रतिपादन रूढ़िवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया था। उनका विश्वास था कि यदि राजव्यवस्था ने जनता के आर्थिक निर्णय और अभिरुचियों में हस्तक्षेप किया, तो व्यक्ति अपने इच्छानुसार वस्तुओं की मात्रा और गुण का उत्पादन न कर सकेंगे, फलत: कल्याण अधिकतम न हो पाएगा। इसलिए अर्थशास्त्रियों ने प्रशासन को रक्षा तथा देश में शांतिस्थापना आदि प्रारंभिक कर्तव्यों तक ही सीमित रखना चाहा और राज्य की नीति ऐसी निर्धारित की कि राज्याधिकारी समाज के आर्थिक जीवन में हस्तक्षेप न कर सकें।

इस सिद्धांत ने काफी समय तक आर्थिक व्यवस्था पर अपना प्रभाव बनाए रखा। किंतु समय परिवर्तन के साथ इसकी कार्यविधि में अनेक दोष पाए गए। प्रथम तो यह देखा गया कि आर्थिक व्यवस्था सरकार द्वारा पथप्रदर्शन के अभाव में किसी नीति अथवा दिशाविशेष का अनुसरण नहीं करती जिसके कारण इसमें अनेक सामाजिक और आर्थिक कमजोरियाँ आ जाती हैं। आयविभाजन में विषमता आ जाती है तथा देश के उत्पत्तिसाधनों का पूर्णत: प्रयोग नहीं हो पाता। द्वितीय, अनियंत्रित बाजार अर्थव्यवस्था के कारण प्रजातंत्रीय राज्य की सामजिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो सकतीं। तृतीय, स्वेच्छा व्यापार के अंतर्गत देश के निर्यात व्यापार को प्रोत्साहन नहीं मिलता, अधिक उन्नत देशों की औद्योगिक स्पर्धा के कारण देश के निर्यात उद्योग विकसित नहीं हो पाते। चतुर्थ, इस प्रकार की आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक शोषण बढ़ता जाता है तथा श्रमिक वर्ग आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विषम का शिकार बना रहता है। अंत में यह सिद्धांत यद्यपि व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करता है तथापि सामाजिक स्वतंत्रता से संबंध नहीं रख पाता।

आज के राजनीतिक तथा आर्थिक विचारक स्वेच्छा व्यापार के सिद्धांत को व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था में उतना ही अपूर्ण मानते हैं जितना नियोजित अर्थव्यवस्था को स्वेच्छा व्यापार के अंश के बिना। आर्थर लैविस (W. Arthur Lewis) के अनुसार शत प्रतिशत मार्गनिर्धारण उतना ही असंभव है जितना शत प्रतिशत स्वेच्छा व्यापार। आधुनिक काल में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं में, आर्थिक नियोजन में स्वेच्छा व्यापार के सिद्धांतों का आंशिक समावेश अवश्य होता है।