अपोलो १

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अपोलो 1
Apollo 1
Grissom, White, and Chaffee in front of the launch pad containing their AS-204 space vehicle
ग्रिसम, व्हाइट, और काफी लांच पैड के सामने
NamesAS-204
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अपोलो 1 पैच अपोलो 1 प्रधानमंत्री क्रू
बाएं से दाएं: व्हाइट, ग्रिसम, काफीसाँचा:succession links  साँचा:succession links

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अपोलो उपग्रह से प्राप्त पृथ्वी का चित्र

चन्द्रमा यह मानव मन को सदीयो से ललचाता रहा है। कवियो ने इस चन्द्रमा के लिये क्या क्या नहीं लिखा। विज्ञानीयो के लिये भी चन्द्रमा एक कुतुहल का विषय रहा। जब मानव पृथ्वी की सीमा को लांघ का ब्रह्माण्ड की गहराईयो में गोते लगाने निकला, तब चन्द्रमा उसका पहला पडाव था। अपोलो अभियान इस यात्रा का पहला कदम !

ए एस २०४ यह नाम था उस यान का जो अपोलो १ कैपसूल को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने वाला था। यह सैटर्न १बी(Saturn 1B) राकेट से प्रक्षेपित होने वाला अमरीका का पहला अपोलो अभियान था, जो कि चन्द्रमा पर मानव के पहले कदम के लिये एक मील का पत्थर साबीत होने वाला था। इसे १९६७ की पहली तिमाही में प्रक्षेपित किया जाना था। इस अभियान का लक्ष्य था, प्रक्षेपण प्रक्रिया की जांच, भूमीकेन्द्र द्वारा यान नियंत्रण और मार्गदर्शण की जांच था।

यात्री दल

  • विर्गील ग्रीसम (मर्क्युरी-रेडस्टोन ४ तथा जेमीनी ३ का अनुभव), मुख्य चालक
  • एड व्हाईट (जेमीनी ४ का अनुभव), वरिष्ठ चालक
  • रोजर कैफी (अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव नही), चालक

अभियान

जनवरी २७ सन १९६७ को कोई प्रक्षेपण की योजना नहीं थी। योजना थी कि एक छद्म (Simulated) प्रक्षेपण से यह जांच की जाये कि अपोलो यान अपनी अंदरूनी बिजली से सामान्य कार्य कर सकता है या नही। यदि यान इस जांच में सफल हो जाये और अगली सभी जांच में सफल हो तो २१ फ़रवरी १९६७ को इस यान को प्रक्षेपित किया जाना तय था।

अपोलो १ की सफलता के बाद इस यान की दो और उडाने तय थी। पहली उडान में अपोलो के दूसरे भाग और चन्द्रयान को सैटर्न १ बी पर प्रक्षेपीत कर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाना था। दूसरी उडान में सैटर्न ५ पर अपोलो और चन्द्रयान दोनो को पृथ्वी की उपरी कक्षा में स्थापित करना था।

२७ जनवरी १९६७ को यह जांच की जानी थी, जो कि पूरी नहीं हो सकी। तीनो अंतरीक्ष यात्री ग्रीसम, व्हाईट और कैफी अंतरीक्ष सूट पहन कर यान के अंदर पहुंचे। १.०० बजे दोपहर वे अपनी सीट बेल्ट बांधकर जांच के लिये तैयार हो गये। २.४५ मिनिट पर यान को सील कर दिया गया और यान की हवा को निकाल आक्सीजन भरी जाने लगी।

यान में आक्सीजन का दबाव ज्यादा हो गया था और यात्रीयो और नियंत्रण कक्ष के बिच में संपर्क टूट गया था। इस वजह से जांच को ५.४० मिनट तक स्थगित कर दिया गया। ६.२० तक उल्टी गिनती जारी थी लेकिन ६.३० को फिर से उल्टी गिनती रोक कर नियंत्रण कक्ष और यात्रीयो के बीच सपर्क स्थापित करने की कोशीश की गयी।

दूर्घटना

अपोलो १ यह अंतरिक्ष यात्रा के लिये बनाया जरूर गया था लेकिन इसका उद्देश्य चंद्रमा की यात्रा नहीं था इसलिये इसमे लैंड करने के लिये उपकरण नहीं थे। यान में यात्री नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट जाने की स्थिती में की जाने वाली स्थिती में होने वाली क्रियाओ की जरूरी जांच में लगे थे। ६.३१ मिनट पर नियंत्रण कक्ष को एक सही तरह से काम कर रही COM लींक से कैफी की आवाज में एक संदेश मिला की काकपिट में आग लगी है। कुछ सेकंड बाद एक तेज चीख के साथ संपर्क पूरी तरह टूट गया। टीवी के मानीटर पर व्हाइट को यान का द्वार खोलने की कोशीश करते देखा गया। यान इस तरह से बना था कि द्वार अंदर की ओर खुलता था लेकिन्न आक्सीजन का दबाव बाहर की ओर होने से उसे खोलने नहीं दे रहा था। इससे ज्यादा बूरी बात यह थी कि दरवाजे को खोलने के लिये यात्रीयो को कई बोल्ट खोलने थे। आक्सीजन का दबाव बडते जा रहा था। कुछ देर में वह इतना हो गया कि दरवाजा खोलना असंभव हो गया था।

अपोलो १ के जले हुये अवशेष।

आक्सीजन की वजह से आग तेजी से फैली और पल भर में सब कुछ खत्म हो गया। यान बीना प्रक्षेपण के ही जलकर राख हो या। यह सिर्फ १७ सेकंड के बीच में हो गया। तीनो यात्री शहीद हो गये !

आग इतनी भयावह थी की व्हाईट और ग्रीसम के सूट पिघल कर एक दूसरे से जुड गये थे। यात्रीयो को बाहर निकलने के लिये कम से कम पांच मिनट चाहीये थे और उन्हे मिले सिर्फ १७ सेकंड !

दुर्घटना के कारण

दूर्घटना के एक कारण में यान का अंदर खुलने वाला द्वार था, जो कि यान बनाने वाली कंपनी नार्थ अमेरीकन एवीएशन की योजना के विपरीत था। कंपनी की अभीकल्पना (Design) में आक्सीजन की जगह आक्सीजन और नायट्रोजन का मिश्रण था। कंपनी की अभीकल्पना में दूर्घटना की स्थिती में विस्फोट से खुलने वाले द्वार भी लगाने की योजना थी। लेकिन नासा ने इन सभी सुझावो को नहीं माना था।

इसी तरह की एक दुर्घटना में सोवियत अंतरिक्षयात्री वेलेण्टीन बोन्डारेन्को की मार्च १९६१ में मृत्यु हो गयी थी।

इस दुर्घटना ने अपोलो अभियान को नये सीरे से अभिकल्पित करने मजबूर कर दिया। यान की अभिकल्पना में काफी सारे बदलाव किये गये। इसके बावजूद अपोलो यान में काफी सारी खामीया थी, जो कि अपोलो १३ तक जारी रही।

यांदे

उड़ान केन्द्र ३४ मे लगी हुयी अपोलो १ की एक प्लेक

इन तीन शहीद यात्रीयो के नाम तीन तारो को दिये गये हैं ये तारे है नवी (Navi), ड्नोसेस (Dnoces) और रेगोर (Regor)। यह नाम इवान (ivan), सेकंड (Second) और रोजर (roger) को उल्टा लिखे जाने पर मिलते हैं। चन्द्रमा पर के तीन गढ्ढो के और मंगल पर तीन पहाडीयो के नाम भी इन शहीदो के नाम पर रखे गये हैं।