अन्तरजाल का इतिहास
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सर्वप्रथम 1962 में विश्वविद्यालय के जे सी आर लिकलिडर ने अभिकलित्र जाल तैयार किया था।
वे चाहते थे कि अभिकलित्र का एक एसा जाल हो, जिससे आंकड़ो, क्रमादेश और सूचनायें भेजी जा सके। 1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (en:DARPA) ने आरपानेट के रूप में अभिकलित्र जाल बनाया। यह जाल चार स्थानो से जुडा था। बाद में इसमें भी कई परिवर्तन हुए और 1972 में बाँब काँहन ने अन्तर्राष्ट्रीय अभिकलित्र संचार सम्मेलन ने पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1 जनवरी 1983 को आरपानेट (en:ARPANET) पुनर्स्थापित हुआ TCP-IP। इसी वर्ष एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ।नवंबर में पहली प्रक्षेत्र नाम सेवा (DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई। अंतरजाल सैनिक और असैनिक भागों में बाँटा गया[१]| हालाँकि 1971 में संचिका अन्तरण नियमावली (FTP) विकसित हुआ, जिससे संचिका अन्तरण करना आसान हो गया। 1990 में टिम बर्नर्स ली ने विश्व व्यापी वेब (WWW) से परिचित कराया
अमरीकी सेना की सूचना और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 1973 में ``यू एस एडवांस रिसर्च प्र्रोजेक्ट एजेंसी´´ ने एक कार्यक्रम की शुरुआत की। उस कार्यक्रम का उद्देश्य था कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़ा जाए और एक `नेटवर्क´ बनाया जाए। इसका उद्देश्य संचार संबंधी मूल बातों (कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखा और पढ़ा जा सके। इसे ``इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट´´ नाम दिया गया जो आगे चलकर `इंटरनेट´ के नाम से जाना जाने लगा। 1986 में अमरीका की ``नेशनल सांइस फांउडेशन´´ ने ``एनएसएफनेट´´ का विकास किया जो आज इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है। एक सैकण्ड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली इस प्रौद्योगिकी के कारण `एनएसएफनेट´ बारह अरब -12 बिलियन- सूचना पैकेट्स को एक महीने में अपने नेटवर्क पर आदान-प्रदान करने में सक्षम हो गया। इस प्रौद्योगिकी को और अधिक तेज गति देने के लिए `नासा´ और उर्जा विभाग ने अनुसंधान किया और ``एनएसआईनेट´´ और `ईएसनेट´ जैसी सुविधाओं को इसका आधार बनाया।
इन्टरनेट हेतु `क्षेत्रीय´ सहायता कन्सर्टियम नेटवर्कों द्वारा तथा स्थानीय सहायता अनुसंधान व शिक्षा संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। अमरीका में फेडरल तथा राज्य सरकारों की इसमें अहम भूमिका है परन्तु उद्योगों का भी इसमें काफी हाथ रहा है। यूरोप व अन्य देशों में पारस्परिक अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन भी इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1991 के अन्त तक इन्टरनेट इस कदर विकसित हुआ कि इसमें तीन दर्जन देशों के 5 हजार नेटवर्क शामिल हो गए, जिनकी पहुंच 7 लाख कम्प्यूटरों तक हो गई। इस प्रकार 4 करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू किया।
इन्टरनेट समुदाय को अमरीकी फेडरल सरकार की सहायता लगातार उपलब्ध होती रही क्योंकि मूल रूप से इन्टरनेट अमरीका के अनुसंधान कार्य का ही एक हिस्सा था। आज भी यह अमरीकी अनुसंधान कार्यशाला का महत्त्वपूर्ण अंग है किन्तु 1980 के दशक के अन्त में नेटवर्क सेवाओं व इन्टरनेट उपभोक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा। सच तो ये है कि आज की इन्टरनेट प्रणाली का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा व अनुसंधान संस्थानों एवं विश्व-स्तरीय निजी व सरकारी व्यापार संगठनों की निजी नेटवर्क सेवाओं से ही बना है।
इंटरनेट का तकनीकी विकास
पिछले 1८ सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर `ई-मेल´ टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्त्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले `इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स´ नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग `इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक `इंटरनेट रजिस्ट्री´ (आई आर) को दे रखी है। `इन्टरनेट रजिस्ट्री´ ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक `डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल `होस्ट´ तथा `नेटवर्क´ नामों को उनके `एडडेसिज´ से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर `नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स´ (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति `इंटरनेट´ के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।
संक्षिप्त इतिहास (प्रमुख घटनाएँ)
वर्ष | घटना |
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1958 | बेल पहले मॉडेम के लिए एक टेलीफोन लाइन[२] बाइनरी डेटा संचारित[२] |
1961 | लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock के लिए डेटा[२] हस्तांतरण पैकेट स्विचन के प्रयोग पर पहला सिद्धांत[२] |
1962 | खोज ARPA, रक्षा, विभाग की एक एजेंसी द्वारा शुरू होती है जब JCR Licklider सफलतापूर्वक कंप्यूटर के एक वैश्विक नेटवर्क पर अपने विचारों का बचाव करते हैं। |
1964 | लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock एक नेटवर्क[२] करने के लिए संचार के पैकेट पर एक पुस्तक[२] |
1967 | अरपानेट पर पहले सम्मेलन |
1969 | इंटरफेस Leonard Kleinrock का संदेश प्रोसेसर द्वारा 4 अमेरिकी विश्वविद्यालयों से पहले कंप्यूटर कनेक्ट |
1971 | साँचा:nombre कंप्यूटर अरपानेट पर जुड़े हुए हैं |
1972 | Internetworking कार्य समूह, एक इंटरनेट के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संगठन का जन्म |
1973 | इंग्लैंड और नॉर्वे प्रत्येक 1 कंप्यूटर के साथ इंटरनेट में शामिल |
1979 | बनाने Newsgroups अमेरिकी छात्रों द्वारा (मंचों) |
1981 | फ्रांस में Minitel की शुरुआत |
1982 | स्थापना टीसीपी / आईपी और इंटरनेट शब्द "" |
1983 | प्रथम नाम सर्वर साइटें |
1984 | साँचा:nombre कंप्यूटर |
1987 | साँचा:nombre कंप्यूटर |
1989 | साँचा:nombre कंप्यूटर |
1990 | अरपानेट के लापता |
1991 | वर्ल्ड वाइड वेब की सार्वजनिक घोषणा |
1992 | साँचा:nombre कंप्यूटर जुड़ा |
1993 | NCSA मौज़ेक के रूप वेब ब्राउज़र |
1996 | साँचा:nombre कंप्यूटर |
1999 | साँचा:nombre उपयोगकर्ताओं को दुनिया भर में |
2000 | इंटरनेट का बुलबुला धमाका |
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Ruthfield, Scott, The Internet's History and Development From Wartime Tool to the Fish-Cam, Crossroads 2.1, September 1995.
- साँचा:cite paper
- साँचा:cite web
- साँचा:cite web
- साँचा:cite web
- साँचा:cite web
- साँचा:cite web
- साँचा:cite web
- "Overhearing the Internet"—by Robert Wright, The New Republic, 1993
- Cybertelecom :: Internet History Focusing on government, legal, and policy history of the Internet
- History of the Internet is an animated documentary explaining the inventions from time-sharing to filesharing, from Arpanet to Internet.
- Internet History
- The History of the Internet According to Itself: A Synthesis of Online Internet Histories Available at the Turn of the Century