अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ

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अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ (पंजाबी: ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ) पंजाबी लेखक और कवयित्री अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है जिसमे १९४७ के भारत विभाजन के समय हुए पंजाब के भयंकर हत्याकांडों का अत्यंत दुखद वर्णन है।[१] यह कविता ऐतिहासिक मध्यकालीन पंजाबी कवि वारिस शाह (१७२२-१७९८) को संबोधित करते हुए हैं जिन्होंने मशहूर पंजाबी प्रेमकथा हीर-राँझा का सब से विख्यात प्रारूप लिखा था।[२] वारिस शाह से कविता आग्रह करती है के वे अपनी क़ब्र से उठे, पंजाब के गहरे दुःख-दर्द को कभी न भूलने वाले छंदों में अंकित कर दें और पृष्ठ बदल कर इतिहास का एक नया दौर शुरू करें क्योंकि वर्तमान का दर्द सहनशक्ति से बाहर है।[३]

यह कविता भारतीय पंजाब और पाकिस्तानी पंजाब दोनों में ही सराही गयी।[२] १९५९ में बनी पाकिस्तानी पंजाबी फ़िल्म करतार सिंह में इनायत हुसैन भट्टी ने इसे गीत के रूप में प्रस्तुत किया।

कविता का अंश

ये कविता की आरंभिक पंक्तियाँ हैं[४][५][६] -

पंजाबी (गुरमुखी) पंजाबी (देवनागरी लिप्यन्तरण) हिंदी अनुवाद

ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ
ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ
ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਣ
ਅਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੌਂਦੀਆਂ ਤੈਨੂ ਵਾਰਸਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਹਿਣ
ਵੇ ਦਰਦਮੰਦਾਂ ਦਿਆ ਦਰਦੀਆ ਉੱਠ ਤੱਕ ਆਪਣਾ ਪੰਜਾਬ
ਅਜ ਬੇਲੇ ਲਾਸ਼ਾਂ ਵਿਛੀਆਂ ਤੇ ਲਹੂ ਦੀ ਭਰੀ ਚਨਾਬ

अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ कित्थों क़बरां विच्चों बोल
ते अज्ज किताब-ए-इश्क़ दा कोई अगला वरका फोल
इक रोई सी धी पंजाब दी तू लिख-लिख मारे वैन
अज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ तैनू वारिस शाह नु कैन
उठ दर्दमंदां देआ दर्देया उठ तक्क अपना पंजाब
अज्ज बेले लाशां बिछियाँ ते लहू दी भरी चनाब

आज मैं वारिस शाह से कहती हूँ, अपनी क़ब्र से बोल,
और इश्क़ की किताब का कोई नया पन्ना खोल,
पंजाब की एक ही बेटी (हीर) के रोने पर तूने पूरी गाथा लिख डाली थी,
देख, आज पंजाब की लाखों रोती बेटियाँ तुझे बुला रहीं हैं,
उठ! दर्दमंदों को आवाज़ देने वाले! और अपना पंजाब देख,
खेतों में लाशें बिछी हुईं हैं और चेनाब लहू से भरी बहती है

सन्दर्भ

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