अंतिम लेखे
व्यापारी का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। इसकी जानकारी के लिये व्यापारी तलपट के आधार पर अंतिम लेखे (final accounts) तैयार करता है। यह कोई एक लेखा नहीं, लेखों का सारांश होता है।[१][२] इसके अंतर्गत निम्नलिखित लेख तैयार किये जाते हैं
- (1) व्यापार खाता (Trading account)
- (2) लाभ हानि खाता (Profit and loss account)
- (3) स्थिति विवरण (चिट्ठा) (Balance sheet)
उपरोक्त विवरणों के आधार पर व्यापारी शुद्ध आय या शुद्ध हानि के साथ-साथ अपने व्यापार की वित्तीय स्थिति भी ज्ञात कर सकता है। वित्तीय स्थिति से तात्पर्य व्यापार की सम्पत्ति एवं दायित्वों की तुलना से है।
सभी गैर व्यावसायिक संस्थाए अंतिम लेखे तैयार नहीं करती परन्तु अनेक बड़ी संस्थाए अपनी संस्था की सही आर्थिक स्थिति जानने के लिए एवं यह जानने के लिए किं आय का व्यय पर आधिक्य है या व्यय का आय पर आधिक्य है, अंतिम लेखे तैयार करती है।
व्यापार खाता (Trading Accounts)
व्यापार खाता सकल लाभ हानि ज्ञात करने के लिये तैयार किया जाता है इसमें जिन वस्तुओं का व्यापार किया जाता है उससे संबंधित क्रय एवं विक्रय खातों के शेष तथा उनसे संबंधित प्रत्यक्ष खर्चों के खाते जैसे मजदूरी खाता, आवक भाड़ा आदि। इसमें प्रारम्भिक रहतिया (यदि हो) एवं अंतिम रहतियें को भी दर्शाया जाता है।
व्यापार खाते के दो पक्ष होते हैं, डेबिट और क्रेडिट पक्ष | डेबिट पक्ष में प्रारम्भिक रहतिया (Opening Stock) क्रय खाता उससे संबंधित खर्चो एवं सकल लाभ यदि हो तो दर्शाया जाता है। क्रेडिट पक्ष में विक्रय खाता, अंतिम रहतिया एवं सकल हानि यदि हो तो दर्शायी जाती है।
लाभ-हानि खाता (Profit And Loss Accounts)
इसे शुद्ध लाभ या हानि ज्ञात करने के लिये तैयार किया जाता है। इसमें व्यापार या संस्था के समस्त आगम (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष खर्चो को डेबिट पक्ष की ओर दर्शाया जाता है एवं आगम (आयगत) एवं अप्रत्यक्ष आय जैसे प्राप्त कमीशन, प्राप्त छूट, प्राप्त ब्याज आदि को क्रेडिट पक्ष की ओर दर्शाया जाता है। एवं व्यापार खाते से लाया गया सकल लाभ क्रेडिट पक्ष की ओर और यदि सकल हानि हो तो डेबिट पक्ष की ओर दर्शायी जाती है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अवास्तविक खातों से संबंधित समस्त खातों के शेष लाभ-हानि खाते में लिखा जाता है यदि क्रेडिट शेष हो तो उसे शुद्ध लाभ लिखकर डेविट पक्ष में दर्शाया जाता है। इसके विपरीत यदि डेबिट शेष हो तो शुद्ध हानि लिखकर क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है।
स्थिति विवरण (चिट्ठा) (Balance Sheet)
चिट्ठे से आशय ऐसे विवरण पत्र से है जो एक निर्धारित तिथि पर व्यवसाय की वित्तीय स्थिति को प्रगट करता है। वित्तीय स्थिति से आशय व्यापार की सम्पत्ति एवं उसके दायित्वों की तुलना से होता है। इसकी जानकारी के लिये व्यापारी वर्ष के अंत में सम्पत्ति एवं दायित्वों का विवरण तैयार करते हैं जिसे चिट्ठा कहते है।
चिट्ठे के बाई ओर के भाग में व्यापार के दायित्व एवं दाहिनी ओर सम्पत्तियाँ दर्शाई जाती है। चिट्ठे में दायित्व एवं सम्पत्तियों के अतिरिक्त समायोजन प्रविष्टियाँ भी उनके गुण के अनुसार सम्पत्ति एवं दायित्व की तरफ दर्शाई जाती है।
दायित्व पक्ष (Liability Side)
दायित्व का आशय ऋण, उधार लोन या ऐसे खर्चों से है जिसका भुगतान करना बाकि है। इन सभी को चिट्ठे के दायित्व पक्ष की ओर दर्शाया जाता है इनके साथ-साथ व्यापार की पूंजी एवं संचित निधि को भी इसी पक्ष में लिखते हैं। दायित्वों को भी तीन भागों में बांटा जाता है ;-
- (1) स्थाई दायित्व
- (2) अस्थाई दायित्व
- (3) आकस्मिक दायित्व
(1) स्थाई दायित्व :- ऐसे सभी दायित्व जिनका भुगतान दीर्घकाल में किया जाता है जैसे दीर्घकालिक लेनदार (Long Term Creditors) दीर्घ कालिक ऋण (Long Term Loan) पूंजी को भी स्थाई दायित्व माना जाता है।
(2) अस्थाई दायित्व या चालू दायित्व :- ऐसे सभी दायित्व जिनका भुगतान अल्प अवधि में देय हो चालू दायित्व कहलाता है। जैसे बैंक अधि विकर्ष अदत्त मजदूरी एवं वेतन, अन्य अदत्त व्यय एवं अल्प कालीन लेनदार।
(3) आकस्मिक दायित्व - ऐसे दायित्व जो चिट्ठा तैयार करने की तिथि को देय नहीं होते किंतु घटना विशेष के कारण देय हो सकते है, को आकस्मिक दायित्व कहते है। जैसे कर्मचारी सुरक्षा निधि या विशेष प्रयोजन हेतु संचित निधि।
संपत्ति पक्ष (Assets Side)
इस पक्ष में व्यापार की समस्त सम्पत्तियों को एकीकृत करके दर्शाते हैं। व्यापारिक सम्पत्ति को पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है -
(1) स्थाई सम्पत्ति (Fixed assets) : जो सम्पत्ति व्यापार या संस्था को चलाने के लिये क्रय की जाती है उन्हें स्थाई सम्पत्ति कहते है। जैसे, भवन, भूमि, मशीने, फर्नीचर इत्यादि।
(2) चल सम्पत्ति (Current assets) : ऐसी सम्पत्ति जो व्यापार में पुनः बेचने के लिये खरीदी जाती है या रोकड़ में परिवर्तित करने हेतु व्यापार में रखी जाती है उन्हें चल सम्पत्ति कहते है।
(3) तरल सम्पत्ति (Floating assets) : व्यापारी की ऐसी सम्पत्तियां जो कि रोकड़ को प्रदर्शित करती है को तरल सम्पत्ति कहते है जैसे रोकड़, बैंक में रोकड़, धनादेश आदि।
(4) नष्ट होने वाली सम्पत्ति (Wasting assets) : ऐसी सम्पत्तियां जिनका उपयोग करने से नष्ट हो जाती है को नष्ट होने वाली सम्पत्ति कहा जाता है। जैसे खदान, जीवित पशु आदि।
(5) काल्पनिक सम्पत्ति : जो वास्तव में सम्पत्तियां नहीं होती पर चिट्ठे में सम्पत्ति की ओर दिखायी जाती है, को काल्पनिक सम्पत्ति कहते है। इसमें ऐसे खर्चों को शामिल किया जाता है जो इतने अधिक होते हैं कि उनकी सम्पूर्ण राशि एक वर्ष में लाभ हानि खाते में हस्तांतरित न की जाकर कई वर्षों में हस्तांतरित की जाती है।
अंत में व्यापार से होने वाले लाभ को दायित्व की ओर पूंजी में जोड़ दिया जाता है या हानि को घटा दिया जाता है।