अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक

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अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक (IFRS), अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक बोर्ड (IASB) द्वारा अपनाए गए मानक,[१] प्रतिपादन और रूपरेखा[२][३] है।


IFRS के गठन के कई मानक अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक (IAS) के पुराने नाम से जाने जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक समिति (IASC) के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक सन् 1973 और 2001 के बीच जारी किए गए। 1 अप्रैल 2001 को नई IASB ने IASC से अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक स्थापित करने का उत्तरदायित्व ग्रहण किया। नये बोर्ड ने अपनी पहली बैठक के दौरान मौजूदा IAS और SICs को अपनाया. IASB ने अपने मानकों के विकास की प्रक्रिया को नए मानकों IFRS के नाम से जारी रखा.

IFRS की संरचना

IFRS को "आदर्शों पर आधारित" मानकों का समूह-बंध (सेट) माना जाता है जिसमें विस्तारित नियमों एवं उनके उपचारों के लिए विशेष आदेश स्थापित किए गए हैं।


अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानकों के अंतर्गत समाविष्ट हैं:

  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक (IFRS) - 2001 के बाद जारी किए गए मानक
  • अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक (IAS) - 2001 से पहले जारी किए गए मानक
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रतिपादन समिति (IFRIC) से उत्पन्न प्रतिपादन - 2001 के बाद जारी
  • स्थायी प्रतिपादन समिति (SIC) - 2001 से पहले जारी

वित्तीय विवरणों की उपक्रम एवं उपस्थापना के लिए एक रूपरेखा भी है जो IFRS में अंतर्भुक्त उद्देश्यों की व्याख्या करती है।


IAS 8 अनुच्छेद 11


"अनुच्छेद 10 में उल्लिखित निर्णय करने में, प्रबंधन को निम्नलिखित स्रोतों के सन्दर्भ में प्रयोज्यता पर निम्न क्रम में विचार करना होगा:


(a) मानकों और प्रतिपादनों की आवश्यकताएं एवं मार्गदर्शन समान और संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए; और


(b) परिभाषाएं, मान्यता के मानदंड और मापांकन की अवधारणाएं जो रूपरेखा में आस्तियों, देयताओं, आय और व्यय के लिए हैं।"'

रूपरेखा

वित्तीय विवरणों के उपक्रम एवं उपस्थापना की रूपरेखा (Framework for the Preparation and Presentation of Financial Statements) IFRS के मूलभूत सिद्धांतों का विवरण प्रस्तुत करती है।

रूपरेखा की भूमिका

IASB कहता है कि:


लेनदेन में विशेष रूप से लागू होने वाले मानक अथवा प्रतिपादन की अनुपस्थिति में प्रबंधन को लेखा नीति के विकास एवं व्यवहार के निर्णय का प्रयोग अवश्य करना चाहिए जिससे कि प्रासंगिक और विश्वसनीय सूचना प्रतिफलित होती है। ऐसा निर्णय लेने में, IAS 8.11 प्रबंधन को परिभाषाओं, मान्यता मानदंड और रूपरेखा में आस्तियों, देयताओं, आय एवं व्यय के मापांकन की अवधारणाओं को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। रूपरेखा के महत्त्व के उत्थापन को IAS के 8वें अनुच्छेद के संशोधन में 2003 में जोड़ा गया था।[४]

वित्तीय विवरणों के उद्देश्य

रूपरेखा ही लेखांकन के मानकों की बुनियाद है। रूपरेखा के अनुसार वित्तीय विवरणों का उद्देश्य किसी इकाई की वित्तीय स्थिति, उसके निष्पादन एवं वित्तीय परिवर्तनॉ के बारे में सूचित करना है जो व्यापक स्तर पर उपयोगकर्ताओं को आर्थिक निर्णय लेने में तथा इकाई के शेयरधारकों एवं आम जनता को मौजूदा वित्तीय स्थिति की जानकारी देने में उपयोगी है।

अंतर्निहित धारणाएं

IFRS में व्यवहृत अंतर्निहित धारणाएं इस प्रकार हैं:

  • प्रोद्भवन के आधार पर (एक्र्युअल बेसिस)- लेन-देन के प्रभाव एवं अन्य घटनाओं की पहचान तभी होती है जब वे घटित होते हैं, पर नकदी की प्राप्ति या भुगतान के रूप में नहीं.
  • बढ़ती हुई चिंता (Going Concern) - वित्तीय विवरण इस आधार पर बनते हैं कि कोई इकाई निकट भविष्य में भी परिचालन जारी रखेगी.

वित्तीय विवरणों की गुणात्मक विशेषताएं

रूपरेखा में वर्णित वित्तीय विवरणों की गुणात्मक विशेषताएं हैं:

  • बोधगम्यता
  • प्रासंगिकता
  • विश्वसनीयता एवं
  • तुलनात्मकता
  • उत्तरदायित्व
  • समयोचितता

वित्तीय विवरण के तत्त्व

किसी उद्यम की वित्तीय स्थिति प्रथमतः उसके तुलन पत्र में प्रस्तुत की जाती है। तुलन पत्र के तत्त्व अथवा वे तत्त्व जो वित्तीय स्थिति को आंकते हैं वे निम्न हैं:


1. आस्ति (Assets) : आस्ति उद्यम द्वारा नियंत्रित संसाधन है जो विगत घटनाओं का प्रतिफल है और जिससे उद्यम को भविष्य में होने वाले आर्थिक लाभों की अपेक्षाएं हैं।


2. देयता : देयता उद्यम की विगत घटनाओं से उभरने वाली वर्तमान बाध्यता है, जिसका निपटान उद्यम से बहिर्गमित होने वाले संसाधनों का परिणाम है, जैसे कि, आस्तियों का.


3. इक्विटी (सामान्य शेयर): किसी उद्यम की आस्तियों से सभी देयताओं को घटाने के बाद अवशिष्ट ब्याज को ही इक्विटी कहते हैं। इक्विटी को मालिक की इक्विटी भी कहते हैं।


किसी उद्यम का वित्तीय निष्पादन प्रथमतः आय के विवरण अथवा लाभ और हानि लेखा में दर्शाया जाता है। आय के विवरण के तत्त्व अथवा जो आय वित्तीय निष्पादन को मापते हैं वे निम्न प्रकार से हैं:


4. राजस्व : लेखांकन की अवधि के दौरान निवेश अथवा आस्तियों में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप आर्थिक लाभ में वृद्धि या देयताओं में कमी के कारण इक्विटी में वृद्धि होती है। हालांकि, इसमें इक्विटी के प्रतिभागियों, जैसे कि, मालिक, भागीदार और शेयर धारकों के अंशदान शामिल नहीं है।


5. व्यय : लेखांकन की अवधि के दौरान बाहिर्वाह के रूप में आर्थिक लाभों में ह्वास अथवा आस्तियों में अवक्षय या देयताओं में व्यय भार जिसके फलस्वरूप इक्विटी में ह्वास होता है।

वित्तीय विवरण के तत्वों की पहचान

वित्तीय विवरण में किसी मद (आइटम) की पहचान तब होती है जब:

  • इसकी संभावना है कि किसी इकाई से या इकाई को भविष्य में आर्थिक लाभ होगा और
  • जब किसी मद (आइटम) की ऐसी लागत या कीमत होगी जो विश्वसनीयता के साथ आंकी जा सकेगी.
  • वित्तीय स्थिरता

वित्तीय विवरण में तत्त्वों के मापन

अनुच्छेद 99. मापन मौद्रिक रकम को निर्धारित करने की प्रक्रिया है जिस पर वित्तीय विवरणों के तत्त्वों की पहचान की जाती है तथा तुलन पत्र और आय के विवरण में आगे ले जायी जाती है। इससे मापन के विशेष आधार का चयन होता है।

अनुच्छेद 100. वित्तीय विवरणों में मापन के कई प्रकार के आधार भिन्न स्तरों में और बदलते हुए संयोजनों में नियोजित होते हैं। उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(a) ऐतिहासिक लागत. आस्तियों को उनके अभिग्रहण के समय नकद या नकद राशि के समतुल्य भुगतान की गई राशि या उन्हें अर्जित करने के लिए दिए गए प्रतिफल के उचित मूल्य पर अभिलिखित किया जाता है। व्यवसाय की सामान्य दिशा में, देयताओं को बाध्यता के विनिमय की प्राप्ति पर अभिलिखित किया जाता है अथवा कुछ परिस्थितियों में (उदाहरण के लिए, आयकरों में), नकद राशि या नकद के समतुल्य भुगतान की अपेक्षा देयता की भरपाई के लिए की जाती है।

(b) वर्तमान लागत. नकद राशि या नकद के समतुल्य जिनका भुगतान किया जाना है अगर बराबर या उसकी समतुल्य आस्ति (संपत्ति) अर्जित कर ली गई हो तो आस्तियों को आगे ले जाया जाता है। नकद या नकद बराबर राशि की देयताओं (देनदारियों) को आगे ले जाया जाता है जिसकी आवश्यकता वर्तमान में बाध्यता के निपटान में होगी.

(c) प्राप्य (निपटान) मूल्य. ऐसी आस्तियों को आगे बढ़ा दिया जाता है जिसे नकद राशि या नकद के समतुल्य व्यवस्थित निपटान में बेचकर पाया जा सकता है। निपटान के मूल्य पर देयताओं को आगे बढ़ा दिया जाता है; जो कि बिना बट्टे की नकद राशि या नकद के समतुल्य भुगतान की अपेक्षा रखती हैं ताकि व्यवसाय की सामान्य गति में देयताओं को चुकाया जा सके.

(d) वर्तमान मूल्य. आस्तियों को भविष्य की निवल रकम के आगमन के बट्टागत मूल्य पर आगे ले जाया जाता है जिसमें व्यापार की सामान्य गति में मद (आइटम) के पैदा होने की अपेक्षा रहती है। देयताओं को वर्तमान बट्टागत मूल्य पर भविष्य के निवल नकद बहिर्वाह पर आगे ले जाया जाता है जिसकी अपेक्षित आवश्यकता व्यापार की सामान्य गति में देयताओं के निपटान के लिए होती है।

अनुच्छेद 101. वित्तीय विवरणों में इकाइयों द्वारा आम तौर पर सबसे अधिक अपनाया गया मापन का आधार ऐतिहासिक मूल्य है। यह साधारणतया अन्य मापन आधारों के साथ संयुक्त है। उदाहरण के लिए, माल (स्टॉक) को कम लागत पर और निवल प्राप्य मूल्य पर आगे ले जाया जाता है। विपणन योग्य प्रतिभूतियों को बाज़ार मूल्य पर और पेंशन की देयताओं को उनके वर्तमान मूल्य पर आगे ले जाया जाता है। इसके अतिरिक्त, कुछ इकाइयां गैर मौद्रिक आस्तियों की बदलती हुई कीमतों के प्रभाव के कारण ऐतिहासिक लागत लेखा विधि मॉडल के साथ उनसे निपटान में अक्षम हैं; इसलिए वे वर्तमान लागत के आधार का उपयोग करती हैं।[५]

पूंजी की अवधारणा और पूंजी का रखरखाव

[६]

पूंजी की अवधारणा

अनुच्छेद 102. पूंजी की अवधारणा अधिकतर इकाइयों के द्वारा उनके वित्तीय विवरणों में अपनाई गई है। पूंजी की वित्तीय अवधारणा, जैसे कि निवेश की गई रकम (मुद्रा) या निवेश की गई क्रय-शक्ति के अंतर्गत, निवल आस्ति अथवा इकाई की इक्विटी के साथ पूंजी पर्याय बन गई है। पूंजी की वस्तुपरक अवधारणा, जैसे कि संचालन क्षमता के अंतर्गत, इकाइयों के प्रतिदिन उत्पाद के आधार पर पूंजी इकाई की उत्पादक क्षमता के रूप में मानी जाती है।

अनुच्छेद 103. किसी इकाई के द्वारा पूंजी की उपयुक्त अवधारणा का चयन उपयोगकर्ताओं के वित्तीय विवरणों की आवश्यकताओं के आधार पर होना चाहिए. इस प्रकार, पूंजी की वित्तीय अवधारणा को तभी अपनाया जाना चाहिए जब उपयोगकर्ताओं के वित्तीय विवरण प्राथमिक तौर पर नाम मात्र की निवेश की गई पूंजी या निवेश की गई पूंजी की क्रय शक्ति के रख रखाव से संबंधित हों. फिर भी, अगर उपयोगकर्ताओं की मुख्य उद्विग्नता इकाई की संचालन क्षमता से हो तो पूंजी की वस्तुपरक अवधारणा का प्रयोग करना चाहिए. चुनी हुई अवधारणा लाभ के निर्धारण तक पहुंचने के लक्ष्य की ओर इंगित करती है, जबकि अवधारणा को परिचालित करने में मापन की कुछ कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं।[७]


पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा और लाभ का निर्धारण

अनुच्छेद 104. अनुच्छेद 102 में पूंजी की अवधारणा पूंजी के रख-रखाव के लिए निम्नलिखित अवधारणाओं को जन्म देती है।

(a) वित्तीय पूंजी का रखरखाव. इस अवधारणा के अंतर्गत लाभ तभी अर्जित किया जाता है जब अवधि के आरंभ में निवल आस्तियों की वित्तीय (या मुद्रा) राशि मालिकों को किए गए वितरणों या उस अवधि में उनसे प्राप्त अंशदान को छोड़कर अवधि के अंत में बढ़ जाती है। वित्तीय पूंजी के रख-रखाव का मापन या तो मात्रा की मौद्रिक इकाइयों या निरंतर क्रय शक्ति की इकाइयों से किया जा सकता है।

(b) वस्तुगत पूंजी का रख-रखाव इस अवधारणा के अंतर्गत लाभ तभी अर्जित होता है जब इकाई की वस्तुगत उत्पादन क्षमता (या संचालन दक्षता) या उस क्षमता को पाने के लिए अवधि के अंत में संसाधनों अथवा निधियों की आवश्यकता मालिकों को किसी प्रकार के वितरण या उनसे प्राप्त अंशदान को छोड़कर उस अवधि के आरंभ में वस्तुगत उत्पादन क्षमता से अधिक हो जाती है।

अनुच्छेद 105. पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा का सरोकार केवल इस बात से है कि कोई इकाई किस प्रकार पूंजी को परिभाषित करती है जिस कारण इसके रख-रखाव की जरूरत पड़ती है। यह पूंजी की अवधारणा और लाभ की अवधारणाओं के बीच संपर्क-सूत्र कायम करती है क्योंकि यह उस मुद्दे को सन्दर्भित करती है जिसके द्वारा लाभ का मापन होता है। यह किसी इकाई की पूंजी पर प्रतिफल तथा इसकी पूंजी की वापसी के बीच अंतर स्पष्ट करने के लिए पहली आवश्यकता है। केवल आस्तियों की अत्यधिक राशि में आगमन की अवस्था में ही पूंजी के रख-रखाव को लाभ मान लिया जा सकता है और इसीलिए पूंजी पर प्रतिफल के रूप में समझा जाता है। अतः लाभ वह अवशिष्ट राशि है जो खर्चों के बाद भी बच जाती है (जहां उपयुक्त हो, पूंजी के रख-रखाव के समायोजन सहित) उसे आय से घटा दिया जाता है। अगर व्यय आय से अधिक हो जाता है तो अवशिष्ट राशि हानि मानी जाती है।

अनुच्छेद 106. वस्तुगत पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा को मौजूदा लागत के आधार पर मापन को अपनाने की आवश्यकता है। हालांकि, वित्तीय पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा को किसी विशेष मापन के प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ती है। इस अवधारणा के अंतर्गत चयन का आधार वित्तीय पूंजी के प्रकार (टाइप) पर निर्भर है जिसके रख-रखाव की तलाश इकाई को रहती है।

अनुच्छेद 107. पूंजी के रख-रखाव की दो अवधारणाओं के बीच मुख्य अंतर इकाई की आस्तियों और देयताओं के मूल्यों में परिवर्तनों के प्रभाव का उपचार है। आम शब्दों में, एक इकाई ने अपनी पूंजी का रख-रखाव किया है अगर इसके पास अवधि के अंत में उतनी ही पूंजी है जितनी की अवधि के आरंभ में थी। अवधि के आरंभ में पूंजी के रख-रखाव के लिए आवश्यकता से अधिक कोई भी राशि लाभ है।

अनुच्छेद 108. वित्तीय पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा के अंतर्गत जिसमें पूंजी को नाम मात्र की मौद्रिक इकाई के रूप में परिभाषित किया गया है, लाभ उस अवधि में नाम मात्र की मुद्रा पूंजी की वृद्धि का निरूपण करता है। इस प्रकार, पूरी अवधि में आस्तियों के मूल्यों में वृद्धि को परंपरागत रूप से लाभ धारण करना ही माना जाता रहा है जो सिद्धांतः लाभ ही है। हालांकि, हो सकता है विनिमय के लेनदेन में जब तक आस्तियों का निपटान नहीं हो जाता तब तक इस रूप में न पहचाना जा सके. जब वित्तीय पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा इकाई की अचल (स्थिर) क्रय शक्ति के रूप में परिभाषित की जाती है, लाभ उस अवधि में निवेशित क्रय शक्ति में वृद्धि का निरूपण करता है। इस प्रकार, आस्तियों की कीमतों में वृद्धि का वही अंश जो आम तौर पर कीमतों में वृद्धि को पार कर जाता है, उसे लाभ समझा जाता है। बाकी बची हुई वृद्धि को पूंजी के रख-रखाव के समायोजन, अर्थात इक्विटी के एक अंश के रूप में समझा जाता है।

अनुच्छेद 109. वस्तुगत पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा के अंतर्गत जब पूंजी को वस्तुगत उत्पादक क्षमता के सन्दर्भ में परिभाषित किया जाता है, तब लाभ उस अवधि में पूंजी में वृद्धि का निरूपण करता है। इकाई की आस्तियों और देयताओं पर असर डालने वाली सभी कीमतों में परिवर्तनों को इकाई की वस्तुगत उत्पादन क्षमता के मापन में परिवर्तनों के रूप में देखा जाता है; अतः उन्हें पूंजी के रख-रखाव के समायोजन के रूप में समझा जाता है जो इक्विटी के अंश हैं न कि लाभ हैं।

अनुच्छेद 110. मापन के आधारों का चयन और पूंजी के रख-रखाव की अवधारणा वित्तीय विवरणों की प्रस्तुति में प्रयुक्त लेखांकन मॉडल का निर्धारण करेगी. भिन्न लेखांकन मॉडल्स भिन्न स्तर (डिग्री) की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता प्रदर्शित करते हैं और, जैसा कि अन्य क्षेत्रों में, प्रबंधन को प्रासंगिकता और विश्वसनीयता के मध्य संतुलन की तलाश अवश्य करनी चाहिए. यह रूपरेखा लेखांकन मॉडल्स की एक शृंखला में प्रयोज्य है और यह चयनित मॉडल के अंदर तैयार वित्तीय विवरणों की तैयारी और प्रस्तुति में मार्ग-दर्शन प्रदान करता है। मौजूदा समय में, यह IASC बोर्ड का मकसद अपेक्षाकृत अपवाद की परिस्थितियों के अतिरिक्त एक विशिष्ट मॉडल निर्धारित करना नहीं है, जैसे कि उन इकाइयों के लिए जो अतिस्फीतिकारक अर्थव्यवस्था के रूप में मुद्रा की सूचना देते हैं। हालांकि, विश्वव्यापी विकासों के आलोक में इस उद्देश्य की समीक्षा की जाएगी.[८]

IFRS की आवश्यकताएं

IFRS के वित्तीय विवरणों में अंतर्भुक्त हैं (IAS1.8)


पूर्व समीक्षाधीन अवधि (IAS 1.36) के लिए तुलनात्मक सूचना प्रदान की गई है। एक इकाई जो पहली बार IFRS लेखा तैयार कर रही है उसे वर्तमान एवं तुलनात्मक अवधि के लिए IFRS पूरी तरह लागू करना होगा हालांकि इसमें संक्रमणकालीन छूट (IFRS1.7) है।


6 सितम्बर 2007 को IASB ने संशोधित IAS 1 वित्तीय विवरणों की प्रस्तुति जारी की. पूर्व संस्करण में मुख्य परिवर्तन के अनुसार एक इकाई को अवश्य चाहिए:

  • इक्विटी में सभी गैर-मालिकाना परिवर्तनों को प्रस्तुत करना (जैसे कि 'व्यापक आय') या तो व्यापक आय के एक विवरण में अथवा दो विवरणों में (एक अलग से आय का विवरण और एक व्यापक आय का विवरण). इक्विटी के परिवर्तनों के विवरण में व्यापक आय के घटक प्रस्तुत नहीं भी किए जा सकते हैं।
  • तुलनात्मक अवधि के आरंभ में ही जब कोई इकाई लेखा लागू करती है तो वित्तीय स्थिति का विवरण (तुलन पत्र) एक सम्पूर्ण सेट में प्रस्तुत करना.
  • 'तुलन पत्र', 'वित्तीय स्थिति का विवरण' हो जाएगा.
  • 'आय का विवरण', 'व्यापक आय का विवरण' हो जाएगा.
  • 'नकद आगमन का विवरण', 'नकद बहिर्गमन का विवरण' हो जाएगा.

संशोधित IAS 1, 1 जनवरी 2009 से या उसके पश्चात् वार्षिक अवधियों के लिए कारगर हैं। इससे पहले भी अपनाई जाने की अनुमति है।

IASB की चालू परियोजनाएं

IASB परियोजनाओं में प्रगति को ध्यान में रखकर कार्य योजना प्रकाशित करता है।[९] इसका अधिकतर कार्य US GAAP के अभिसरण में निर्देशित है।

IFRS का अंगीकरण

IFRS का प्रयोग संसार के कई हिस्सों में होता है, जिसमें यूरोपीय संघ, हांग कांग, ऑस्ट्रेलिया, मलयेशिया, पाकिस्तान, GCC के देश, रूस, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर और तुर्की शामिल है। 27 अगस्त 2008 तक यूरोप के सभी देशों सहित, संसार भर के 113 से अधिक देशों को IFRS की रिपोर्टिंग की अनुमति आवश्यक है। उनमें से लगभग 85 देशों के लिए सभी घरेलू सूचीबद्ध कंपनियों की IFRS रिपोर्टिंग आवश्यक है।[१०]


वर्तमान में विहंगावलोकन के लिए सभी देशों की IAS PLUS की सूची देखें जिन्होंने IFRS को अपना लिया है।

ऑस्ट्रेलिया

IFRS के मानकों को AASB 1-8 एवं IAS मानकों के लिए 101 - 141 के रूप में संख्यांकन कर ऑस्ट्रेलियाई लेखांकन मानक बोर्ड (AASB) ने आई ऍफ़ आर एस (IFRS) का 'ऑस्ट्रेलियाई समतुल्य' (A-IFRS) जारी किया है। कई 'घरेलू' मानकों और प्रतिपादनों सहित SIC और IFRIC प्रतिपादनों के ऑस्ट्रेलियाई समतुल्य भी जारी किए गए हैं। इन घोषणाओं ने साधारणतया स्वीकृत लेखांकन के पूर्ववर्ती ऑस्ट्रेलियाई सिद्धांतों को 1 जनवरी 2005 से आरंभ होने वाली वार्षिक रिपोर्टिंग अवधि से स्थानापन्न कर दिया है। (इसलिए 30 जून 2006 को प्रस्तुत रिपोर्ट IFRS-समतुल्य मानकों के अंतर्गत जून के वर्षांत तक तैयार की गयी पहली रिपोर्ट थी। इस हद तक, यूरोप एवं कई अन्य देशों सहित ऑस्ट्रेलिया घरेलू प्रयोजनों के लिए IFRS को अपनाने वाला आरंभिक देश था।


AASB ने A-IFRS बनाने में IASB की घोषणाओं में कई संशोधन किए है, हालांकि आम तौर पर IFRS के अंतर्गत, अतिरिक्त प्रकटन को लागू करते हुए या जो लाभ के लिए नहीं हैं ऐसी इकाइयों की आवश्यकताओं को कार्यान्वित करते हुए, न कि ऑस्ट्रेलियाई इकाइयों के लिए IFRS से विलग होते हुए इनके पास विकल्प के विलोपन का प्रभाव है। तदनुसार, लाभ वाली इकाइयों के लिए जो A-IFRS के अनुसार वित्तीय विवरण बनाती हैं, वे IFRS के अनुपालन में एक अनारक्षित विवरण बनाने में सक्षम हैं।


AASB, IASB के द्वारा किए गए घरेलू घोषणाओं में परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करता रहता है। इसके अतिरिक्त, हाल-फ़िलहाल के वर्षों में, AASB ने आंचलिक शब्दावली में परिवर्तनों के लिए IFRS की विषय वस्तु में किए गए प्रारंभिक परिवर्तनों को उलटे क्रम में कर देने के लिए तथाकथित 'संशोधनकारी मानक' जारी किए हैं, ताकि विकल्पों की बहाली और कुछ विशेष ऑस्ट्रेलियाई प्रकटन को निष्कासित किया जा सके. IFRS का 'ऑस्ट्रेलियाईकरण' किए बिना ऑस्ट्रेलिया के लिए इन्हें अपनाने की बेहद जरूरत हो गई है। इसके फलस्वरूप अब AASB, IFRS को ऑस्ट्रेलिया में अपनाने के वैकल्पिक तरीके खोज रहा है।

कनाडा

1 जनवरी 2011 से आरंभ होने वाले वित्तीय वर्षों में सार्वजनिक रूप से उत्तरदायी लाभोन्मुख उद्यमों के लिए IFRS के प्रयोग की आवश्यकता होगी. इसमें सार्वजनिक कंपनियां और अन्य "लाभोन्मुख उद्यम भी शामिल होंगे जो शेयरधारकों के एक बड़े अथवा विविध समूहों के लिए उत्तरदायी हैं।"[११]

यूरोपीय संघ

EU की सूची में शामिल सभी कंपनियों को सन् 2005 से IFRS का प्रयोग करना आवश्यक है।


EU में प्रयोग के अनुमोदन के लिए, मानकों को लेखा विनियामक समिति (एकाउंटिंग रेगुलेटरी कमिटी) (ARC) का समर्थन अवश्य प्राप्त होना चाहिए, जिसमें सदस्य राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल हैं और लेखा विशेषज्ञों के उस वर्ग का परामर्श प्राप्त है जिसे यूरोपीय वित्तीय प्रतिवेदन सलाहकार समूह (यूरोपियन फाइनेंसियल रिपोर्टिंग एडवाइज़री ग्रूप) के नाम से जाना जाता है। फलस्वरूप EU में IFRS का प्रयोग जिस प्रकार से होता है वह अन्य जगहों से भिन्न हो सकता है।


IAS 39 के मानक के अंग: वित्तीय उपकरण: मूलतः मान्यता और मापन, ARC द्वारा अनुमोदित नहीं थे। वित्तीय देयताओं को अभिलिखित करने के विकल्प को हटाकर IAS 39 को बाद में संशोधित किया गया और ARC ने संशोधित संस्करण को अनुमोदित कर दिया. IASB, EU के साथ मिलकर बचाव व्यवस्था के लेखांकन के सन्दर्भ में शेष विसंगति को दूर करने के लिए स्वीकार्य तरीके की तलाश में काम कर रहा है।

रूस

रूस की सरकार सन् 1998 से ही IFRS के साथ अपने राष्ट्रीय लेखा मानकों का सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में एक कार्यक्रम क्रियान्वित कर रही है। तब से रूसी संघ (रशियन फेडरेशन) के वित्त मंत्रालय ने IFRS की लेखा पद्धतियों के साथ-साथ चलने के उद्देश्य से बीस नए लेखा मानक जारी किए हैं। इन प्रयासों के बावजूद राष्ट्रीय लेखा मानकों और IFRS के मध्य आवश्यक अंतर बरकरार हैं। सन् 2004 से, सभी वाणिज्यिक बैंकों को राष्ट्रीय लेखा मानकों एवं IFRS दोनों के ही अनुसार वित्तीय विवरणों को तैयार करने के लिए बाध्य किया गया है। IFRS में संपूर्ण परिवर्तन में विलंब है और आशा की जाती है कि सन् 2011 से यह हो जाएगा.

तुर्की

सन् 2006 में तुर्की लेखा मानक बोर्ड (टर्किश एकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स बोर्ड) ने IFRS को तुर्की में अनुवाद किया। अतः सन् 2006 से तुर्की कंपनियां जो इस्तांबुल स्टॉक एक्सचेंज की सूची में शामिल हैं, उन्हें IFRS की रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है।

हांगकांग

सन् 2005 के आरंभ में हांगकांग वित्तीय प्रतिवेदन मानकों (HKFRS) के साथ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों में एकरूपता पाई जाती है। जबकि हांगकांग ने आरंभ में ही IAS के कई मानकों को हांगकांग के मानकों के रूप में अपना लिया था, कुछ को नहीं अपनाया था, जिनमें IAS 32 और IAS 39 शामिल हैं। और पूरे दिसम्बर 2003 में किए गए सभी सुधारों तथा 2004 और 2005 में जारी किए गए नए एवं संशोधित IFRS हांगकांग में 2005 से कारगर हो जाएंगे.


हांगकांग वित्तीय प्रतिवेदन मानकों का कार्यान्वयन: 2005 के लिए चुनौती (अगस्त 2005) प्रत्येक मानक का सार मर्म और उसका प्रतिपादन निर्दिष्ट करती है, जिसने हांगकांग की लेखा प्रणाली में मूलभूत परिवर्तन, जिसे अपनाने के सार्थक तात्पर्य, तथा पूर्वानुमानित भविष्य के घटनाक्रमों से लगाव हैं। केवल एक ही हांगकांग मानक है और कई हांगकांग प्रतिपादन हैं जिसके IFRS में प्रतिपक्षी नहीं है। HKFRS और IFRS के बीच छोटे-मोटे गौण शाब्दिक असमानताएं हैं।[१२][१३]

सिंगापुर

लेखांकन मानक समिति (एकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स कमिटी) (ASC) के पास हांगकांग में मानकों को निर्धारित करने का कार्यभार है। IFRS के अनुरूप सिंगापुर अपने वित्तीय प्रतिवेदन मानकों (FRS) के आदर्श उन उचित परिवर्तनों के साथ सावधानी से गढ़ता है, जो सिंगापुर के सन्दर्भ में अनुकूल है। इससे पहले कि मानकों को विधिवत लागू किया जाए, मुख्य सिद्धांतों की सुसंगति बनाए रखने के लिए IASB के साथ विचार विमर्श की आवश्यकता है।[१४]

संयुक्त राज्य और US GAAP के साथ अभिसरण

2002 में नॉरवॉक, कनेक्टिकट की एक सभा में, IASB और संयुक्त राज्य वित्तीय लेखा मानक बोर्ड (FASB) सहमति जताई कि अपने कार्यक्रमों एवं IFRS और US GAAP (नॉरवॉक समझौते के अनुसार) बीच मदभेदों को कम करने की दिशा में काम करेंगे ताकि उनमें सामंजस्य स्थापित हो सके. फरवरी 2006 में, FASB और IASB ने ऐसे प्रकरणों सहित कार्यक्रम के समझौते का एक ज्ञापन जारी किया जिन पर दोनों ही निकाय 2008 तक अभिसरण प्राप्त करने के लिए काम करेंगे.


संयुक्त राज्य प्रतिभूति और विनिमय आयोग के साथ पंजीकृत संयुक्त राज्य की कंपनियों को US GAAP के ही अनुसार तैयार वित्तीय विवरण अवश्य देना चाहिए. 2007 तक विदेशी निजी निर्गमकर्ताओं के लिए (a) US GAAP के अंतर्गत या (b) स्थानीय लेखांकन सिद्धांतों के अनुसार US GAAP के साथ स्थानीय सिद्धांतों या IFRS में अनुरूपता लाने के पाद टिपण्णी के साथ तैयार वित्तीय विवरणों का पेश करना जरूरी था। इस समाधान ने विनिमयों के साथ सूचीबद्ध कंपनियों पर संयुक्त राज्य में तथा दूसरे देशों में खर्च का अतिरिक्त भार डाल दिया. सन् 2008 से विदेशी निजी निर्गम कर्ताओं को, जैसा कि IASB ने US GAAP के साथ समाधान के बिना जारी किये गए IFRS के अनुरूप वित्तीय विवरणों को जमा करने की अतिरिक्त अनुमति प्रदान की गई।[१५] नियंत्रकों के नेतृत्व वाले गोलमेज (कंट्रोलर्स लीडरशिप राउन्डटेबल) सर्वेक्षता के आंकड़ों के अनुसार बढ़ती हुई स्वीकृति के परिदृश्य में संयुक्त राज्य की कंपनियों को व्यापक अपेक्षा है कि SEC निकट भविष्य में IFRS के प्रयोग की अनुमति प्रदान करेगा.


अगस्त 2008 में, SEC ने एक समय सारिणी की घोषणा की जो कुछ कंपनियों को IFRS के अंतर्गत 2010 तक रिपोर्ट पेश करने की अनुमति प्रदान करेगी और दूसरी कंपनियों के लिए भी 2014 तक इसकी आवश्यकता होगी.[१६]


SEC को अपनी समय सारिणी पर विविध समूह के घटकों से 220 से अधिक समीक्षा पत्र प्राप्त हुए. कुछ मुख्य बिंदु जो पत्र में थे: - उच्च गुणवत्ता संपन्न वित्तीय प्रतिवेदन के मानकों का केवल एक सेट ही विश्वव्यापी स्तर पर प्रयुक्त हो यही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए - अभिसरण प्रक्रिया की निरंतरता में अधिकतर प्रतिक्रियावादियों का समर्थन मिलता रहे - प्रयोक्ता सिद्धांतों पर आधारित लेखा की रूपरेखा अधिक पसंद करते हैं जिसमें मजबूत व्यावहारिक फैसले के साथ-साथ लेनदेन में आर्थिक उपादान के बारे में स्पष्ट और पारदर्शी प्रकटीकरण (खुलासा), इस कारण शामिल हो ताकि निष्कर्ष तक पहुंचा जाए और लेनदेन से संबंधित लेखांकन हो. - यह अभिस्वीकृति कि IFRS को अपनाने के लिए अपेक्षित लागत तो अर्थपूर्ण होगा लेकिन नहीं अपनाने की अनुमानित लागत संयुक्त राज्य पूंजी बाज़ार (U.S. कैपिटल मार्केट्स) के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण होगा. - एक स्पष्ट प्रतिबद्धता और अपनाने की तिथि आवश्यक है, यह 2014, 2015 या 2016 में कुछ भी हो (अर्थात् एक "निश्चित तिथि") केवल तुलनात्मक वर्ष से एक वर्ष पहले की सिफारिश चाहिए. [१७]


मेरी शैपिरो, SEC की अध्यक्ष, ने 6 जुलाई 2009 को अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक समिति फाउंडेशन (IASCF) की एक बैठक के दौरान SEC की प्रस्तावित योजना (पथ प्रदर्शिका) पर एक अद्यतन रूपरेखा प्रदान की है। समीक्षा वाले सभी पत्रों पर SEC का अपना विश्लेषण जारी है और 2009 के अंत तक इस मुद्दे पर पुनः विचार होगा. [१८]

भारत

भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया) (ICAI) ने घोषणा जारी की है कि भारत में 1 अप्रैल 2011 से या बाद में आरंभ होने वाली अवधि के लिए वित्तीय विवरणों में IFRS भारत में अनिवार्य होंगे. IFRS के साथ सुसंगत करने के लिए मौजूद लेखा मानकों में संशोधन के द्वारा यह किया जाएगा.


भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि बैंकों के वित्तीय विवरणों को 1 अप्रैल 2011 से या बाद में आरंभ होने वाली अवधि के लिए IFRS का अनुवर्ती होना आवश्यक होगा.

जापान

जापान के लेखा मानक बोर्ड (एकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स बोर्ड ऑफ़ जापान) वर्तमान में JP-GAAP और IFRS के बीच सभी विसंगतियों को 2011 तक पूरी तरह सुलझाने पर सहमत हो गया है। [१९]

संपूर्ण पाठ लिंक के साथ IFRS विवरणों की सूची

निम्नलिखित IFRS विवरणों को वर्तमान में जारी किया गया है:

  • IFRS 1 अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक का पहली बार

अभिग्रहण (सारांश) ([१]संपूर्ण पाठ [२])

संपूर्ण पाठ लिंक के साथ व्याख्याओं की सूची

  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन की व्याख्याओं प्रस्तावना (जनवरी, 2006 में नवीनीकृत)([97]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 1 मौजूदा सेवामुक्ति, बहाली और इसी प्रकार की देयताओं में परिवर्तन (जनवरी, 2006 में नवीनीकृत)([६५]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 7 अतिस्फीतिकारक अर्थव्यवस्थाओं में IAS 29 वित्तीय प्रतिवेदन के अंतर्गत निकटागमन (फरवरी 2006 में जारी)([६६]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 8 IFRS 2 का कार्यक्षेत्र (फरवरी 2006 में जारी)([६७]संपूर्ण पाठ) - IFRS 2 को जारी किए गए संशोधनों के साथ समाप्त हो गया है
  • IFRIC 9 अंतःस्थापित संजातों का पुनर्मूल्यांकन (अप्रैल 2006 में जारी)([६८]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 10 अंतरिम वित्तीय प्रतिवेदन और क्षति (नवम्बर 2006 में जारी)([६९]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 11 IFRS 2-समूह और ट्रेज़री शेयर के लेनदेन (नवम्बर 2006 में जारी)([७०]संपूर्ण पाठ) - IFRS 2 को जारी किए गए संशोधनों के साथ समाप्त हो गया है
  • IFRIC 12 सेवा रियायत व्यवस्था (नवम्बर 2006 में जारी) ([७१] संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 13 ग्राहक वफादारी कार्यक्रम (जून 2007 में जारी)([७२]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 14 IAS 19 – निर्धारित भत्ता आस्ति, न्यूनतम निधीकरण की आवश्यकताएं और उनकी सहभागिता की सीमा (जुलाई 2007 में जारी)([७३]संपूर्ण पाठ)
  • IFRIC 15 रियल एस्टेट के निर्माण के लिए समझौते (जुलाई 2008 में जारी)
  • IFRIC 16 विदेशी परिचालन में एक निवल निवेश के बचाव (जुलाई 2008 में जारी)
  • IFRIC 17 गैर-नकदी आस्तियों के वितरण (नवम्बर 2008 में जारी)
  • IFRIC 18 ग्राहकों से आस्तियों के स्थानांतरण (जनवरी 2009 में जारी)
  • SIC 7 यूरो का परिचय (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७४]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 10 सरकारी सहायता-परिचालनगत क्रियाकलापों से कोई विशिष्ट संबंध नहीं (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७५]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 12 समेकन-विशेष प्रयोजन इकाइयां (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७६]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 13 संयुक्त नियंत्रित इकाइयां-उद्यमियों द्वारा गैर-मौद्रिक योगदान (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७७]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 15 परिचालनगत पट्टे-प्रोत्साहन (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७८]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 21 पुनर्मूल्यांकित गैर-मूल्यह्रासयोग्य आस्तियों की आयकर-वसूली (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([७९]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 25 किसी इकाई या इसके शेयरधारकों के कर स्थिति में आयकर-परिवर्तन (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([८०]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 27 किसी पट्टे के कानूनी रूप को अंतर्भूत करके लेनदेन सार का मूल्यांकन (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([८१]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 29 प्रकटीकरण-सेवा रियायत व्यवस्था (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([८२]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 31 विज्ञापन सेवाओं को अंतर्भूत करके राजस्व-बार्टर लेनदेन (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([८३]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 32 अमूर्त आस्ति-वेब साइट लागत (जनवरी 2006 में नवीनीकृत)([८४]संपूर्ण पाठ)
  • SIC 33 एकीकरण और इक्विटी विधि - संभावित मतदान अधिकार और स्वामित्व के हितों का आवंटन ([८५]संपूर्ण पाठ)

अतिरिक्त पठन

  • अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक बोर्ड (2007): अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक 2007 (अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक
(IAS(tm)) और 1 जनवरी 2007 में निर्वचनों सहित), LexisNexis (लेक्सिसनेक्सिस), ISBN 1-4224-1813-8

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ




  • कनाडा में IFRS रूपांतरणों से संबंधित डाउनलोडयोग्य दस्तावेजों और समाचार के साथ RSM Richter IFRS पेज
  • SEC के साथ पंजीकृत विदेशी निजी निर्गमकों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन मानक के फर्स्ट-टाइम एप्लीकेशन के लिए U.S. प्रतिभूति और विनिमय आयोग के प्रस्ताव
  • SAP IFRS Community व्यवसायिक संस्थानों के लिए अभिकल्पित ब्लॉगों, मंचों, लेख और अन्य संसाधनों के साथ प्रयोक्ता समुदाय

विशेषकर SAP सोल्यूशंस का प्रयोग करके, IFRS का कार्यान्वयन

  1. [८६] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।मानकों का संपूर्ण पाठ
  2. [८७]साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]IFRS और IAS के सारांश - अंग्रेजी (2009)
  3. [८८]रूपरेखा का संपूर्ण पाठ
  4. Deloitte Touche Tohmatsu. "वित्तीय विवरणों की तैयारी और प्रस्तुति की रूपरेखा" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
  5. [८९]रूपरेखा का संपूर्ण पाठ
  6. w:en:Constant_Purchasing_Power_Accounting#CPPA_as_per_the_IASB.C2.B4s_Framework
  7. [९०]रूपरेखा का पूर्ण पाठ
  8. [९१]रूपरेखा का संपूर्ण पाठ
  9. IASB: "IASB कार्य योजना" http://www.iasb.org/Current+Projects/IASB+Projects/IASB+Work+Plan.htm स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, 19 अप्रैल 2007 को लिया गया .
  10. साँचा:cite web
  11. साँचा:cite web
  12. http://www.deloitte.com/dtt/research/0,1015,cid%253D91491,00.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  13. http://www.deloitte.com/dtt/research/0,1015,cid%253D91491,00.htmlसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  14. लेखांकन मानकों के निर्धारण की प्रक्रिया, http://www.ccdg.gov.sg/account.htm स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, 29 फ़रवरी 2008 को लिया गया।
  15. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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