अंग्रेजी शब्दकोशों का इतिहास

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साँचा:unsourced 'लातिन' की शब्दसूचियों ने आधुनिक कोश-रचना-पद्धति का जिस प्रकार विकास किया, अंग्रेज कोशों के विकास क्रम में उसे देखा जा सकता है। आरंभ में इन शब्दार्थसूचियों का प्रधान विधान था क्लिष्ट 'लातिन' शब्दों का सरल 'लातिन' भाषा में अर्थ सूचित करना। धीरे-धीरे सुविधा के लिये रोमन भूमि से दूरस्थ पाठक अपनी भाषा में भी उन शब्दों का अर्थ लिख देते थे। 'ग्लाँसरी' और 'वोकैब्युलेरि' के अंग्रेजी भाषी विद्वानों की प्रवृत्ति में भी यह नई भावना जगी। इस नवचेतना के परिणामस्वरूप 'लातिन' शब्दों का अंग्रेजी में अर्थनिर्देश करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। इस क्रम में लैटिन-अंगेजी कोश का आरंभिक रूप सामने आया।

दसवीं शताब्दी में ही 'आक्सफोर्ड' के निकटवर्ती स्थान के एक विद्वान धर्मपीठाधीश 'एफ्रिक' ने 'लैटिन' व्याकरण का एक ग्रंथ बनाया था। और उसी के साथ वर्गीकृत 'लातिन' शब्दों का एक 'लैटिन-इंग्लिश', लघुकोश भी जोड दिया था। संभवत: उक्त ढंग के कोशों में यह प्रथम था। १०६६ ई० से लेकर १४०० ई० के बीच की कोशोत्मक शब्दसूचियों को एकत्र करते हुए 'राइट ब्यूलर' ने ऐसी दो शब्दसूचिय़ाँ उपस्थित की है। इनमें भी एक १२ वीं शताब्दी की है। वह पूर्ववर्ती शब्दसूचियों की प्रतिलिपि मात्र हैं। दूसरी शब्दसूची में 'लातिन' तथा अन्य भाषाओं के शब्द हैं।

इंग्लैड में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के उद्बुद्ध होने पर अंग्रेजी राजभाषा हुई। शिक्षा-संस्थाओं में फ्रांसीसी के स्थान पर अंग्रेजी का पठन-पाठन बढा। अंग्रेजी में लेखकों की संख्या भी अधिक होने लगी। फलत: अंग्रेजी के शब्दकोश की आवश्यकता भी बढ गई। १५वीं शती में 'राइट व्यूलर' ने छह महत्त्वपूर्ण पुरानी शब्दार्थसूचियों को मुद्रित किया। अधिकत: विषयगत वर्गों के आधार पर वे बनाई गई थीं। केवल एक शब्दसूची ऐसी थी जिसमें अकारादिक्रम से २५००० शब्दों का संकलन किया गया था। ऐम० ऐम० मैथ्यू ने अंग्रजी कोशों का सर्वेक्षण नामक अपनी रचना में १५वी शती के दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का उल्लेख किया़ है। प्रथम 'ओरट्स' का 'वोकाब्युलरियम्' था जो पूर्व 'मेड्डला' व्याकरण पर आधारित था। दूसरा था 'ग्लाफेड्स' या 'ज्याफरी' व्याकरण पर आधारित इंग्लिश—लैटिन कोश। इसका पिंसिन द्वारा १४४० ई० में प्रथम मुद्रित संस्करण प्रकाशित किया गया। उसका नाम था प्रोंपटोरियम परव्यूलोरमं सिनक्लोरिकोरं (अर्थात् बच्चों का भांडार या संग्रहालय)। इसका महत्व— ९—१० हजार शब्दों के संग्रह के कारण न होकर इसलिये था इसके द्वारा शब्दसूचि के रचनाविद्यान में नए प्रयोग का संकेत दिखाई पडा़। इसमें संज्ञा और क्रिया के मुख्यांश से व्यतिरिक्त अन्य प्रकार के शब्द (अन्य पार्टस् आँव स्पीच) भी संकलित है। यह 'मेड्डला ग्रामाटिसिज' कदाचित् प्रथम 'लातीन—अंग्रेजी' शब्दकोश था। लोकप्रियता का प्रमाण मिलता है— उसकी बहुत सी उपलब्ध प्रतिलिपियो के कारण। १४८३ ईं में 'वेथोलिअम ऐंग्लिवन् ' नामक शब्दकोश संकलित हुआ था। परंतु महत्त्वपूर्ण कोश होकर भी पूर्वाक्त कोश के समान वह लोकप्रिय न हो सका।

इसके पश्चात् १६वी शताब्दी में 'लैटिन-अँग्रँजी' और 'अंग्रेजी-लैटिन' की अनेक शब्दसूचियाँ निर्मित एवं प्रकाशित हुई। 'सर टामस ईलियट' की डिक्शनरी ऐसा सर्वप्रथम ग्रंथ है जिसमें 'डिक्शनरी' अभिधान का अंग्रेजी में प्रयोग मिलता है। मूल शब्द लातिन का 'डिक्शनरियम्' है जिसका अर्थ था कथन (सेइंग)। पर वैयाकरणों द्वारा 'कोश' शब्द के अर्थ में उसका प्रयोग होने लगा था। इससे पूर्व—आरं- भिक शब्दसूचियों और कोशों के लिये अनेक नाम प्रचलित थे, यथा— 'नामिनल', 'नेमबुक', मेडुला ग्रामेटिक्स, 'दी आर्टस् वोकाब्युलेरियम्' गार्डन आफ़ वडंस, दि प्रोम्पटारियम पोरवोरम, कैथोलिकं ऐग्लिकन्, मैनुअलस् वोकैब्युरम्, हैंडफुल आव वोकैब्युलरियस्, 'दि एबेसेडेरियम्, बिबलोथिका, एल्बारिया, लाइब्रेरी, दी टेबुल अल्फाबेटिकल, दी ट्रेजरी या ट्रेजरर्स ऑफ वर्डस् 'दि इंग्लिश एक्सपोजिटर', दि गाइड टु दि टंग्स्, दि ग्लासोग्राफिया, दि न्यू वल्डर्स, आव वर्डस् 'दि इटिमालाँजिकम्' दि फाइलाँलाँजिकम्' आदि। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार १२२४ ईं में कंठस्थ की जानेवाली 'लातिन' शब्दसूची के हस्तलेख के लिये जान गारलैंडिया ने इस (डिक्शनरी) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। परंतु लगभग तीन शताब्दी बाद सर टामस् ईलियट द्वारा प्रयुक्त यह शब्द क्यों और कैसे लोकप्रिय हो उठा यह कहना सरल नहीं है।

१६वीं शती में पूर्वार्ध के व्यतीत होते होते यह विचार स्विकृत होने लगा कि शब्दकोश में शब्दार्थ देखने की पद्धति सुविधापूर्ण और सरल होनी चाहिए। इस दृष्टि से कोश के लिये वर्णमाला क्रम से शब्दानुक्रम की व्यवस्था उपयुक्ततर मानी गई। पश्चिम की इस पद्धति को महत्त्वपूर्ण उपलब्धि और कोशविद्या के नूतन विकास की नई मोड़ माना जा सकता है। एकाक्षर और विश्लेषणात्मक पदरचना वाली चीनी भाषा में एकाक्षर शब्द ही होते हैं। प्रत्येक 'सिलेबुल' स्वतंत्र, सार्थक ज्ञौर विश्लिष्ट होता है। वहाँ के पुराने कोश अर्थानुसार तथा उच्चारण- मूलक पद्धति पर बने हैं। वैसी भाषा के कोशों में उच्चारणानुसारी शब्दों का ढूँढना अत्यंत दुष्कर होता था। परंतु योरप की भाषाओं में अकारादि क्रमानुसारी एक नई दिशा की ओर शब्दकोशरचना का संकेत हुआ। पूर्वोक्त प्रोम्पटोरियम के अनंतर १५१९ में प्रकाशित विलियम हार्नन का शब्दकोश अंग्रेजी लैटिन कोशों में उल्लेख्य है। इसमें कहावतों और सूक्तियों का प्राचीन पद्धति पर संग्रह था। मुद्रित कोशों में इसका अपना स्थान था। १५७३ ई० में रिचार्ड हाउलेट का 'एबेसेडेरियम' और 'जाँन वारेट का लाइब्रेरिया—दो कोश प्रकाशित हुए। प्रथम में लैटिन पर्याय के साथ साथ अंग्रैजी में अर्थ कथन होने से अंग्रेजी कोशों में—विशेषत: प्राचीन काल के—इसे उत्तम और अपने ढंग का महत्वशाली कोश माना गया है। इससे भी पूर्व— ई० १५७० में 'पीटर लेविस' ने एक 'इंगलिश राइमिंग डिक्शनरी' बनाई थी जिसमें अंग्रेजी शब्दों के साथ लैटिन शब्द भी हैं और सभी खास शब्द तुकांत रूप में रखे गए थे।

हेनरी अष्टम की बहन, मेरी ट्युडर, जब फ्रांस के १२वें लुई की पत्नी बनी तब उन्हें फ्रांसीसी भाषा पढा़ने के लिये जान पाल ग्रे ने एक ग्रंथ बनाया जिसमें फ्रांसीसी के साथ साथ अंग्रेजी शब्द भी थे। १४३० ई० में यह प्रकाशित हुआ। इस कोश को आधुनिक फ्रांसीसी और आधुनिक अंग्रेजी भाषाओं का प्राचीनतम कोश कहा जा सकता है। गाइल्स दु गेज़ ने लेडी मेरी को फ्रांसीसी पढा़ने के लिये १५२७ में व्याकरणरचना की जो पुस्तक प्रकाशित की थी उसमें भी चुने हुए अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्दों का संग्रह जोड़ दिया गया था।

रिचर्ड हाउलेट का एबेसेडिरियम १५५२ ई० में प्रकाशित हुआ; जिसे सर्वप्रथम अंग्रेजी (+ लैटिन) 'डिक्शनरी' कह सकते हैं। जान वारेट का कोश (एल्बरिया) भी १५७३ ई० में प्रकाशित हुआ। रिचार्ड के कोश में अंग्रेजी भाषा द्वारा अर्थव्याख्या की गई है। अत: उसे प्रथम अंग्रेजी कोश— लैटिन अंग्रेजी डिक्शनरी कह सकते हैं। १६वीं शताब्दी में ही (१५९९ ई० में) रिचार्डस परसिवाल ने स्पेनिश अंग्रेजी—कोश मुद्रित कराया था। पलोरियो ने भी दि वर्ल्ड्स आव दि वर्डस् नाम से एक इताली—अग्रेजी—कोश बनाकर मुद्रित किया। उसका परिवर्धित संस्करण १६११ ई० में प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष रैंडल काटग्रेव का प्रसिद्ध फ्रेंच—अंग्रेजी—कोश भी प्रकाशित हुआ जिसके अति लोकप्रिय हो जाने के कारण बाद में अनेक संस्करण छपे। केवल अंग्रेजीकोश के अभाववश 'पलोरियो' और 'काटग्रेव' के अंग्रेजी शब्दसंग्रही का अत्यंत महत्व माना गया और 'शेक्सपियर' के युग की भाषा समझने—समझाने में वह बडा़ उपयोगी सिद्ध हुआ।

इसी के आस-पास 'बाइबिल' का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाश में आया। १७वी० शताब्दी के प्रथम चरण (१६१० ई० में) में जाँन मिनश्यू ने 'दि गाइड इंटु इग्स ' नामक एक नानाभाषी कोश का निर्माण किया जिसमें अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य दस भाषाओं का (वेल्स लो डच्, हाई डच्, फ्रांसीसी, इताली, पूर्तगाली, स्पेनी लातिन, यूनानी और हिंब्रु शब्द दिए गए थे)। इन कोशों में अंग्रेजी कोश के लिये आवश्यक और उपयोगी सामग्री के रहने पर भी केवल अंग्रेजी के एकभाषी कोश की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। प्राचीन अध्ययन के प्रति पुनर्जागर्ति के कारण अंग्रेजी में लातिन, यूनानी, हिब्रू, अरबी आदि के सहस्रों शब्द और प्रयोग प्रचारित होने लगे थे। ये प्रयोग 'इंक हार्डस टमँस्' कहे जाते थे। वे परंपरया आगत नहीं थे। इन क्लिष्ट शब्दों की वर्तनी और कभी कभी अर्थ बतानेवाले ग्रंथों की तत्कालीन अनिवार्य आवश्यकता उठ खडी हुई थी। मुख्यतः इसी की पूर्ति के लिये— न कि अपनी भाषा के शब्दों और मुहावरों का परिचय कराने की भावना से— आरभिक अंग्रेजी- कोशों के निर्माण की कदाचित् मुख्य प्रेरणा मिली। सर्वप्रथम 'टेबुल अल्फावेटिकल आव हार्ड वर्डस' शीर्षक एक लघु पुस्तक राबर्ट काउड ने प्रकाशित की जो १२० पृष्ठों में रचित थी। इसमें तीन हजार शब्दों की शुद्ध वतंनी और अर्थों का निर्देश किया गया था। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि आठ वर्षों में इसके तीन संस्करण प्रकाशित करने पडे़। १६१६ ई० में 'ऐन इंगलिश एक्सपोजिटर' नामक — जान बुलाकर का — कोश प्रकाशित हुआ जिनके न जाने कितने संस्करण मुद्रित किए गए। १६२३ ई० में 'एच० सी० जेट' द्वारा रचित 'इंगलिश डिक्शनरी' के नाम से एक कोशग्रथ प्रकाशित हुआ जिसकी रचना से प्रसन्न होकर प्रशंसा में 'जाँन फो़ड' ने प्रमाणपत्र भेजा था। तीन भागों में विभक्त इस कोश की निर्माणपद्धति कुछ विचित्र सी लगती है। इसकी विभाजनपद्धति को देखकर 'यास्क' के निरुक्त में निर्दिष्ट नैगमकांड, नैघंटुककांड और दैबतकाडों में लक्षित वर्गानुसारी पद्धति की स्मृति हो आती है। प्रथम अंश से क्लिष्ट शब्द सामान्य भाषा में अर्थों के साथ दिए गए हैं। द्वितीय अंश में सामान्य शब्दों के अर्थों का क्लिष्ट पर्यायों द्वारा निर्देश हुआ है। देवी देवताओं, नरनारियो, लड़के लडकियों, दैत्वों—राक्षमों, पशु पक्षियों आदि की व्याख्या द्वारा तीसरे भाग के इस अंश में वर्णन किया गया। इसमें शास्त्रीय, ऐतिहासिक, पौराणिक तथा अलौकिक शक्तिसंपन्न व्यक्तियों आदि से संबद्ध कल्पनाआ का भी अच्छा सकलन है। २० साल परिश्रम करके 'ग्लासोग्राफया' नामक एक ऐसे कोश का 'टामस क्लाउंडर ने संग्रह किया था जिसमें यूनानी, लातिन, हिब्रू आदि के उन शब्दों की व्याख्या मिलती है जिनका प्रयोग उस समय की परिनिष्ठित अंग्रजी मे होने लगा था। एस० सी० काकरमैन का कोश भी बडा़ लोकप्रिय था और उसके जाने कितने संस्करण हुए। प्रसिद्ध कवि मिल्टन के भतीजे एडवर्ड फिलिप्स ने १५४५ ई० में दि न्यू वर्ल्ड आव इंगलिश बर्डस, या 'ए जेनरल डिकश्नरी' नामक लोकप्रिय कोश का निर्माण किया था।

१६६० तक के प्रकाशित कोशों की निर्माण संबंधी आवश्यकताओं में कदाचित् तात्कालिक प्रयोजन का सर्वाधिक महत्व था विशिष्ट महिलाओं यो अध्ययनशील विदुषियों को सहायता देना। बाद में चलकर कोशनिर्माण का इस प्ररणा का निर्देश नहीं मिलता। १७०२ ई० से १७०७ तेक 'लासोग्राफिया' के अनेक संस्करण छपे। एडवर्ड फिलाप्स का काश भी बाद क संस्करणों में अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया। एशिसाकोत्स और एडवर्ड पार्कर के कोश भी इसी समय के आसपास छपे जिनका पुनर्मुद्रण बीसवीं शती तक भी होता रहा। जाँन करेन्सी ने भी 'डिक्शनेरियम एंग्लोब्रिटेनिकन' या 'जनरल इंग्लिश डिक्शनरी' निर्मित की जिसमें पुराने (प्रयोगलुप्त) शब्दों की पर्याप्त संख्या थी।

नैथन बेली

सौ वर्षों तक अंग्रेजी की कोशरचना का उपर्युक्त क्रम चलता रहा जिनके शब्दसंकलन में विशिष्ट शब्दों की ही मुख्यता बनी रही। भाषा में प्रयुक्त समस्त सामान्य और विशिष्ट शब्दों का कोश बनाने में विद्वान् प्रवृत्त नहीं हुए थे। 'नैथन वेली' ने सर्वप्रथम ऐसे कोशके निर्माण की योजना बनाई जिसमें अंग्रेजी के समस्त शब्दों के समावेश का प्रयास किया गया। इसका नाम था युनिवर्सल इटिमाँलाजिकल इंगिलिश डिक्शनरी। इसमें अनेक विशेषताएँ थी। संकलित शब्दों के विकासक्रम का संकेत दिया गया था। साथ ही इसमें व्युत्पत्ति देने की भी चेष्टा की गई। १७२९ में इसका प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ। १७३९ में प्रकाशित दूसरे संस्करण में शब्दों के उच्चारणबोधक संकेत भी इ समें दिए गए। अंग्रेजी के कोशज्ञ विद्वानों द्वारा यह कोश अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग्रेजी डिक्शनरी माना जाता है। पहला कारण यह था कि डॉ॰ जानसन द्वारा निर्मित ऐतिहासिक महत्व के अंग्रेजी कोश की यह साधारशिला बनी। दूसरा कारण यह था कि इसमें समस्त अंग्रेजी शब्दों के वयाशक्ति संकलन का लक्ष्य पहली बार रखा गया। तीसरा कारण व्युत्पत्ति निर्देश करने और उच्चारणसंकेत देने की पद्धति के प्रवर्तन का प्रायास था।

जाँनसन का अंग्रेजी कोश (१७४७ — १७५५ ई०)

इठली और फांस एकेडमीशियनों द्वारा ऐसले प्रामाणिक कोशों की रचना का कार्यक्रम प्रवर्तित हो गया था जिनमें परिनिष्ठित भाषा के मान्यताप्राप्त प्रयोगरूपों का स्थिरीकरणऔर प्रमाणीकरण किया जा सके। जर्मन, स्पेनी, फ्रांसीसी और इताली भाषाओं में ऐसे कोशों की रचना का प्रयास चल रहा था।

अंग्रेजी भाषा का साहित्यिक सवरूप पुष्ट, विकसित, मान्य एवं विरनिष्ठित होता चल रहा था। पद्य या छंदोबद्ध भाषा के अतिरिक्त वच की रचनाओं को साहित्यिक आदर प्राप्त होने लगा था। फलत अंग्रेजी भाषा का तत्कालीन स्वरूप परिनिष्ठित भाषा के स्तर पर ग्राह्य और मान्य हो गया था। अतः साहित्यकार, पुस्तक प्रकाशक और प्रचारक यह महसूस करने लगे थे कि परिनिष्ठित अंग्रेजी कोश का निर्माण अत्यंत आवश्यक हो गया है। अनेक पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं के उत्साह और सहयोग से पर्याप्त धनराशि व्यय करके जाँनसन द्वारा अनेक बर्षों के अथक प्रयास से अंग्रेजी की डिक्शनरी १७४७ से १७५५ ई० के बीच तैयार कर प्रकाशित की गई। इसी बीच'कन्साइज डिक्शनरी' भी १७५३ ई० में जान वेसली द्वारा प्रस्तुत होकर सामने आई। आजतक जानसन का उक्त कोश अपने आप में अत्यंत ऐतिहासिक महत्व का माना जाता है। इसमें मल शब्दों से अँग्रेजी के व्युत्पन्न शब्दों का विकासक्रम दिखाने के साथ साथ उनके विभिन्न अर्थप्रयोगों को भी उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है। अंग्रेजी के उक्तृष्ट लेखकों से उदाहरणों के उद्धरण लिए गए हैं।

उनके इस कार्य का अंग्रेजी भाषी जनता ने बडे़ हर्ष और उल्लास के साथ स्वागत किया। इसमें शब्दों का अर्थ परिभाषा के रूप में भी दिया गाय है। नबकोशविद्या के इतिहास में यह उपलब्धि सर्ब- प्रथम और अत्यंत महत्वशाली कही गई। इसी समय चालीस विद्वान् व्कक्ति एक साथ मिलकर फ्रास में फ्रांसीसी भाषा का कोश बना रहे थे। उसकी चर्चा करतै हुए जेन्टिलमैन्स मैगजीन नामक पत्र ने कहा था कि फ्रांस के चालीस विद्वान् लगभग आधी शती में जो कार्ध न कर सके उसे अकेले जौनसन ने सात वर्षों में कर दिखाया। अंग्रेज जनता ने उस कोश को राष्ट्र और भाषा दोनों के उत्कर्ष की दृष्टि से अत्यंत महत्व का बताया। अंग्रेजी शब्दों के उच्चारण, भाषाशुद्धता की रक्षा और प्रयोग का स्थिरीकरण करने में इस कोश की बहुत बडी देन मानी जाती है। परंतु इसमें दिए गए साहित्यिक उद्धरण— ग्रंथों से संदर्भ निर्देशपूर्वक न लेकर— कोशकार ने अपनी स्मृति से दे दिए हैं। फलतः अनेक स्थलों में उद्धरणों की अशुद्धि इस कोश की एक त्रुटि बन गई। परंतु त्वरित गति से स्वल्प समय में कार्य समाप्त करने की आकांक्षा के कारण त्रुटि रह गई। पुस्तक एकत्र करना, उद्धरण प्रतिलिपि करना और उनका संयोजन करना, आदि कार्य इतना श्रम-समय-साध्य था जो सात बर्षों में एक व्यक्ति के द्वारा सर्वथा असंभव था।

इसके बाद १८वीं शती के अंत तक अंग्रेजी में अनेक कोश बने। विलियम कर्निक, विलियम पैरी, टामस शेरिडन और जान वाकर ने उच्चारण आदि की समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया। इन कोशों को 'जोँनसन ' के कोश का संक्षिप्त या लघु संस्करण कहा गया है। उच्चारण का ठीक ठीक स्वरूप बताने का कार्य समस्यात्मक था। उसका पूर्णतः समाधान करने की चेष्टा 'जांनसन' या बाद के कोशकारों ने की। जौंन वाकर ने उक्त दिशा में विशेष प्रयत्न किया। इन कारणों से 'जोंनसन' के कोश की कुछ आलोचना भी होती रही। पर १९ वीं शती के पूर्वार्ध से उसका संमान बढ़ गया, उसकी महत्ता स्वीकृत हो गई। उसमें नए शब्दों, अर्थों, उद्धरणों आदि के परिवर्धन- कारी परिशिष्टों कों, अनेक विद्वानों की सहायता से जोड़कर उक्त कोश के संशोधित और संवर्धित संस्करण प्रकाशित होते रहे। १८९८ में ऐसी ही एक संस्करण प्रकाशित हुआ जो अब तक मान्य बना हुआ है।

वेब्स्टर का अमरीकी अंग्रेजी का शब्दकोश

इंग्लिस्तानियों के अंग्रेजी प्रयोगों से अमेरिकनों की अंग्रेजी को स्वतंत्र देखकर वेब्स्टर ने अमेरिकी अंग्रेजी का एक महत्त्वपूर्ण कोश बनाया। परंतु उनके कोश की बहुत सी व्युत्पत्तियाँ ऐतिहासिक प्रमाणो पर आधारित न होकर निज की स्वतंत्र कल्पना से आविष्कृत थीं। बाद के संस्करणों में भाषाविज्ञों ने उनका संशोधन कर दिया। आज भी वेब्स्टर के इस कोश का दो जिल्दों में 'इन्टरनैशनल' संस्करण प्रकाशित होता है और कुछ दृष्टियों से इसका आज भी महत्व बना हुआ है।

रिचर्डसन का शब्दकोश

इस युग का दूसरा कोशकार रिचर्डसन था। उसके कोश में उद्धरणों के द्वारा शब्दार्थबोध की युक्ति महत्त्वपूर्ण मानी गई और अर्थबोधक परिभाषाओं को हटाकर केवल उद्धरणों से अर्थ-प्रहत्यायन की पद्धति अपनाई गई। जांनसन से भी आगे बढ़कर - १३०० ईस्वी के पूर्ववर्ती चासर, गोवर आदि कलाकारों के लेखखंडों को उसने उदवृत किया। परंतु उद्धरणों की तिथि उन्होने नहीं दी। व्यावहारिक दृष्टि से श्रमसाध्य, अधिक व्यय-समय-साध्य यह पद्धति शब्दकोश से अर्थज्ञान की कामना करनेवाले पाठकों के लिये उपयोगी और सुविधाजनक न हुई। सामान्य पाठकों के लिये यह अति क्लिष्ट भी थी तथा अर्थ तक पहुँचने में समय भी बहुत लगता था। फिर भी कभी-कभी अनिश्चय रह ही जाता था। जनता में अधिक उपयोगी और लोकप्रिय न होने परह भी इस कोश से एक बडा भारी लाभ हुआ। प्राचीन और प्रसिद्ध लेखकों के अत्यधिक उद्धरणों का इसमें संकलन हो गवा और वले स्थायी रूप में सुरक्षित भी हो गए।

आक्सफोर्ड डिक्शनरी: योजना और निर्माण

विस्तृत लेख के लिये आक्सफोर्ड डिक्शनरी देखें।

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